वे अपने कार्यकत्र्ताओं और नेताओं को कह रही हैं कि यदि वे उन्हें दिल्ली में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा देखना चाहते हैं तो वे लोकसभा में ज्यादा से ज्यादा बसपा सांसदों को भेजने की कोशिश करें। प्रधानमंत्री बनने की अपनी इच्छा को मायावती कभी नहीं छिपाती हैं। इस मायने में वे अपने प्रदेश प्रतिद्वंद्वी मुलायम सिंह यादव की बराबरी करती हैं।
मायावती का आसरा मुख्य रूप से दलित मतदाताओं पर है। ये मतदाता राज्य के कुल मतदाताओं के 22 फीसदी से भी ज्यादा हैं। मायावती का मानना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनका दलित जनाधार नहीं टूटा था। इस जनाधार को और भी पुख्ता बनाने के लिए उन्होंने सरकारी सेवाओं में प्रोन्नति में आरक्षण के मसले को अपना मुख्य आधार बनाना शुरू किया है। पिछले दिनों वह इस मुद्दे पर बहुत ही आक्रामक रही हैं और आने वाले दिनों में भी वह इस मसले को जोर शोर से उठाती रहेंगी।
दलितों के अलावा मायावती की नजर मुख्य रूप से ब्राह्मण मतों पर है। ब्राह्मण प्रदेश की आबादी में 10 फीसदी की हिस्सेदारी करते हैं। 2007 की विधानसभा चुनाव की जीत के लिए उन्होंने ब्राह्मण समर्थन को ही श्रेय दिया था। उस जीत के बाद उन्होंने ब्राह्मण दलित भाईचारा समितियां बनवाई थीं। सतीशचन्द्र मिश्र को उन्होंने अपनी पार्टी का ब्राह्मण चेहरा बनाया था। 2007 के विधानसभा चुनाव से उत्साहित होकर उन्होंने उत्तर प्रदेश से 2009 के लोकसभा चुनाव में 20 ब्राह्मण उम्मीदवार खड़े कर डाले थे, पर उनमें जीत मात्र 5 की ही हुई। इस बार उन्होंने उन पांच सांसदों को फिर से अपनी पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया है।
उन्होंने अबतक घोषित किए गए उम्मीदवारांे में से 19 ब्राह्मण उम्मीदवार उतारें हैं। हो सकता है कि अघोषित सीटों से और भी ब्राह्मण उम्मीदवार खड़े किए जायं। 10 फीसदी वाले ब्राह्मणों को 25 फीसदी या उससे भी ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार बनाने की मायावती की रणनीति से साफ जाहिर है कि वे अपने वोटरांे के रूप में ब्राह्मणों पर ज्यादा भरोसा कर रही हैं।
मुसलमानों के मत के लिए भी मायावती कोशिश करती रहती हैं, लेकिन इस बार वे उनके प्रति ज्यादा उत्साहित नहीं दिखाई पड़ रही हैं। इसका कारण यह है कि उन्हें लगता है कि उत्तर प्रदेश के मुसलमान लोकसभा चुनाव में पहली प्राथमिकता कांग्रेस को देते हैं और दूसरी प्राथमिकता समाजवादी पार्टी को। उनकी पार्टी को उनके द्वारा तीसरी प्राथमिकता दी जाती है। विधानसभा चुनाव के बारे में उनका मानना है कि मुसलमानों की पहली पसंद 2012 के चुनाव मंे समाजवादी पार्टी थी और दूसरी पसंद कांग्रेस। उनकी पार्टी उस चुनाव में भी मुसलमानों की तीसरी पसंद थी। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में मायावती मुसलमानों पर अपनी निर्भरता बढ़ाने वाली नहीं हैं।
मायावती ने पिछले दिनों ब्राह्मण भाईचारा समिति की बैठक को संबोधित किया और उसमें ही 19 ब्राह्मण उम्मीदवारों की उन्होंने घोषणा की। उस बैठक में दो नारे प्रमुखतस से लगाए गए। एक नारे में कहा गया- हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है। दूसरे नारे में कहा गया- ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी दिल्ली जाएगा।
सोशल इंजीनियरिंग के अलावा ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए मायावती अखिलेश सरकार की कानून व्यवस्था को संभालने की असमर्थता का भी फायदा उठाना चाहती है। उसकी असफलता को भी वह जाति के चश्मे से देख रही हैं और कहती है कि अखिलेश की सरकार में दलित और ब्राह्मण सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। वे इटावा में ब्राह्मणों पर हुए अत्याचार की चर्चा करना नहीं भूलती हैं। (संवाद)
मायावती ने अपनी चुनावी तैयारियां तेज की
जातीय समीकरणों द्वारा सीट संख्या बढ़ाने की कोशिश
प्रदीप कपूर - 2013-04-23 01:49
लखनऊः उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बसपा प्रमुख मायावती ने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी पार्टी की चुनावी तैयारियां तेज कर दी है। वह बाहर से कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र की यूपीए सरकार का समर्थन कर रही हैं और समर्थन वापसी का भी उन्होंने फिलहाल कोई संकेत नहीं दिया है, पर अपने नियत समय से चुनाव पहले होने की संभावना वह भी व्यक्त कर रही हैं और अपने कार्यकत्र्ताओं को कह रही हैं कि वे किसी भी समय चुनाव का सामना करने के लिए तैयार रहें।