नीतीश मोदी पर हमला कर रहे हैं, पर मोदी ने शालीनता दिखाते हुए चुप्पी साध रखी है। वे अपनी तरफ से न तो नीतीश के समर्थकों का और न खुद ही नीतीश के हमले का कोई जवाब दे रहे हैं, जबकि श्री मोदी अपने आलोचकों को करारा जवाब देने के लिए विख्यात हैं और उनके शब्दकोष में अपने आलोचकों की ऐसी तैसी करने के लिए एक से एक शब्दवाण भरे पड़े हैं। बचाव का जिम्मा उन्होंने पार्टी को ही दे दिया है, क्योकि शायद वे यह नहीं चाहते कि कल लोग कहें कि उनके किसी बयान विशेष के कारण नीतीश ने गठबंधन का साथ छोड़ दिया।
पर भारतीय जनता पार्टी के नेता मोदी के बचाव में महज खाना पूर्ति करते दिखाई पड़ रहे हैं। पिछले दिनों नीतीश ने अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और परिषद को संबोधित करते अपने भाषण का एजेंडा मोदी की आलोचना तक ही सीमित रखा। उनकी जिस भी कोण से आलोचना हो सकती है, वह उन्होंने की। गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के बारे में तो उन्होंने कहा ही, मोदी द्वारा मुसलमानों की टोपी पहनने से इनकार करने की भी चर्चा कर दी। यही नहीं उन्होंने गुजरात के विकास और विकास माॅडल तक को नहीं छोड़ा। अपने एक बड़े नेता की इस तरह आलोचना होने के बाद भी भाजपा के नेता नीतीश के साथ गठबंधन को सही मान रहे हैं, तो मानना पड़ेगा कि उनका नीतीश से कहीं न कहीं मामला फिक्स है। आखिर नीतीश और उनके लोगों का आत्मविश्वास इतना क्यों बढा हुआ है कि उन्हें लगता है कि मोदी की आलोचना के बाद भी वे गठबंधन में बने रहेंगे और नीतीश की सरकार में भाजपा बनी रहेगी?
राष्ट्रीय जनता दल के नेता बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव का भी यही मानना है कि नीतीश और आरएसएस के बीच मैच फिक्सिंग हो गया है और उसी के तहत यह सब चल रहा है। उनका मानना है कि नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोड़ ही नहीं सकते और भाजपा भी उनका साथ नहीं छोड़ेगी। उनकी मानें तो यह सब बिहार के मुस्लिम वोटों के लिए किया जा रहा है, जिसमें नरेन्द्र मोदी का इस्तेमाल हो रहा है। उनके अनुसार आरएसएस के साथ नीतीश का एक समझौता हुआ है, जिसके तहत उन्हें नरेन्द्र मोदी की आलोचना करनी है और अंत में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा। आरएसएस खुद मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करना चाहता, पर इसका श्रेय वह नीतीश कुमार को देना चाहता है, ताकि चुनाव के समय वे मुसलमानों के बीच एक ऐसी छवि के साथ जाएं, ताकि वे उनका वोट पा सकें। लालू के इस विश्लेषण को मानें, तो नीतीश और आरएसएस मिलकर नरेन्द्र मोंदी और मुसलमानों को बेवकूफ बना रहे हैं, जिसका नुकसान खुद लालू को भी हो सकता है।
रामविलास पासवान का भी यही मानना है कि नीतीश भाजपा का साथ नहीं छोड़ सकते। बिहार की ताजा राजनैतिक स्थिति को देखते हुए कोई भी यही कह सकता है, क्योंकि भाजपा का साथ छोड़ने के बाद नीतीश को कोई भविष्य वहां नहीं दिखाई देता। वे अपने इस वर्तमान राजनैतिक कद को भाजपा की सहायता से ही पा सके हैं। लालू का साथ छोड़ने के बाद तो नीतीश की राजनैतिक मौत हो चुकी थी। भाजपा ने उन्हें दुबारा बिहार की राजनीति में पैदा किया और 1995 के बाद का सारा चुनाव वह भाजपा की सहायता से ही जीते हैं। बिहार सरकार के खिलाफ लोगों को जो असंतोष है, उसका खामियाजा भी नीतीश को ही भुगतना पड़ेगा, न कि भाजपा को, क्योंकि उन्होंने सरकार की सभी उपलब्धियां अपने नाम कर ली है, तो फिर नाकामियों का ठीकरा भी उन्हीं के ऊपर फूटेगा। वैसी हालत में भाजपा का साथ छोड़ने पर वह कहीं का नहीं रहेंगे। इ
इस तथ्य के बावजूद यदि वे भाजपा के एक बड़े नेता के खिलाफ उस कदर आलोचनात्क हो गए हैं, जितना वे कांग्रेस के किसी नेता के खिलाफ भी आज नहीं है, तो यह मानना पड़ेगा कि उन्हें भाजपा अथवा आरएसएस का साथ मिला हुआ है और उनके इशारे और ताकत के बल पर ही वे मोदी के खिलाफ एकतरफा मोर्चा ले रहे हैं, जिसमे मोदी खुद उनपर कोई वार नहीं करते।
यह तथ्य किसी से छिपा हुआ नहीं है कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री के दावे को पार्टी के अंदर से भी चुनौती मिल रही है। लालकृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री बनने का अपना दावा अभी तक नहीं छोड़ा है, भले ही 2009 के लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह के आगे वे टिक नहीं पाए। पाकिस्तान जाकर जिन्ना को सेकुलर घोषित करने के कारण भाजपा के कार्यकत्र्ताओं और समर्थकों के बीच भी उनकी स्वीकार्यता समाप्त हो गई है और न ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उन्हें पसंद करता। इसके बावजूद उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की आस नहीं छोड़ी है और वे समय समय पर बयान देकर यह बताने की कोशिश करते हैं कि उन्हें इस पद के लिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
नीतीश कुमार की बार बार प्रशंसा करने के पीछे भी आडवाणी का यह उद्देश्य है। नीतीश एक तरफ नरेन्द्र मोदी की निंदा करते हैं और उसके कुछ ही समय बाद आडवाणी नीतीश की प्रशंसा करते दिखाई पड़ जाएंगे। पटना में भाजपा नेताओं को दिए जा रहे डिनर को मोदी के कारण कैंसिल करके नीतीश ने गुजरात के मुख्यमंत्री का भारी अपमान किया था, लेकिन आडवाणी अगले दिन ही अपनी पार्टी के मंच से नीतीश की बड़ाई कर रहे थे। उन्होंने अभी तक एक बार भी सार्वजनिक रूप से नीतीश को नरेन्द्र मोदी की निंदा करने से बचने का नहीं कहा है।
आडवाणी ही नहीं, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं, हालांकि उन्होंने ऐसा खुलकर कभी नहीं कहा है, लेकिन यदि मौका मिल जाए, तो वे चूकना क्यों चाहेंगे? विशेष परिस्थितियों की वजह से वे भाजपा के अध्यक्ष बन गए, यद्यपि वे इस रेस में नहंी थे। इसलिए वे चाहेंगे कि प्रघानमंत्री के मसले पर भी भ्रम पैदा हो और आमराय के उम्मीदवार के रूप में वे इस पद पर आसीन हो जाए। यही कारण है कि नीतीश की आलोचना के बाद भी भाजपा उनके साथ बनी हुई है। इसलिए लालू यादव के इस दावे में दम लगता है कि नरेन्द्र मोदी को फुटवाॅल बनाकर नीतीश कुमार और भाजपा में एक फिक्स्ड मैच चल रहा है। (संवाद)
मोदी पर जद(यू) का ताबड़तोड़ हमला
क्या नीतीश और संघ के बीच का यह मैच फिक्सिंग है?
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-04-18 12:04
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दो सदस्य दलों के बीच वाक्युद्ध अपने आपमें एक बड़ा अजूबा है। गठबंधन की राजनीति के इस दौर मंे किसी गठबंधन में शामिल दो दलों के बीच मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन कोई एक पार्टी दूसरी पार्टी के किसी नेता पर इस तरह लगातार हमला करता रहे, शायद ऐसा दुनिया के किसी भी देश में नहीं देखा गया होगा। नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता नरेन्द्र मोदी पर जिस तरह से हमला कर रहे हैं, उसकी मिसालकहीं और मिलना मुश्किल है। इसका जवाब भाजपा भी देती है, लेकिन हमले की तीव्रता और गंभीरता को देखते हुए दोनों दलों का अभी भी एक साथ बना रहना और भी ज्यादा आश्चर्यजनक है।