प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रमेश चेनिंथाला ने पिछले दिनों कुछ ऐसे बयान जारी किए हैं, जिनके अर्थ अलग अलग लोग अलग अलग तरीके से निकाल रहे हैं। वे केरल यात्रा पर निकले हुए हैं। यह यात्रा कासड़गढ़ से 18 अप्रैल को शुरू हुई है और केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम में यह 18 मई को समाप्त हो जाएगी। इस यात्रा के दूसरे दिन उन्होंने कुछ ऐसा कह दिया है कि प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में गर्माहट आ गई है। उन्होंने कहा था कि उनकी यात्रा की समाप्ति तक प्रदेश में जबर्दस्त राजनैतिक बदलाव आ जाएंगे।

केरल की चांडी सरकार के खिलाफ लोगों का तेजी से मोहभंग हो रहा है। उसकी पृष्ठभूमि में रमेश चेनिंथाला के इस बयान के कई मतलब निकाले जा रहे हैं। मुख्यमंत्री अपनी कार्यशैली के कारण पार्टी के अंदर से भी भारी आलोचना का पात्र बन रहे हैं। गणेश कुमार मामले को उन्होंने जिस तरह से हैंडिल किया, उसके कारण उनकी काफी किरकिरी हुई। आज चांडी के खिलाफ नेतृत्व करने वालों में केन्द्रीय मंत्री व्यालार रवि खुद भी शामिल हैं। एक अन्य केन्द्रीय मंत्री एम रामचन्द्रन में भी चांडी सरकार की निस्तेज कार्यशैली के खिलाफ अपनी आवाज उठाई है।

मामला सिर्फ व्यालार रवि और एम रामचन्द्रन तक ही सीमित रहता तब भी गनीमत थी। यहां तो केन्द्रीय रक्षा मंत्री एके एंटोनी भी मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे हैं और उनके आलोचकों में उनका नाम सबसे ऊंचा है। जब पिछली बार वे केरल आए थे, तो उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के मुख्यमंत्री चांडी की आलोचना की थी। श्री एंटोनी की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से काफी करीबी रही है। इसलिए केरल पर कही गई उनकी बात अंतिम मानी जाती है। वे एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में खासकर मतभेदों को सार्वजनिक किए जाने का वे खुलकर विरोध कर रहे थे। श्री एंटोनी का कहना था कि मतभेदों के उस तरह से सार्वजनिक किए जाने से प्रदेश में कांग्रेस की जबर्दस्त हानि हो रही है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि गलत प्रवृतियों को अब त्याग दिया जाना चाहिए।

लेकिन श्री एंटोनी की सलाह का कांग्रेस नेताओं पर कोई असर पड़ता दिखाई नहीं पड़ रहा है। उनकी सलाह को ताक पर रखते हुए प्रदेश कंाग्रेस के नेता गण न केवल आपसी सिर फुटव्वल में लगे हुए हैं, बल्कि उसका वे सार्वजनिक प्रदर्शन करने में भी नहीं चूकते हैं। अब जबकि लोकसभा चुनाव के एक साल बचे हुए हैं, कांग्रेस उस तरह की गतिविधियों को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं दिखाई पड़ती, क्योंकि यदि ये गतिविधियां जारी रहीं, तो पार्टी का इनसे जबर्दस्त नुकसाना हो सकता है।

रमेश चेनिंथाला के बदलाव वाले बयान के दो तरह के अर्थ लगाए जा रहे है। एक वर्ग कह रहा है कि उनकी यात्रा के अंत तक किसी प्रकार के भारी राजनैतिक परिवर्तन की कोई गुंजायश नहीं है। इसलिए उनके उस बयान को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। उनका कहना है कि यदि कुछ बदलाव होता भी है, तो वह कैबिनेट में होगा, जिसके द्वारा अल्पसंख्यकों के प्रति दिख रहे भारी झुकाव को कुछ कम किया जा सकता है।

लेकिन दूसरे वर्ग के लोग भी हैं, जो राज्य की जनता को बताना चाहते हैं कि भारी बदलाव का मतलब भारी बदलाव ही होगा। उनका कहना है कि वह बदलाव पूरे यूडीएफ की राजनीति के लिए लाभकारी बदलाव वाला सिद्ध होगा। नेतृत्व में बदलाव की संभावना से तो वे भी इनकार करते हैं, लेकिन उनका कहना है कि इस बदलाव के बाद रमेश चेनिंथाला के गुट का बहुत महत्व मिलने वाला है। श्री चेनिंथाला द्वारा शुरू की गई यात्रा का उद्देश्य भी यही है।

कांग्रेस तो आपसी गुटबंदी की शिकार है ही, उसके सहयोगी दलों की स्थिति भी इस मानक पर कुछ बेहतर नहीं है। उदाहरण के लिए केरल कांग्रेस (मणि) के अध्यक्ष के एम मणि खुद एक बड़ी उलझन के शिकार हो रहे हैं। उन पर पीसी जाॅर्ज के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव पड़ रहा है, क्योकि सरकार के मुख्य सचेतक के रूप में उनकी भूमिका ने मणि गुट के एक वर्ग को नाराज कर दिया है। उन्होंने अनेक जिंदा और दिवंगत यूडीएफ नेताओं के खिलाफ जहर उगला है। पी जे जोसफ का गुट चाहता है कि के एम मणि पीसी जोसफ के खिलाफ कार्रवाई करें। यदि कार्रवाई नहीं की गईए तो पीजे जोसफ गुट बगावत कर सकता है और इसके कारण यूडीएफ सरकार पर ही संकट आ सकता है।

पीसी जाॅर्ज ने जनाधिपत्य संरक्षा समिति की अध्यक्ष के आर गौरी के खिलाफ भी आपत्तिजनक बातें की थी। समिति भी उन्हें हटाए जाने की मांग कर रही है और धमकी दे रही है कि यदि उन्हें मुख्य सचेतक के पद से नहीं हटाया गया, तो समिति यूडीएफ को छोड़ भी सकती है, हालांकि इसके एक मात्र विधायक समिति द्वारा यूडीएफ छोड़े जाने के पक्ष में नहीं हैं। (संवाद)