दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस के कार्यकत्र्ता ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के नेताओं का भ्रम भी लगातार बढ़ता जा रहा है। वे पार्टी के भविष्य को लेकर भी उधेड़बुन में फंसे हुए हैं। उनके दिमाग में यह सवाल उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी का जादू 2014 के लोकसभा चुनाव में काम कर पाएगा? क्या राहुल गांधी के पास कोई जादू है भी या नहीं? क्या राहुल गांधी आगे आकर उनका नेतृत्व कर पाएंगे या अपनी मां सोनिया की तरह ही वह पीछे से पार्टी का नेतृत्व करेंगे? सवाल यह भी उठ रहा है कि यूपीए की सरकार आने के बाद क्या मनमोहन सिंह एक बार फिर प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे या राहुल और सोनिय की पसंद का कोई अन्य व्यक्ति इस पद पर बैठेगा? इन सवालों का कोई जवाब आज किसी के पास नहीं है और जिम्मेदारी के पदों पर बैठे नेता तरह तरह के बयान जारी कर रहे हैं।

कुछ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि जानबूझकर एक रणनीति के तहत इस प्रकार का भ्रम फैलाया जा रहा है। सबसे पहले राहुल गांधी ने संसद भवन के सेंट्रल हाॅल में कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनकी प्राथमिकता नहीं है, बल्कि वह राज्यों में कांग्रेस के नेतृत्व का विकास करना चाहते हैं। इससे पार्टी के नेताओं के मन में यह सवाल खड़ा होने लगा कि क्या राहुल गांधी आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व क्या आगे आकर नहीं करेंगे? अगला बयान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरफ से आया। उन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद यूपीए सरकार बनने की स्थिति में तीसरी बार शपथग्रहण करने की संभावना से इनकार नहीं किया। डरबन से लौटते वक्त वह विमान में संवाददाताओं के सवाल का जवाब देते हुए इस तरह की बात कर रहे थे। मनमोहन सिंह के इस बयान का हल्के से नहीं लिया जा सकता। वे इस तरह का बयान नहीं दे सकते हैं, जबतक वे इसके बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं हों।

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने दुस्साहस भरा एक और बयान जारी कर दिया। उन्होंने तो पार्टी और सरकार में बने दो सत्ता केन्द्रों के माॅडल की ही आलोचना कर दी। उन्होने यह भी कहा कि आने वाले दिनों मे सत्ता का एक ही केन्द्र होना चाहिए। यानी जो पार्टी का नेता हो, वही सरकार का भी नेतृत्व करे। उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था की विफलता के कारण वे चाहेंगे कि कांग्रेस द्वारा सरकार बनाने की स्थिति में राहुल गांधी ही उस पद पर बैठें और साथ साथ पार्टी का भी नेतृत्व करता रहें।

दिग्विजय सिंह ऐसे नेतो हैं, जो अपने बाॅस को नाखुश नहीं करते। इसलिए उनके द्वारा इस तरह का बयान देने का मतलब यह निकाला गया कि वह कांग्रेस के आलाकमान यानी सोनिया और राहुल गांधी की पसंद की बात कर रहे हैं और उनके द्वारा इशारा मिलने के बाद ही कर रहे हैं। पर कुछ समय के बाद ही कांग्रेस के एक और जिम्मेदार नेता जनार्दन द्विवेदी ने दिग्विजय सिंह की बात का खंडन करते हुए बयान जारी कर दिया कि मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के रूप में बने दों सत्ता केन्द्रों के बीच बहुत ही अच्छा तालमेल रहा है और यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह व्यवस्था आगे भी जारी रहेगी। दिग्विजय सिंह का बयान उनका निजी बयान था, लेकिन श्री द्विवेदी का बयान पार्टी का आधिकारिक बयान था। उनके इस बयान के बाद सवाल उठा कि क्या यदि कांग्रेस की सरकार बनने की नौबत आई, तो क्या राहुल गांधी मनमोहन सिंह की तरह की किसी और व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर बैठाना चाहेंगे?

कांग्रेस में ऐसे नेताओं की एक फौज है, जो यह मांग कर रही है कि लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के अपने उम्मीदवार के रूप में पेश करे। वैसे नेताओं को इस तरह के बयानों से निराशा हाथ लग रही है और उन्हें पता नहीं चल पा रहा है कि पार्टी के अंदर आने वाले दिनों में क्या होने वाला है। सोनिया गांधी का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। इसलिए उनके बाद वे राहुल गांधी से उम्मीद करते हैं कि वे पार्टी का नेतृत्व करेंगे। जब राहुल गांधी को पिछले जनवरी महीने में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया, तो उन्होंने राहत की सांस ली थी। लेकिन उसके बाद आ रहे इस तरह के विरोधाभासी बयानों ने उनके दिल की धड़कन को बढ़ा दिया ळें (संवाद)