अब तक किसी एक लेख में उन सारे भ्रष्टाचारों का उल्लेख करना भी संभव नहीं है। केन्द्र सरकार के मंत्री ही नहीं, खुद प्रधानमंत्री पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। सरकार अपने मंत्रियों और खुद प्रधानमंत्री को बचाने के लिए हताशापूर्ण कदम उठा रही है और ऐसे माहौल में विपक्ष से जो अपेक्षा की जाती है, उस पर वह खरा नहीं उतर रहा है।

आज विपक्ष संख्या के लिहाज से बहुत मजबूत है। सच कहा जाय, तो संसद में आज सरकार अल्पमत में है, जबकि विपक्ष बहुमत में है। वह संसद के दोनों सदनों में सरकार की अपेक्षा ज्यादा मजबूत है। खासकर डीएमके और तृणमूल कांग्रेस द्वारा यूपीए से बाहर हो जाने के बाद केन्द्र की सरकार स्पष्ट रूप से अल्पमत में आ गई है। इस अल्पमत की सरकार के खिलाफ बहुमत वाले विपक्ष में जबर्दस्त आक्रोश है, लेकिन विपक्ष इसका कुछ बिगाड़ नहीं पा रहा है, जबकि 1980 के दशक के उत्तरार्ध में कमजोर होने के बाद भी विपक्ष सरकार पर भारी पड़ रहा था। 1984-85 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्ववाली कांग्रेस को 400 से भी अधिक सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उस समय भारतीय जनता पार्टी के सिर्फ दो सांसद लोकसभा में चुनकर गए थे। उसके लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी तक अपना चुनाव हार गए थे। किसी भी विपक्षी पार्टी को कुल लोकसभा सांसदों की संख्या के 10 फीसदी सांसद नहीं थे। इसके कारण लोकसभा के अंदर कोई विपक्ष का नेता भी नहीं था।

वैसी हालत में भी तब विपक्ष ने राजीव गांधी की भारी बहुमत वाली सरकार की नाक में दम कर रखा था। उस समय राजीव सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मात्र दो मामले सामने आए थे। एक मामला था एचडीडब्ल्यू पनडंुब्बियों का तो दूसरा था बोफोर्स तोप का। दोनो सौदों में दलाली की राशि भी कोई बहुत ज्यादा नही ंथी। उस समय मीडिया का आज वाला विस्तार भी नहीं था। इन सबके बावजूद राजीव गांधी सरकार की हालत खराब हो गई थी। पर आज केन्द्र की सरकार का विपक्ष कुछ बिगाड़ नहीं पा रहा है।

आखिर क्यों? आज जब सरकार के खिलाफ एक से एक बड़े भ्रष्टाचार के मसले सामने आ रहे हैं और उन मसलों पर सरकार के पास कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं है, फिर भी विपक्ष निस्तेज है। कायदे से तो उसे इस सरकार को ही गिरा देना चाहिए था और इसकी जगह या तो कोई वैकल्पिक सरकार बनाना चाहिए था या लोकसभा का फिर से चुनाव करवाया जाना चाहिए था, पर यहां तो विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक लाने से डर रही है। आखिर क्यों?

इसका कारण भ्रष्टाचार है। केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों के दौर से जरूर गुजर रही है, लेकिन भ्रष्टाचार ही उसकी रक्षा में आ खड़ा हुआ है। विपक्ष के अनेक नेता भ्रष्टाचार के मामले में लिव्त रहे हैं। सच कहा जाय, तो सत्ता में जाकर अनेक नेताओं ने भ्रष्टाचार का स्वाद चखा और उनका वह स्वाद आज कांग्रेस की मदद कर रहा है। लोकसभा में कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार स्पष्ट रूप से अल्पमत में है। तमाम संसदीय समितियों में भी वह अल्पमत में है। यदि विपक्ष एकजुट हो जाए तो लोकसभा में उसकी सरकार गिर सकती है और सभी संसदीय समितियों मे उसको लेने के देने पड़ सकते हैं। पर सरकार निश्चिंत है। उसे अपने ऊपर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों की कोई चिंता नहीं है।

आखिर उसे चिंता क्यों हो? भ्रष्टाचार के हथियार से यदि उस पर हमला हो रहा है, तो उस हमले से रक्षा करने के लिए भ्रष्टाचार की ढाल भी उसके हाथ में है। वह ढाल कुछ विपक्षी नेताओं द्वारा किए गए भ्रष्टाचार का है। वे नेता भ्रष्टाचार के डूबने के बाद करोड़ों अरबों की संपत्ति के मालिक हो गए हैं और सीबीआई के पास आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा आमदनी करने का मामला लंबित पड़ा है। जाहिर है उनकी नकेल उस सरकार के हाथ में जिसके नियंत्रण में सीबीआई है। ये तीन मुख्य नेता जो सरकार से बाहर होकर भी केन्द्र की सरकार को सीबीआई के कारण समर्थन देने के लिए बाध्य हो रहे हैं, उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं।

उनमें से एक नेता मुलायम सिंह यादव हैं, जिनके पास लोकसभा के 22 सांसद हैं। दूसरी नेता मायावती हैं, जिनके पास लोकसभा के 21 सांसद है। तीसरे नेता लालू यादव के पास भी लोकसभा के 3 सांसद हैं। तीनों नेताओं के पास कुल मिलाकर 46 लोकसभा सांसदों का समर्थन है। वे संकट की घड़ी में केन्द्र सरकार को इन 46 सांसदों का समर्थन दिला सकते हैं। इसके कारण अन्य विपक्षी पार्टियों को यह हिम्मत नहीं हो पा रही है िकवह केन्द्र सरकार के खिलाफ अविश्वास को प्रस्ताव लाएं, क्योंकि यदि ऐसा करने पर यदि वे संसद का मतदान हार जाते हैं, तो फिर लाभ कांग्रेस का ही होगा। इसके कारण लोगों के बीच कांग्रेस की स्थिति मजबूत होगी ओर अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली पार्टियां हंसी का पात्र बन जाएंगी।

मुलायम सिंह यादव कह रहे हैं कि केन्द्र की सरकार सीबीआई का डर दिखाकर या दूसरे शब्दों में कहें तो सीबीआई का दुरुपयोग कर उनका समर्थन हासिल कर रही है। लेकिन उनका यह कहना गलत है। सच तो यह है कि केन्द्र सरकार सीबीआई पर अपने नियंत्रण का इस्तेमाल करके मुलायम सिंह यादव, मायावती और लालू यादव जैसे लोगों को बचा रही है और बचाने के एवज में वह उनका समर्थन पा रही है। यहां मुख्य समस्या सीबीआई नहीं, बल्कि इन नेताओं द्वारा किया गया भ्रष्टाचार है। यदि केन्द्र सरकार सीबीआई का इस्तेमाल किसी के खिलाफ भी कर सकती है, तो वह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी या ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खिलाफ ऐसा क्यों नहंी कर रही है? वह उन्हीं के खिलाफ सीबीआई पर दबाव डालकर जांच को दबा रही है, जिनके खिलाफ जांच चल रही है। मुलायम से कोई पूछे कि 1980 के दशक के अंतिम साल में कांग्रेस ने उनके खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल क्यों नहीं किया?

स्पष्ट है भ्रष्टाचार असली समस्या है न कि सीबीआई। भ्रष्टाचार ने आज लोकतंत्र के सामने बहुत बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। इसके सामने लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपना स्वाभाविक प्रवाह नहीं पकड़ पा रही है। इसलिए यदि हमें लोकतंत्र को बचाना है तो भ्रष्टाचार के राक्षस से छुटकारा पाना ही होगा। (सवाद)