दो ही कारणों से लोकसभा के चुनाव समय से पहले हो सकते हैं। पहला, यदि केन्द्र की यूपीए सरकार लोकसभा में अपना बहुमत खो दे। यदि समर्थन करने वाली कोई पार्टी सरकार को समर्थन देना बंद कर दे तो ऐसा हो सकता है। केन्द्र सरकार पहले से ही बहुत कम बहुमत से सत्ता में है। यह बसपा और सपा के समर्थन से चल रही है। यदि इन दोनों में से दोनों या कोई एक सरकार से अपना समर्थन वापस ले ले, तो सरकार गिर जाएगी। चुनाव होने का दूसरा कारण हो सकता है खुद कांग्रेस द्वारा समय से पहले चुनाव का सामना करने का निर्णय।
समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके जैसी पार्टियों को लग रहा है कि चुनाव 2013 में ही हो जाएंगे। मुलायम सिंह यादव, मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता और करुणानिधि ने अपने अपने समर्थकों से कहा है िकवे चुनाव के लिए तैयार रहें। वे सभी सितंबर में चुनाव की उम्मीद कर रहे हैं। सवाल उठता है कि सितंबर में ही क्यों? शायद वे लोग कुछ ऐसा जानते हैं, जिनके बारे में हमें नहीं पता। और शायद मुलायम और मायावती केन्द्र सरकार से अपना समर्थन वापस लेने जा रहे हों। शायद इन नेताओं को सितंबर महीने में ही चुनाव ज्यादा फायदेमंद लगता हो।
पिछले साल उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव को बहुत बड़ी जीत हासिल हुई थी। उस जीत के बाद अब जनता के साथ सपा के हनीमून का समय बीत चुका है। मुलायम को पता है कि समय बीतने के साथ जनता का समर्थन बनाए रखना कठिन होगा। ममता बनर्जी के लिए भी यही सच है। 43 साल से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज वामपंथियों को सत्ता से बाहर करने के बाद ममता बनर्जी की लोकप्रियता का ग्राफ गिरता जा रहा है। पर अभी भी वह बहुत खराब स्थिति में नहीं हैं। वह अभी जल्दबाजी में चुनाव चाहती हैं, ताकि लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर वह कब्जा कर सकें और चुनाव के बाद केन्द्र की सरकार के गठन में निर्णायक भूमिका अदा कर सकें। जहां तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का सवाल है, तो वह जल्द चुनाव चाहेंगी, ताकि विरोधी डीएमके में चल रहे उत्तराधिकार के संघर्ष से पैदा हुई भ्रम की स्थिति का वह लाभ उठा सकें। इनके अलावा अन्य पार्टियों को 2014 का चुनाव ज्यादा फायदेमंद दिखाई पड़ रहा है।
सवाल उठता है कि कांग्रेस समय से पहले चुनाव में क्यांे जाना चाहेगी? चुनाव समय से पहले करवाने से उसे क्या फायदा होगा? तर्क तो यही कहता है कि कांग्रेस हमेशा स्थायित्व की बात करती रहती है, इसलिए यह समय पर ही चुनाव में जाना चाहेगी। किसे पता चुनाव के बाद क्या स्थिति रहे? देश की सबसे पुरानी पार्टी किसी अन्य पार्टी से ज्यादा अच्छी तरह से अपना अस्तित्व बनाए रखने की कला जानती है।
विपक्ष का मानना है कि कांग्रेस बजट सत्र के बाद चुनाव में जाना चाहेंगी। इसका एक कारण तो यह है कि वह चुनाव कराने में जितनी देर लगाएगी, उसकी लोकप्रियता का ग्राफ उतना ही नीचे गिरता जाएगा और उसके दुबारा सत्ता में आने की संभावना उतनी ही कम होती जाएगी। हेलिकाॅप्टर घोटाला ताजा उदाहरण है। दूसरा कारण यह है कि नरेन्द्र मोदी को जितना ज्यादा समय मिलेगा, वह उतना ही अपने आपको केन्द्र की राजनीति में स्थापित कर लेंगे। इसके अलावा जिन राज्यों में कुछ महीनों के अंदर चुनाव होने हैं, वहां कांग्रेस कोई बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद नहीं रखती। इसलिए उन चुनावों में हार के प्रभाव से लोकसभा चुनाव को मुक्त रखने के लिए इसका चुनाव समय से पहले कराया जा सकता है।
कांग्रेस के अंदर भी समय से पहले चुनाव की चर्चा तेज हो गई है। पार्टी का एक तबका समय से पहले चुनाव में जाना चाहता है। कांग्रेस नेतृत्व ने भी अपने कार्यकत्र्ताओं से कहा है कि वे चुनाव के लिए तैयार हो जाएं। सरकार भी आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को तेजी से आगे बढ़ा रही है। अफजल गुरू के फांसी पर लटका कर कांग्रेस ने यह संदेश देना चाहा है कि आंतकवाद के मुद्दे पर वह कोई नरम नीति नहीं अपना रही है। कांग्रेस अगले बजट सत्र में ही खाद्य सुरक्षा विधेयक को पास कराना चाहती है। जमीन अधिग्रहण और लोकपाल विधेयकों को भी वह इसी सत्र में पारित कराना चाहेगी।
लेकिन पार्टी का एक तबका कह रहा है कि इस समय पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है। सबसे पहली बात तो यह है कि यूपीए तीसरे कार्यकाल के लिए लोगों से वोट मांगेगा और इस बार यूपीए घटकों की संख्या कम है। सबसे बेहतर स्थितियों में भी यूपीए के लिए लगातार तीसरी बार जीत हासिल करना लगभग असंभव काम है।
इसके अलावा देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। विकास दर कम हो गई है। 9 फीसदी से घटकर यह दर 5 फीसदी पर आ गई है। प्रधानमंत्री को लगता है कि सिर्फ मुद्रास्फीति की दर ही समस्या है। बढ़ती कीमतें देश के सामने एक बहुत बड़ी आर्थिक समस्या है। राजकोषीय घाटा बहुत बढ़ गया है। विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने लगा है। रुपये की विनिमय दर विदेशी बाजार में गिर रही है। ऐसी हालत में कांग्रेस कैसे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर सकती है?
दोनों पक्षों के तर्क मजबूत हैं। बजट से यह पता चलेगा कि क्या होने वाला है। यदि वित्त मंत्री ने एक लोकप्रियतावादी बजट पेश किया, तो स्पष्ट हो जाएगा कि कांग्रेस लोकसभा का चुनाव समय से पहले कराने के विकल्प पर काम कर रही है और यदि समर्थन कर रही पार्टियों ने समर्थन वापस ले लिया, तो फिर चुनाव अवश्यंभावी हो जाएंगे। (संवाद)
समय के पहले हो सकते हैं चुनाव
बजट के बाद कांग्रेस ले सकती है निर्णय
कल्याणी शंकर - 2013-02-15 11:06
अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद चर्चा गर्म है कि आगामी लोकसभा के चुनाव समय के पहले भी हो सकते हैं। सवाल यह रह गया है कि क्या वह 2013 में होगा या 2014 में?