आज मुसलमानों के बीच यदि मुलायम सिंह की गहरी राजनैतिक पैठ है, तो इसका कारण यह है कि उन्होंने मस्जिद बचाने के लिए गोलियां चलवाई थी। उसे मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री के रूप मंे अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हैं और जब तब किसी न किसी बहाने से इसका उल्लेख करते रहते हैं, ताकि मुसलमान यह नहीं भूलें कि उन्होंने उनकी बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कभी ताबड़तोड़ गोलियां चलवाई थीं।
जाहिर है, मुलायम सिंह यादव आडवाणी की यदि प्रशंसा कर रहे हैं, तो इसके पीछे कोई बहुत ही गहरी राजनैतिक चाल होगी। राजनीतिज्ञ कोई भी बयान अकारण नहीं देते। यह दूसरी बात है कि कभी कभी उनकी जुबान फिसल जाती है और वे वह कह देते हैं, जो कहना उनकी राजनीति के लिए ठीक नहीं होता। पर मुलायम सिंह यादव द्वारा आडवाणी की की गई प्रशंसा उनकी जुबान की फिसलन नहीं है। इसका कारण यह है कि कुछ ही दिनों मंे तीसरी बार समाजवादी पार्टी की ओर से भाजपा के बारे में सकारात्मक बातें की गई हैं। सबसे पहले मुलायम सिंह यादव ने खुद लोकसभा में कहा था कि यदि भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों से संबंधित अपनी नीति बदल ले, तो वे उसके साथ मिलकर भी राजनीति करने को तैयार हैं। इस तरह की बात करके मुलायम के कथित समाजवादी खेमे के जार्ज फर्नांडीज, नीतीश कुमार और शरद यादव पहले ही भाजपा की शरण में जा चुके हैं। इसलिए भाजपा के लिए अपने मुस्लिम एजेंडे को कुछ समय तक मुलायम के लिए टाल देना कोई मुश्किल काम नहीं है।
भाजपा की ओर लोकसभा में चारा फेंकने के बाद मुलायम के भाई राम गोपाल यादव ने राजग सरकार की जमकर बड़ाई की और अटल बिहारी वाजपेयी की प्रशंसा के कसीदे पढ़ डाले। अटल की प्रशंसा तक तो ठीक थी, क्योंकि उनकी छवि एक उदारवादी नेता की है और उनको गलत पार्टी में रहने वाला एक सही नेता का खिताब देकर मुस्लिम सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले लोग भी उनकी 26 पार्टियों की गठबंधन सरकार में शामिल होकर सत्ता की चाशनी चाट चुके हैं। लेकिन मुलायम एक कदम और आगे बढ़ गए और उन्होंने आडवाणी जी को ही देश का सबसे वरिष्ठ राजनेता बता दिया और कह दिया कि वे जो कुछ भी बोलते हैं, सच बोलते हैं।
अब सवाल उठता है कि मुलायम सिंह और उनकी पार्टी के बीच आडवाणी के प्रति उमड़ते प्यार का क्या कारण हो सकता है? इस तरह के प्यार में मुस्लिम वोटों के खोने का भी खतरा है और मुस्लिम मतों को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का आधार मत माना जाता है। जाहिर है, आडवाणी की प्रशंसा के पीछे कोई बहुत बड़ा कारण होना चाहिए कि मुलायम इसके लिए मुसलमानों की रंजिश लेने को भी तैयार हो जाएं। तो इसका जवाब जानने के लिए मुलायम की तरह अपने को समाजवादी बताने वाले नीतीश कुमार और शरद यादव के आडवाणी प्रेम को समझना पड़ेगा। ये दोनों नेता आडवाणी को इसलिए पसंद करते हैं, क्योंकि उनकी सहायता से भाजपा के अंदर नरेन्द्र मोदी को बढ़ने से रोका जा सकता है। वे जब कहते हैं कि भाजपा को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार जल्द घोषित करना चाहिए तो उनके दिमाग में लालकृष्ण आडवाणी को ही उम्मीदवार घोषित किया जाना शामिल होता है। वे आडवाणी को इसके बावजूद पसंद करते हैं कि उनका नाम बाबरी मस्जिद के घ्वंस से जुड़ा हुआ है और मुसलमान उन्हें नापसंद करते हैं। दूसरी ओर मुसलमानों की नापसंदगी का हवाला देते हुए नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाने का वे विरोध भी करते हैं।
नीतीश के विरोध को आधार बनाकर भाजपा के अंदर नरेन्द्र मोदी को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश नाकाम हो चुकी है। बिहार के भाजपा नेताओं ने बता दिया है कि यदि श्री मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया गया, तो पार्टी को बिहार मे नीतीश की जरूरत ही नहीं रहेगी। पिछड़े वर्गों के वोटों के लिए भाजपा ने नीतीश के साथ समझौता किया था और नरेन्द्र मोदी खुद बिहार के मानदंड से पिछड़े वर्ग से आते हैं। इसलिए यदि मोदी के नेतृत्व में भाजपा अपने बूते ही बिहार के अन्य दलों पर भारी पड़ेगी।
अब यह किसी से छिपी बात नहीं रही कि नीतीश का मोदी बिहार के मुस्लिम मतों के लिए नहीं, बल्कि पिछड़े वर्गों के मतों पर अपना अधिकार बनाए रखने के लिए था। उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी बिहार की तरह पिछड़ा वर्ग एक बड़ा फैक्टर है। फिलहाल वहां का पिछड़ा वर्ग भ्रम की स्थिति में है। मुलायम सिंह यादव की नजर उनके वोट पर रहती है, लेकिन वे सत्ता में भागीदारी उन्हें नहीं देते। उनके उस रवैये के कारण पिछड़े वर्गों का एक बड़ा तबका कभी भाजपा की ओर चला गया था, क्योंकि तब उसके नेता कल्याण सिंह थे। कल्याण ंिसंह की भाजपा में दुर्गति के कारण पिछड़े वर्गों के लोग मायावती की ओर भी मुखातिब हुए, लेकिन वहां भी उन्हें निराशा हाथ लगी। वे कांग्रेस के साथ भी जा सकते थे, लेकिन कांग्रेस पिछड़े वर्गों के 27 फीसदी कोटे को ही समाप्त करने में लगी हुई है। इसलिए वह भी उनकी पसंद नहीं होते। यानी उत्तर प्रदेश का गैर यादव पिछड़ा वर्ग आज एक भ्रम की स्थिति में है और उन्हें पता नहीं है कि उनका शुभचिंतक कौन है। ऐसे माहौल में यदि भाजपा नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर देती है, तो गैर यादव पिछड़े वर्गो को का बहुत बड़ा तबका भाजपा को वोट दे सकता है और वह पार्टी प्रदेश की अधिकांश सीटों को जीतने में सफल हो सकती है। पिछड़े वर्गो का नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की ओर हुआ ध्रुवीकरण मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के अधिकांश उम्मीदवारों की हार का कारण बन सकता है। ऐसी स्थिति को आने से रोकने के लिए ही मुलायम सिंह यादव आडवाणी कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि भाजपा के अंदर नरेन्द्र मोदी को और भी उभररे से रोका जा सके। ऐसा करते हुए वे अपने मुस्लिम जनाधार को भी जोखिम में डाल रहे हैं, तो इसका कारण यह है कि उनका मुस्लिम यादव समीकरण बरकरार रहने के बावजूद वे पराजित हो जाएंगे, यदि गैर यादव पिछड़े वर्गाे के मतदाताओं का समूह भाजपा के साथ चला जाए। वे मुस्लिम मत पाने के लिए कुछ और तरीका भी अपना लेंगे, लेकिन बड़े खतरे को टालने के लिए छोटा खतरा लेना अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता। (संवाद)
आडवाणी के क्यों कायल हो रहे हैं मुलायम?
भाजपा के अंदर नरेन्द्र मोदी के उभार को रोकने की कोशिश
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-03-26 12:05
मुलायम सिंह यादव करें आडवाणी की प्रशंसा, तो अनेक लोगों की भौंहे तनना स्वाभाविक है, क्योंकि भाजपा नेता आडवाणी की मुख्य राजनैतिक पूंजी बाबरी मस्जिद को ढहाने के लिए जिम्मेदार 1990 की राम रथ यात्रा है, तो मुलायम सिंह यादव की मुख्य राजनैतिक पूंजी उस यात्रा की समाप्ति के बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद को आडवाणी समर्थकों से बचाने के लिए हिंदुओं पर की गई ताबड़तोड़ फायरिंग। एक का नाम बाबरी मस्जिद तोड़ने से जुड़ा हुआ है, तो दूसरे का नाम मस्जिद बचाने के लिए की गई कार्रवाई के लिए।