बर्मा की मीडिया में भारत सरकार द्वारा किए जा रहे विलंब और दिखाई जा रही उदासीनता की आलोचना हो रही है। मीडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत पिछले कई सालों से ’’ पूरब की ओर देखो’’ की नीति अपनाने की ढोल पीट रहा है, लेकिन उसने म्यान्मार में नहीं के बराबर निवेश किया है। हैरानी की बात यह है कि सिर्फ भारत ही इस प्रकार की उदासीनता नहीं दिखा रहा है, बल्कि जापान को छोड़कर अन्य सभी देश नई परियोजनाओ की शुरुआत में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
पिछले दो सालों से चीन म्यान्मार पर अपनी आर्थिक पकड़ को ढीला कर रहा है। इसके कारण वहां भारत के लिए नये अवसर बन गए हैं। उम्मीद की जा रही थी कि भारत वहां भारी ताकत के साथ उतरेगा, लेकिन पिछले दो साल मे भारत ने कुछ भी नहीं किया और वह उम्मीद धराशाई हो गई है।
भारत की धीमे चलो की नीति ने इसकी प्राथमिकता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। कलादन नदी को गहरा करने और रखिने प्रांत के सित्वी बंदरगाह के आधुनिकीकरण का काम भारत द्वारा किया जा रहा है। इन दोनों बड़ी परियोजनाओं पर काम बहुत विचार विमर्श के बाद 2010 में शुरू हुआ था। इसका प्राथमिक उद्देश्य भारत की मुख्य भूमि के साथ इसके पूर्वाेत्तर इलाके के बीच बेहतर परिवहन व्यवस्था तैयार करना है। ऐसा म्यान्मार के लोग कहते हैं। उनकी शिकायत है कि जहां म्यान्मार की अपनी स्थानीय प्रगति की बात सामने आती है, तो भारत का रवैया बदल जाता है। भारत और थाइलैंड के बीच म्यान्मार से होते हुए एक उच्च राजपथ के निर्माण की बात पिछले 2004 से ही हो रही है, इसके लिए अभी तक औपचारिक रूप से सहमति भी नहीं हो पाई है।
चिंदविन नदी पर दो पनबिजली परियोजनाओं पर काम होने थे। यह काम भारत की सहायता और सहभागिता से होना था, लेकिन भारतीय विशेषज्ञों की एक टीम ने स्थानीय दशा का अध्ययन करने के बाद बताया कि वे परियोजनाएं फिजिबल नहीं हैं।
बांग्लादेश ने म्यान्मार से गैस खरीदने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उस दिशा में भी कोई प्रगति नहीं हो पाई है। उसने संयुक्त बिजली उपक्रम परियोजनाओ में भी हिस्सा लेने का प्रस्ताव कर रखा है।
पिछले कुछ समय से म्यान्मार और भारत के बीच रिश्ते अच्छे चल रहे हैं। यह रिश्ता बांग्लादेश और म्यान्मार के रिश्ते की अपेक्षा बेहतर है। रखिने प्रांत में बसे रोहिंग्या आबादी को लेकर म्यान्मार और बांग्लादेश के बीच में तनाव पैदा हो गया है। बंगाल की खाड़ी में अधिकार को लेकर भी दोनों देशों के बीच तकरार चल रहा है।
लेकिन म्यान्मार में यदि कोई सबसे ज्यादा नुकसान में जा रहे हैं, तो वे चीनी हैं। अंतरराष्ट्री वित्त के लिए म्षान्मार की अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ ही चीन की पकड़ ढीली हो रही है। इरावदी नदी पर डैम बनाकर चीन के यूयान प्रांत को बिजली देने के चीनी इरादे को जबर्दस्त विरोध हो रहा है और इस पर काम 2015 तक रुक गया है। मोन्वया जिले में तांबे की खान में चीनी के सहयोग का भी भारी विरोध हो रहा है। लगता है कि म्यान्मार में चीनी निवेश का भविष्य सुरक्षित नहीं है। (संवाद)
म्यान्मार से संबंध सुधारने के मामले में भारत की प्रगति धीमी
’’पूरब की ओर देखो’’ की नीति सिर्फ कागजों पर
आशीष बिश्वास - 2013-02-24 04:26
कोलकाताः भारतीय अर्थव्यवस्था को म्यान्मार के लिए खोलने के मसले पर बहुत लंबी-चैड़ी बातें की गई थीं। लेकिन उससे संबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओ पर लगभग नही के बराबर प्रगति हुई है।