विदेशी राजनयिकों को कुछ संरक्षण प्राप्त होते हैं। उनके तहत उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यही कारण है कि जब इटली ने अपने दोनों जनसैनिकों को वापस भेजने से मना कर दिया गया, तो भारत में बहुत ही असमंजस की स्थिति पैदा हो गई, क्योंकि भारत की सुप्रीम कोर्ट के अधिकार का दायरा भारत तक ही सीमित है और वह मुजरिम इटली पहुंच चुका है व इटली की सरकार उसकी रक्षा कर रही है।

इटली के राजदूत द्वारा उन दोनों सैनिकों की भारत वापसी की गारंटी लिए जाने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को अपने देश जाने दिया था। सवाल उठ रहा था कि राजदूतों को मिले संरक्षण के कारण उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई भी नहीं की जा सकती।

पर इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने इटली के उस राजदूत को ही नोटिस जारी कर दिया और उसके भारत छोड़ने पर रोक लगा दी। उसके पहले कहा जा रहा था कि अपना विरोध दर्ज करते हुए भारत सरकार उस राजदूत को दिल्ली से इटली वापस भेज सकती है, लेकिन ऐसा करने से समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला था और सुप्रीम कोर्ट ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए उसके भारत छोड़ने पर रोक लगा दी है।

उस रोक के बाद अब बहस छिड़ गई है कि क्या इटली के राजदूत को भारत का सुप्रीम कोर्ट दंड दे सकता है अथवा उसे राजदूतों और राजनयिको के लिए बनी अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकाॅल के तहत किसी भी कानूनी कार्रवाई के दायरे से मुक्त होने का लाभी मिल जाएगा?

सुप्रीम कोर्ट तो कार्रवाई कर ही रही है, भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस मसले पर कड़ा रुक्ष अपना रखा है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने घोषणा कर दी है कि इटली के साथ हमारे संबंधों की रुपरेखा की व्यापक समीक्षा की जा रही है।

इस मसले पर भारत यूरोपियन यूनियन के कार्यालय के संपर्क में भी है और वह चाहता है कि यूरोपियन यूनियन का कार्यालय इटली सरकार को समझाने में सफल हो।

ज्ञात सूत्रों के अनुसार इटली में भारत के राजदूत के रूप में नामजद किए गए बसंत कुमार गुप्ता अब अपने तय समय के अपुसार वहां प्रभार लेने के लिए नहीं जा रहे हैं। भारत के राजनयिक क्षेत्रों में इस बात को लेकर उहापोह मचा हुआ है कि यदि इटली के राजदूत ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से मना कर दिया तो फिर कैसी स्थिति उत्पन्न होगी।

भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि सरकार राजनयिक संबंधों के 1961 के वियना कन्वेंशन के दायरों के तहत रहकर ही कोई कार्रवाई करेगी।

अब इतना तो तय है कि इटली के राजदूत को देश से बाहर नहीं निकाला जाएगा। यह भी तय है कि जबतक इटली के राजदूत सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते रहते हैं, तबतक उन्हें गिरफ्तार भी नहीं किया जा सकता।

वियेना कन्वेंशन का अनुच्छेद 29 कहता है कि किसी भी देश के राजनयिक को कोई दूसरा देश गिरफ्तार नहीं कर सकता। जिस देश में वह राजनयिक तैनात है, उस देश का कर्तव्य है कि वह उस राजनयिक की आजादी, मर्यादा और देह पर किसी भी प्रकार के हमले से उस बचाएगा।

लेकिन एक प्रावधान यह भी है कि यदि किसी राजनयिक ने स्वयं अपने आपको कानून की प्रक्रिया में उलझा दिया है, तो उसे इस सुविधा से अलग भी होना पड़ सकता है।

इटली राजदूत के मामले में तथ्य यही है कि सुप्रीम कोर्ट ने उसे कानूनी प्रक्रिया में आने को प्रेरित नहीं किया, बल्कि वह खुद सुप्रीम कोर्ट में आकर दोनों जलसैनिकों की जमानत का गारंटर बन गया। अब यदि उसने कानूनी रूप से अपने आपको अपने देश के दोनों जलसैनिकों को वापस लाने की गारंटी ले रखी है, तो उसे उस कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। सच कहा जाय, तो कोर्ट में आकर उसने कोर्ट में न आने के अपने मिले अधिकार को उसने खुद सरंेडर कर दिया है।

यही कारण है कि भारत कहता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इटली के राजदूत को जारी किए गए आदेश से वियेना के उस कन्वेशन का उल्लंघन नहीं होता। (संवाद)