अकाली दल इसकी मांग कर रहा है। यह दूसरा मामला है, जिसमें अकाली दल अभियुक्त को फांसी दिए जाने से बचाना चाहता है। पहला मामला पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजौना से संबंधित है। जब उसे फांसी दी जानी थी, उसके दो दिन पहले ही उसका सजा को टाल दी गई। ऐसा मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल के राष्ट्रपति से मिलने के बाद हुआ था। दोनों ने मिलकर राष्ट्रपति से क्षमा याचना की थी।
भुल्लर के मामले में अकाली दल जो कर रहा है, वह समझ में तो आता है, लेकिन कांग्रेस के कुछ बड़े नेता जो कर रहे हैं, वह समझ से परे है। वे यह भूल रहे हैं कि 1993 के उस बम धमाके के शिकार कांग्रेस के कुछ नेता भी हुए थे। भाजपा ने इस मामले में परस्पर विरोधी रवैया अख्तियार कर रखा हैं। एक तरफ सुषमा स्वराज बलात्कारियों को फांसी की सजा देने की मांग कर रही है, तो दूसरी ओर उनकी पार्टी कह रही है कि अदालत जो भी सजा दे, उस पर अमल होना चाहिए। सच तो यह है कि भाजपा की असली कोशिश बादल सरकार में अपने मंत्रियों की कुर्सी बचाने तक सीमित है।
भुल्लर को बचाने के लिए अकाली दल क्या तर्क दे रहे हैं, इसके विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट उन सारे तर्कों को पहले ही खारिज कर चुकी है। सच तो यह है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भुल्लर की उस अंतिम याचिका को भी खारिज कर दिया, जो राष्ट्रपति द्वारा क्षमा याचिका को निरस्त करने के बाद अदालत में दायर की गई थी। उसमें भी सुप्रीम कोर्ट ने सारे तर्कों को सुना था।
अकाली दल के तर्कों को सिर्फ मृत्यु दंड की समाप्ति के अभियान के संदर्भ में ही कुछ उचित समझा जा सकता है। पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि मृत्यु दंड को ही समाप्त किए जाने के मामले पर गंभीरता से बहस की जरूरत है। इस पर व्यापक बहस होनी चाहिए। पर इस मसले पर जबतक कोई निर्णय नहीं हो जाता है, उस समय तक तो देश के कानून के तहत ही कार्रवाई हो सकती है। इसलिए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो अंतिम फैसला है, उसके अनुसार फांसी की सजा पर अमल की जानी चाहिए।
अकाली दल कह रहा है कि यदि भुल्लर को फांसी दी गई, तो पंजाब में शांति के माहौल को झटका लग सकता है और इसके कारण सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है। उसके नेता कहते हैं कि उनका दल प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर काफी चिंतित है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राज्य का माहौल तनावपूर्ण हो गया है। उनका मानना है कि यदि कोर्ट के फैसले पर अमल किया गया, तो प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति काफी बिगड़ जाएगी और उससे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ेगी, जो समाज में शांति और सौहार्द नहीं चाहते।
पर सवाल उठता है कि इस तरह का तनावपूर्ण माहौल पैदा करने के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या अकाली दल खुद इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? क्या वह दमदमी टकसाल जैसे तत्वों के तुष्टिकरण में नहीं लगा हुए है। क्या उसके जैसे तत्वों के समर्थन के लिए उसने पिछले विधानसभा चुनाव में आसमान जमीन एक नहीं किया था? सिर्फ अकाली दल ने ही नहीं, बल्कि सिखों के सुप्रीम धार्मिक संस्था ने भी बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजौना को जिंदा शहीद घोषित कर दिया था। इन सबके कारण ही राज्य में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ रहा है।
वर्तमान पीढ़ी को शायद नहीं पता है कि 1980 के बाद कैसे अकाली दल और कांग्रेस ने पंजाब में आतंकवाद का माहौल तैयार किया था। 1977 मे पंजाब में अकाली दल की सरकार बनी थी। उस सरकार को कमजोर करने के लिए ज्ञानी जैल सिंह ने 1978 में दल खालसा नाम के संगठन को बढ़ावा दिया गया था। चंडीगढ़ के सेक्टर 22 के एक होटल में एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था, जिसमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल हुआ था। इस प्रेस कांफ्रेंस को दल खालसा के प्रमुख गजींदर सिंह ने संबोधित किया था। उस प्रेस कांफ्रेंस के बाद होटल का बिल आंेकार चंद ने चुकाया था। ओंकार चंद उस समय ज्ञानी जैल सिंह के दाहिने हाथ माने जाते थे और वह पंजाब कांग्रेस भवन ट्रस्ट के सचिव थे। (संवाद)
भुल्लर के नाम पर अपने पापों को धोने का प्रयास
आंतकवाद के खेल में अकाली और कांग्रेस दोनों शामिल रहे हैं
बी के चम - 2013-04-25 01:48
पाखंड तुम्हारा नाम राजनीति है। यह उनके संदर्भ में कहा जा रहा है, जो 1980 के दशक में आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की वकालत करते थे, पर आज अदालत से सजा पाए हुए आतंकवादियों के लिए भी दया की मांग कर रहे हैं। वे प्रायः यह कहते हुए दिखाई पड़ते हैं कि कानून अपना काम करेगा, पर आज जब कानून अपना काम कर रहा है, तो वे बीच आकर खड़े हो रहे हैं। ताजा उदाहरण 1993 के एक बम धमाके के अभियुक्त देवींदर सिंह भुल्लर को लेकर की जा रही मांग है।