चौटाला के नेतृत्व वाले इंडियन नेशनल लोकदल की स्थिति इस समय सबसे अनिश्चित बनी हुई है। खुद ओमप्रकाश चैटाला जेल में हैं। शिक्षक भर्ती घोटाले में उन्हें 10 साल के जेल की सजा मिली है। उनके बेटे अजय चैटाला को भी इसी मामले में इतने ही सालों की सजा मिली है और वे भी जेल में हैं। दोनों बाप बेटे जमानत पाने की कोशिश में लगे हुए हैं।
दूसरी तरफ भाजपा और हरियाणा जनहित कांग्रेस के संबंधों में तनाव पैदा होने लगे हैं। कांग्रेस में भी गुटबंदी बढ़ती जा रही है। प्रदेश में कानून व्यवस्था के बिगड़ते हालात का भी असर कांग्रेस की राजनीति पर पड़ रहा है। खासकर दलितों पर बढ़ते हमलों की घटनाओं ने सत्तारूढ़ दल की आंखों की नींद हराम कर रखी है।
इंडियन नेशनल लोकदल का राजनैतिक भविष्य क्या होगा, इसके बारे में अभी कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है। यदि जेल में बंद इनके दोनों नेताओं को जमानत मिल भी जाती है, तो वे अपनी राजनैतिक सक्रियता बहाल करेंगे, इसकी संभावना कम दिखाई पड़ रही है। इसका कारण यह है कि उनके खिलाफ दो और मुकदमे चल रहे हैं। एक मुकदमा तो आय से अधिक संपत्ति से संबंधित है और दूसरा मुकदमा एक और भती घोटाले से ताल्लुक रखता है। यदि इन दोनों मुकदमों में भी चैटाला बाप बेटे को सजा मिल जाती है, तो उनके दल के जनाधार पर इसका काफी असर पड़ेगा।
जनाधार प्रभावित होने के कारण दल के पास दूसरी पार्टी या पार्टियों से गठबंधन या तालमेल करने के अलावा और भी कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। लोकदल का आधार जाटों के बीच में है और भारतीय जनता पार्टी का असर गैर जाट मतों पर है। जाहिर है चैटाला का दल भाजपा से तालमेल करना चाहेगा। ऐसा तभी संभव है, जब भाजपा और हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठबंधन टूट जाय। लोकदल और भाजपा को एक साथ लाने में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी दिलचस्पी ले सकते हैं। इसका कारण यह है कि भाजपा के साथ वे पंजाब मे सरकार चला रहे हैं और वे चैटाला के पारिवारिक दोस्त भी हैं।
वैसे भाजपा और इंडियन नेशनल लोकदल में प्रेम और नफरत का रिश्ता रहा है। 1996 के चुनाव में भाजपा ने बंशीलाल की हरियाणा विकास पार्टी के साथ हाथ मिलाया था और तब बंशीलाल के नेतृत्व में प्रदेश में सरकार का गठन भी हुआ था। लेकिन बाद में भाजपा ने ओमप्रकाश चैटाला के दल से हाथ मिला लिया और उसके बाद ओमप्रकाश चैटाला की सरकार का गठन हुआ। पर बाद में भाजपा का उसके साथ भी गठबंधन नहीं रहा। पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों अलग अलग लड़े और इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस की फिर दुबारा सरकार बन गई। वैसे उस चुनाव में चैटाला के दल को भाजपा की अपेक्षा बहुत ज्यादा सफलता मिली।
इसी बीच भजन लाल की हरियाणा जनहित कांग्रेस से भाजपा का गठबंधन हुआ। अब भजन लाल इस दुनिया में नहीं हैं। पर उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई के नेतृत्व वाली पार्टी के साथ भाजपा का गठबंधन बरकरार है। गठबंधन के तहत दोनों के बीच करार है कि विधानसभा के चुनाव में दोनों 45- 45 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करेंगे और लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा 8 सीट पर व हरियाणा जनहित कांग्रेस दो सीटों पर चुनाव लड़ेंगी।
पर अब दोनों के रिश्तों में तनाव पैदा हो रहा है। तनाव का एक कारण स्थानीय निकायों के चुनाव हैं। दोनों पार्टियों ने मिलकर फैसला किया था कि वे इस चुनाव में पार्टी के टिकट पर अपने उम्मीदवारों को नहीं उतारेंगी। पर भाजपा की कोर समिति ने पिछले दिनों फैसला किया कि पार्टी अपने चुनाव चिन्ह पर ही अपने उम्मीदवारों को मैदान पर उतारेंगी। हरियाणा जनहित कांग्रेस इसका विरोध कर रही है।
इस समस्या का चाहे जो भी समाधान निकले, दोनों पार्टियों के बीच ज्यादा दिनों तक निभने वाली नहीं है। हरियाणा की राजनीति जाति से निर्धारित होती है और जाति की इस राजनीति में ओमप्रकाश चैटाला के दल के साथ जाटों का समर्थन बना हुआ है। भारतीय जनता पार्टी और हरियाणा जनहित कांग्रेस जाट विरोधी मतदाताओं के बल पर राजनीति करती हैं। जाहिर है, दोनों का लक्षित जनाधार एक ही है। इसलिए दोनों आपस में मिलकर भी बहुत बढ़ी ताकत बनने की उम्मीद नहीं करते। पर यदि भाजपा और इंडियन नेशनल लोकदल एक साथ आ जाएं, तो दोनों की ताकत बढ़ जाती है। देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में हरियाणा की राजनीति में क्या होगा। (संवाद)
हरियाणा की राजनीति में बदलाव के संकेत
इंडियन नेशनल लोकदल भाजपा से कर सकता है तालमेल
बी के चम - 2013-04-30 16:28
हरियाणा में लोकसभा के चुनाव होने मे 12 महीने और विधानसभा के चुनाव मे 18 महीने बाकी हैं, पर वहां चुनाव का परिदृश्य अभी से तैयार होने लगा है। यह परिदृश्य राजनीति में बदलाव को प्रेरित कर रहा है। नये समीकरण बनने और पुराने समीकरण बिगड़ने लगे हैं।