एक जवाब यह है कि भारत को चीन के साथ ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए। इस बार तनाव के दौर में देश के कुछ नेता ऐसी ही बात कर रहे थे। वह कह रहे थे कि भारत अपनी ताकत से बलपूर्वक चीनी तंबुओं को उखाड़ दे और चीनी सैनिकों को वहां से खदेड़ दे। लेकिन इस तरह से भारत चीन द्वारा पैदा की गई इस समस्या का समाधान नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि सैनिक ताकत के लिहाज से हम चीन के मुकाबले कमजोर हैं। हम युद्ध में उसकी बराबरी नहीं कर सकते। युद्ध की उसकी तैयारियों के सामने हमारी तैयारियां नाकाफी हैं।
आखिर भारत चीन की किन किन हरकतों का सैनिक जवाब देता रहेगा? वह हमें लद्दाख की सीमा पर ही नहीं, बल्कि चारों तरफ से घेरने की कोशिश कर रहा है। वह अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा करता रहा है और वहां के लोगों को चीन का वीजा देते समय उस पर अलग से नत्थी चढ़ा देता है। जम्मू कश्मीर के लोगों को भी वीजा देते समय वह नत्थी का उपयोग करता है। नत्थी के उपयोग का मतलब है कि वह अरुणाचल प्रदेश और जम्मू- कश्मीर के लोगों को भारत का नागरिक नहीं मानता और भारत के नागरिक की तरह उसके साथ वीजा देने में बर्ताव नहीं करता। इसके अलावा चीन नेपाल, पाकिस्तान, म्यान्मार, बांग्लादेश, श्रीलंका, और मालदीव के साथ संरचनागत ढांचा विकास की संधि कर भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश कर रहा है।
जब चीन अपनी सामरिक शक्ति के द्वारा चीन के नापाक मंसूबों को चकनाचूर करने में सक्षम नहीं है, तो फिर उसके साथ वह कैसे निबटे? तो इसका जवाब यह है कि भारत को चीन के खिलाफ अपनी आर्थिक शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए। अब आर्थिक राजनय ने सामरिक राजनय से भी अपने आपको ज्यादा महत्वपूर्ण बना लिया है। संयोग से भारत इस राजनय का इस्तेमाल कर चीन पर न केवल दबाव बनाने में सक्षम है, बल्कि वह चीन को अपनी सीमा में रहने को बाध्य करने में भी सक्षम है।
भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार अब लगातार चीन मुखी होता जा रहा है। यह खासकर आयात के मामले में सच है। भारत का सबसे बड़ा व्यापार सहभागी लंबे समय तक अमेरिका रहा है, पर अब चीन का व्यापार भारत के साथ बढ़ता जा रहा है। ऐसा खासकर भारतीय आयात के क्षेत्र में हो रहा है। भारत चीन के मालों का एक बड़ा आयातक देश बनकर उभर रहा है। इसके कुल आयात में चीनी मालों का हिस्सा सबसे ज्यादा रहता है। आने वाले दिनों में यह और भी बढ़ने वाला है। पिछले साल भारत द्वारा चीन से 60 अरब डाॅलर के माल का आयात किया गया। यह 3 लाख 30 हजार करोड़ रुपये के बराबर है। इसके अलावा 2 से 3 अरब डाॅलर का चीनी माल भारत में तस्करी के माध्यम से आता है। भारत से होने वाला व्यापार के कारण चीन के करीब 20 लाख रोजगार पैदा होते हैं। जाहिर है, चीन के लिए भारत के साथ व्यापार बहुत मायने रखता है। आयात के बदले में भारत द्वारा चीन को किया गया निर्यात नगण्य है। भारत मुख्य रूप से चीन को लौह अयस्क का निर्यात करता है, जो भारत से ज्यादा चीन के हक में है। यदि चीन लौह अयस्क का भारत के अलावा किसी दूर दराज के देश से आयात करता है, तो वह उसे महंगा पड़ेगा। जाहिर है, वह भारत से किया जाने वाला आयात त्यागना नहीं चाहेगा।
अब भारत अपनी इसी शक्ति का इस्तेमाल चीन के साथ कर सकता है। यदि वह किसी भड़काऊ हालत से निबटने के लिए चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा देता है, तो उसे लेने के देने पड़ सकते हैं। वैसे भी आने वाले दिनों में भारत का बाजार और भी विस्तृत होने वाला है और अमेरिका व यूरोप के बाजारों पर अनिश्चय का साया मंडराते रहने वाला है। फिर चीन भारत के बाजार की उपेक्षा नहीं कर सकता। हम अपनी इस स्थिति का लाभ उठाकर चीन को अपनी औकात मे ंरहने के लिए बाध्य कर सकते हैं। (सवाद)
चीन का सामना कैसे करें?
आर्थिक हथियार ही सबसे बेहतर है
नन्तू बनर्जी - 2013-05-07 15:17
चीन ने अपनी सेना लद्दाख से हटा ली है और अब दोनों देशों के बीच सीमा पर बना हुआ तनाव फिलहाल समाप्त हो गया है। पर सीमा पर चीन द्वारा इस तरह का तनाव पैदा करने का यह न तो कोई पहला मौका था और न ही अंतिम। इस तरह की हरकतें चीन करता ही रहता है। आने वाले दिनों में भी वह कुछ ऐसी ही हरकतें करेगा। सवाल उठता है कि भारत चीन की इन हरकतों का कैसा जवाब दे और चीन को अपनी सीमा में रखने के लिए वह क्या कुछ करे?