प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आर्थिक सलाह परिषद का अनुमान है कि वर्तमान वित्त वर्ष में देश की आर्थिक विकास दर 6 दशमलव 4 फीसदी रहेगी। बजट का लक्ष्य 6 से 6 दशमलव 7 फीसदी विकास दर हासिल करने का लक्ष्य है। एशियाई विकास बैंक को लगता है कि भारत की विकास दर इस साल 6 फीसदी रहेगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को लगता है कि विकास वृद्धि की यह दर 5 दशमलव 7 फीसदी होगी। मुद्राकोष द्वारा भारत की विकास दर को लेकर किया गया यह आकलन उसके द्वारा बांग्लादेश, श्रीलंका और इंडोनेशिया के लिए किए गए विकास दर के आकलन से भी कम है।
हमारे मौसम विभाग की शुरुआती भविष्यवाणी के अनुसार इस साल हमारे देश में मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद जताई गई है। उसकी यह भविष्यवाणी हमारे नीति निर्माताओं को राहत की सांस लेने का मौका दे रहे हैं। उनके लिए राहत की बात यह भी है कि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रा स्फीति की दर गिरकर अब 6 फीसदी से भी नीचे आ गई है। खाद्य और इंधन सामग्रियों को यदि बाहर रखा जाय, तो कोर मुद्रास्फीति दर 4 फीसदी के आसपास आ गई है।
लेकिन वित्त मंत्री खाद्य सामग्रियों में बढ़ रही महंगाइ्र की लगातार उपेक्षा कर रहे हैं और इन्हें छोड़कर मुद्रास्फीति को लगातार कम होता देख रहे हैं। इसलिए वे भारतीय रिजर्व बैंक से उम्मीद करते हैं कि वह ब्याज दर में कटौती करे। मुख्य आर्थिक सलाहकार रघुराम राजन ने भी भारतीय रिजर्व बैंक से ब्याज दर में कटौती किए जाने की उम्मीद जाहिर की है। ऐसा करके वे भी वित्तमंत्री के विचार से अपनी सहमति दिखा रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डाॅक्टर सी रंगराजन इस बात से सहमत है कि औद्योगिक विकास की दर अपने सबसे नीचले स्तर को छू चुकी है और इससे नीचे वह अब नहीं जा सकती। उन्हें यह भी लग रहा है कि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रा स्फीति की दर के नीचे गिरने के साथ राजकोषीय मोर्चे पर कठिनाइयां भी घटेंगी। जहां तक ब्याज दर को कम करने की बात है तो भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को लगता है कि आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति की दर का क्या होता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। वे ब्याज दरों से संबंधित निर्णय करते समय विदेश व्यापार के घाटे और भुगतान संतुलन की स्थिति पर भी नजर रखना चाहते हैं।
दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एशिया प्रशांत से संबंधित अपनी रिपोर्ट जारी की है। उस रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल खराब प्रदर्शन के बाद इस साल एशिया महादेश की आर्थिक उपलब्धियां बेहतर हो सकती हैं। लेकिन मुद्राकोष भारत में मुद्रास्फीति की दर को लेकर बहुत उत्साहित नहीं दिखता। उसे लगता है कि विकास दर में तो तेजी आएगी, लेकिन मुद्रास्फीति दर का स्तर भी अच्छा खासा बना रहेगा, जिसके कारण चिंता भी बनी रहेगी। उसका मानना है कि भारत में विकास दर की कुछ बेहतरी बाहरी मांग बढ़ने के कारण ही संभव हो पाएगी। गौरतलब है कि विश्व का आर्थिक माहौल अब पहले से बेहतर हो रहा है।
आधार कार्ड के इस्तेमाल से सीधे लाभ स्थानांतरण के मसले पर भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने टिप्पणी की है। उसने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन उसने चेतावनी दी है कि इसके कारण भारत को अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। आधार कार्ड अभी पूरा तैयार ही नहीं हुआ है और इसके पूरा तैयार होने में अभी बहुत समय लगेगा। यह 2014 ईस्वी तक भी पूरा नहीं बन पाएगा। (संवाद)
मुद्राकोष को भारत की मंद विकास दर से मुक्ति की उम्मीद
आधार कार्ड से सब्सिडी देने के काम को बताया चुनौतीपूर्ण
एस सेतुरमन - 2013-04-30 01:29
पिछले 6 महीनों से केन्द्र सरकार द्वारा किए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों का शायद ही कोई लाभी भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलता दिखाई दे रहा है। सितंबर महीने में केन्द्र सरकार ने विदेशी पूंजी के भारत में आने के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे। किराना क्षेत्र में विदेशी पूंजी के प्रवाह के बढ़ने के उपायों की भी घोषणा की गई थी। इसके बावजूद भारत का निवेश माहौल बेहतर नहीं हुआ है। अब वित्तमंत्री पी चिदंबरम महसूस कर रहे हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर में कटौती किए जाने से शायद स्थिति बेहतर हो जाय।