पिछले 5 दशकों से संसद में कामकाज के तौरतरीको की एक परिपाटी विकसित हुई है। एक परंपरा कायम हुई है। उन परंपराओं को लिपिबद्ध भी कर लिया गया है। 2001 में संसद ने एक 60 सूत्री कोड की पुष्टि भी कर दी। इसके बावजूद संसद का सत्र सही ढंग से नहीं चल पाता। इसके कारण संसद का काम बार बार प्रभावित होता है। विधेयक बिना पास हुए पड़े रहते हैं और कई बार तो बिना किसी बहस के ही अनेक विधेयकों को आनन फानन में पास कर दिया जाता है। बिना किसी बहस के वे कानून बन जाते हैं।

लोग उम्मीद करते हैं कि सांसद उन विधेयको पर बहस करें और जनता से जुड़े मसलों को बहस के दौरान संसद में उठाएं। उनकी समस्याओं को हल करने की दिशा में प्रयास करें। उन्हें सरकार के कामकाम की देखरेख करने वाले एक वाचडाॅग की भूमिका में रहना चाहिए। लेकिन हो यह रहा है कि संसद का कामकाज ही नहीं हो पाता। इसे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने प्रतिस्पर्धात्मक हुल्लड़बाजी कहा था। उन्होंने सलाह दी थी कि जो सांसद हुल्लड़बाजी करते हैं, उन्हे निलंबित कर दिया जाना चाहिए, पर उनके इस प्रस्ताव को राजनैतिक दलों ने खारिज कर दिया। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि संसद चलाना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन सरकार विपक्ष से उम्मीद करती है कि वह संसद चलाने में बाधा उत्पन्न नहीं करे। क्या अब समय नहीं आ गया है कि संसद के सदस्य अपनी छवि को दुरुस्त करें और राजनैतिक पार्टियां यह दिखाएं कि वह जनता के हितों की परवाह करती हैं?

इस सत्र का पूर्वाद्ध श्रीलंका तमिल पर हुए अत्याचार के मसले पर बाधित रहा। बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा मुलायम सिंह यादव पर की गई टिप्पणियों ने भी संसद को चलने देने से रोका। बार बार संसद के काम में बाधा पड़ने से संसद के काम काज के लिए बहुत की कम समय बचा। ऐसे माहौल में राज्यसभा से एक वित्तीय विधेयक बिना किसी चर्चा के ही पारित कर दिया गया।

संसद का उत्तराद्र्ध शुरू हो गया है, लेकिन इसकी स्थिति भी निराशाजनक ही है। पिछला शीतकालीन सत्र का पहला दिन भी ऐसे ही शुरू हुआ था, जैसा कि संसद का उत्तराद्ध्र्र का पहला दिन था। शीतकालीन सत्र की समाप्ति विपक्षी सांसदों द्वारा अनेक मसलों पर किए गए विरोध के साथ ही हुई थी। पिछले मंगलवार को संसद में गजब का माहौल था। सभी पार्टियां अपने अपने मुद्दे उठा रही थीं। तेलंगाना के मसले पर कुछ लोग हंगामा कर रहे थे, तो कुछ लोग मासूमो के साथ हो रहे बलात्कार कर कड़ा कानून बनाने की मांग कर रहे थे। कोयला घोटाले का मसला भी उठ रहा था। कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट में कानून मंत्री द्वारा छेड़छाड़ की कोशिश का विरोध करते हुए भाजपा के सांसद प्रधानमंत्री और कानून मंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। वे कह रहे थे कि जबतक उन दोनों का इस्तीफा नहीं हो जाता, वे संसद चलने ही नहीं देंगे।

अब संसद के इस सत्र के कुछ ही दिन बचे हुए हैं। ऐसे माहौल में संसद का लगातार नहीं चलना बेहद चिंता का विषय है। सांसदों का मुख्य काम कानून बनाना है, लेकिन इस मुख्य काम के प्रति वे चिंतित नहीं दिखाई पड़ रहे है। सदन के सामने अनेक वित्तीय विधेयक हैं। खाद्य सुरक्षा विधेयक, भूमि अधिग्रहण विधेयक और अन्य अनेक महत्वपूर्ण विधेयक सदन के सामने हैं और उनका पारित होना बहुत ही जरूरी है। विपक्ष और सरकार को कोई तरीका तलाशना चाहिए, जिससे इन विधेयकों पर बहस हो सके और उन्हें पारित किया जा सका। (संवाद)