सीपीएम के 34 साल तक सत्ता में रहने के बाद उसे तृणमूल ने हार का स्वाद चखाते हुए सरकार से बाहर किया था और यह संयोग है कि तृणमूल का गठन सीपीएम के गठन के 34 साल के बाद हुआ था। उसने सीपीएम के वामपंथी नारों को ज्यों का त्यों अपना लिया। सीपीएम की तरह उसने अपना हुल्लड़ ब्रिगेड तैयार कर लिया। उसने भी सीपीएम कार्यकत्र्ताओं की तरह तोड़फोड़ का तरीका सीख लिया। राजनैतिक विरोधियों के खिलाफ हिंसक होने की कला उसने भी सीख ली। उसने अपने इन कामों मंे माओवादियों और नक्सलवादियों के साथ मिलकर सीपीएम को भी पीछे छोड़ दिया। नंदीग्राम और सिंगूर आंदोलनों के दौरान हमें तृणमूल का वह रूप देखने को मिला।
पिछले दो साल के दौरान तृणमूल कांग्रेस ने यह दिखा दिया कि वह सीपीएम के ही नक्शे कदम पर चलेगी और उससे भी ज्यादा आक्रामक होकर चलेगी, भले ही इसके कारण खुद अपना नाश होता ही क्यों न दिखाई दे। तृणमूल के खिलाफ पहले से ही इस बात को लेकर विरोध किया जा रहा है कि उनके कार्यकत्र्ता अपने विरोधियों को तंग कर रहे हैं। ऐसा करने के लिए पुलिस की भी सहायता ली जा रही है। विरोधी श्रमिक संगठनों पर कब्जा किया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं में भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया है और यह दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। रियल इस्टेट के सौदों में तृणमूल के नेता लिप्त हैं और ग्रामीण इलाकों में भी वे अपने विरोधियों को परेशान कर रहे हैं। सीपीएम की तरह ही तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ता और नेता भी अपनी राजनैतिक आलोचना पर दुश्मनी का भाव पालने लगते हैं और किसी प्रकार के विरोध के खिलाफ वे असंवेदनशीलता दिखाने में कोई देर नहीं करते।
ये सब गुण सीपीएम के कार्यकत्र्ताओं और नेताओं में वाम सत्ता के अंतिम दिनों में दिखाई पड़ने लगे थे। इन सबके कारण ही प्रदेश के जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया था, जिसका लाभ तृणमूल कांग्रेस को मिला, जो आज सत्ता में है। यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि तृणमूल कांग्रेस का भी वही हश्र होने वाला है और इसकी सत्ता वामपंथी दलों की सत्ता की तरह बहुत लंबी खिंचने वाली नहीं है।
क्या तृणमूल नेताओं को यह अहसास नहीं हो रहा है कि उनकी सत्ता बहुत दिनों तक नहीं रहने वाली है? इसका जवाब हां भी है और न भी। कोई तृणमूल की अध्यक्ष ममता बनर्जी अथवा उसके किसी अन्य नेताओं से यह उम्मीद करता है कि वे सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार करें कि उनकी सत्ता बहुत लंबी नहीं खिंचने वाली है। लेकिन उनके निजी आचरणों और बोलचाल से यही लगता है कि उन्हें इस तथ्य का अहसास है कि उनकी सत्ता बहुत दिनों तक नहीं रहने वाली है। कभी कभी उनके मुह से इस तरह की बातें गलती से निकल भी जाती हैं। ममता बनर्जी के खास सहयोगी खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक ने एक बार एक सभा में गलती से कह दिया कि अगले विधानसभा चुनाव के बाद वे हो सकता है सत्ता में रहे ही नहीं, लेकिन वे जिस राजनीति को बढ़ा रहे हैं उससे लोगों को आगे भी लाभ होता रहेगा। उसके अगले दिन ही उनकी नेता ने उन्हें डांट पिलाई।
स्थानीय स्तर के नेता इस मामले में ज्यादा खुलापन दिखा रहे हैं। पिछले दिनों इस लेखक ने दक्षिण कोलकाता के उपनगर यादवपुर मं तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं को जमीेदारों से यह कहते सुना कि अपनी जमीन से संबंधित परियोजनाओं को जल्द से जल्द वे आगे बढ़ाएं, क्योंकि वे कबतक सत्ता में रहेंगे इसके बारे मे उन्हें भी निश्चित रूप से कुछ पता नहीं है। पता नहीं उसके बाद आपकी सहायता कर भी पाएं या नहीं। उन्होंने कहा कि उनके बड़े नेताओं ने उन्हें कहा है कि जबतक सूरज आसमान में चमक रहा है, तब तक जो करना है, कर लो।
तृणमूल कांग्रेस सीपीएम को पूरी तरह से नकल करने में जुटा हुआ है। सीपीएम राज्य की ही नहीं, बल्कि केन्द्र की राजनीति भी करती थी। तृणमूल कांग्रेस भी यही करने की कोशिश कर रही है। अब यदि सीपीएम तृणमूल कांग्रेस की नकल करने लगे, तो फिर लोगों को कैसा लगेगा? आश्चर्य किंतु यह सच है कि सीपीएम ऐसा कर रही है। इससे यह पता चलता है कि सीपीएम पतन की खाई में लगातार नीचे जा रही है और दोनों पार्टियां एक दूसरे का प्रतिबिम्ब बन रही हैं। (संवाद)
क्या सीपीएम का प्रतिबिम्ब है तृणमूल कांग्रेस?
हिंसा का चक्र थम नहीं रहा है
आशीष बिश्वास - 2013-04-13 10:10
कोलकाताः प्रदेश में हिंसा की हो रही घटनाओं को देखते हुए अनेक विपक्षी नेता यह कहने लगे हैं कि सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस के बीच काफी समानताएं हैं।