कांग्रेस के उपाध्यक्ष अपनी पार्टी के निर्विवाद नेता हैं। यदि उनकी पार्टी की सरकार बनती है, तो उन्हें प्रधानमंत्री बनाने पर किसी को एतराज नहीं होगा। उनके नाम की घोषणा कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में भले नहीं हुई हो, लेकिन इसके संभावित उम्मीदवार वे ही हैं और इसमें किसी को शक नहीं है।
राहुल गांधी उत्तर प्रदेश को बहुत ही गंभीरत स ेले रहे हैं। विधानसभा के चुनाव में वे हालांकि पिट चुके हैं, पर उन्हे लगता है कि लोकसभा चुनाव में मतदाता वोट देते समय विधानसभा चुनावों से भिन्न तरीके से व्यवहार करते हैं। इसलिए वे नये उत्साह के साथ उत्तर प्रदेश में पार्टी को फिर से गठित करने में लगे हुए हैं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी सांसदों की दिल्ली में एक बैठक हुई। बैठक में राहुल ने कहा कि उत्तर प्रदेश से कांग्रेस को कम से कम 40 सीटें हासिल करने की प्रबल उम्मीद है, इसलिए वे पूरे उत्साह के साथ वहां चुनाव की तैयारियों में जुट जाएं।
राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश को 8 जोन में विभाजित कर दिया है और सभी जोन मे एक एक जोनल अध्यक्ष नियुक्त कर डाला है। अब वे जोनल अध्यक्षों में बदलाव कर रहे हैं।
जिन जोनों के अध्यक्ष निवर्तमान लोकसभा सांसद हैं, उन्हें वहां से हटाया जा रहा है, ताकि वे अपने अपने लोकसभा क्षेत्रों मंे अपना पूरा समय दे सकें। उनकी जगह वैसे लोगों को जोनल अध्यक्ष बनाया जा रहा है, जिन्हें लोकसभा का आगामी चुनाव लड़ना ही नहीं है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री से सलाह मशविरा कर राहुल गांधी जिलों और नगरों के अध्यक्षों की सूची तैयार कर रहे हैं, जिसे जल्द ही सार्वजनिक कर दिया जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी अपना कार्ड बहुत ही सावधानी से खेल रहे हैं। वे खुले तौर पर भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार न तो हैं और न ही बनने की बात कर रहे हैं, लेकिन यदि नरेन्द्र मोदी के नाम पर सहमति नहीं होती है, तो भाजपा की ओर से आम सहमति के उम्मीदवार हो सकते हैं। भाजपा का अध्यक्ष भी वे दूसरी बार इसी तरीके से बने हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खासमखास हैं।
राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश से भाजपा को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जिताने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। वे पार्टी के सभी नेताओं को अपने साथ लेकर चल रहे हैं ताकि एक होकर पार्टी लोकसभा के चुनाव का सामना कर सके और ज्यादा से ज्यादा सीटों पर यह जीत सके। उत्तर प्रदेश की जीत पार्टी के लिए ही नहीं, बल्कि उनके लिए भी बहुत मायने रखती है।
राजनाथ सिंह ने तो अपने आपको प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में कभी पेश नहीं किया है, लेकिन प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव खुलकर प्रधानमंत्री बनने की अपनी योजना से पार्टी नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को अवगत करा रहे हैं। वे सभाओं में अपने लोगों से कहते हैं कि यदि पार्टी के 50 से ज्यादा उम्मीदवार जीते, तो त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में वे प्रधानमंत्री बन सकते हैं।
मुलायम सिंह यादव गैर कांग्रेस गैर भाजपा मोर्चे की बात लगातार करते रहे हैं, हालांकि मजबूरी वश वे अभी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का बाहर से समर्थन कर रहे हैं। समर्थन के बावजूद वे कांग्रेस की आलोचना करने में किसी प्रकार की झिझक नहीं दिखाते। इसके कारण उनकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है, फिर भी वे अपनी इस रणनीति को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव की तैयारियों में प्रदेश में मुलायम सिंह की पार्टी सबसे आगे है। लोकसभा उम्मीदवारों की पहली सूची उसने जारी भी कर दी है और उसके उम्मीदवार अभी से लोकसभा क्षेत्र में अपने चुनाव अभियान में जुट भी गए हैं।
बसपा प्रमुख मायावती ने भी प्रधानमंत्री बनने की अपनी इच्छा किसी से नहीं छिपाई है। वह भी अपने समर्थकों से कह रही है कि यदि उन्हें वे प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, तो ज्यादा से ज्यादा बसपा उम्मीदवारों की जीत निश्चित करें। मायावती उत्तर प्रदेश से तो ज्यादा से ज्यादा सीटो ंपर जीत हासिल करना ही चाहती हैं, अन्य प्रदेशों पर भी उनकी नजर टिकी हुई है।
मायावती जातिवादी समीकरणों पर भरोसा कर रही हैं। उन्होंने जातियों की भाईचारा समितियों को फिर से जिंदा किया है और उन समितियों की सभाएं होनी शुरू भी हो गई हैं।
प्रधानमंत्री पद पर बैठने की इच्छा पालने वाले ये सभी नेता अपनी अपनी पार्टी को ज्यादा से ज्यादा सीटो पर जीत सुनिश्चित करवाने के लिए अपना सबकुछ दाव पर लगाने को तैयार बैठे हैं। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री पद के अनेक दावेदार
अस्सी लोकसभा सीटों की भूमिका होगी महत्वपूर्ण
प्रदीप कपूर - 2013-05-04 16:03
लखनऊः उत्तर प्रदेश लोकसभा में सबसे ज्यादा सांसद चुनकर भेजता है। इस बार प्रधानमंत्री पद के लिए भी सबसे ज्यादा दावेदार उत्तर प्रदेश से ही हैं। यही कारण यह कि देश की सबसे ज्यादा आबादी वाला यह प्रदेश राजनैतिक पार्टियों को सबसे महत्वपूर्ण अखाड़ा बन गया है।