सुशील मोदी के साथ नीतीश का बहुत ही अच्छा तालमेल चल रहा था। पिछले 7 साल में दोनों के बीच कभी भी कोई विवाद उभरते किसी ने नहीं देखा। जब कभी भी जद(यू) और भाजपा के बीच हितों का टकराव होता, तो सुशील कुमार मोदी नीतीश का पक्ष लेते दिखाई पड़ते और अंत में वही होता, जो नीतीश चाहते। केन्द्र के भाजपा नेताओं को समझाने का जिम्मा सुशील मोदी का था। इसके कारण ही अपने कोटे से भी ज्यादा का हिस्सा नीतीश पाते रहे और भाजपा लगातार उनके लिए त्याग करती रही। अनेक बार भाजपा का अपमानजनक स्थिति से भी गुजरना पड़ता, लेकिन उसके बावजूद भाजपा और जद(यू) के बीच यदि सौहार्द का माहौल बना रहा, तो उसका कारण सुशील कुमार मोदी और नीतीश के बीच गजब का तालमेल था।
नरेन्द्र मोदी के मसले पर भी बिहार के मोदी हमेशा नीतीश का ही साथ देते रहे। बार बार बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री का अपमानित किया जाता रहा। गिरीराज सिंह और अश्विनी कुमार चैबे तो नरेन्द्र मोदी के पक्ष में खड़े होते थे, पर सुशील कुमार मोदी ने कभी भी नरेन्द्र मोदी का बचाव नहीं किया। उलटे उन्होंने नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के लिए एक बेहतर उम्मीदवार बता दिया था। नीतीश के सुर में सुर उन्होंने कई बार मिलाए थे। इसके कारण उनकी तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के साथ टकराव भी होता रहता था। इसलिए जब प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष सुशील मोदी का पसंदीदा व्यक्ति बना और नरेन्द्र मोदी की तारीफ करने वाले हाथ मलते रह गए, तो लगने लगा था कि नीतीश सुशील और बिहार भाजपा की सहायता से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनने से रोकने में कामयाब हो जाएंगे।
पर पिछले दिनों सुशील मोदी ने नरेन्द्र मोदी के पक्ष में जिस तरह से खुलकर बयान दे डाले, उससे नीतीश के मंसूबों पर पानी फिर गया। बिहार के उपमुख्यमंत्री ने साफ साफ कहा कि भाजपा का प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन होगा, इसका निर्णय भाजपा ही करेगी। यानी अंतिम निर्णय एनडीए का नहीं, बल्कि भाजपा का होगा। यह जद(यू) के शरद यादव जैसे नेताओं के लिए संदेश था, जो कह रहे थे कि प्रधानमंत्री उम्मीदवार का फैसला एनडीए करेगा। प्रधानमंत्री उम्मीदवार के बारे में जब सुशील एक सभा को संबांधित कर रहे थे, तो उसमें यह बार बार नारा लगाया जा रहा था कि देश का पीएम नरेन्द्र मोदी जैसा हो। सुशील मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री के उम्मीदवार का निर्णय करते समय आपकी इच्छा का सम्मान किया जाएगा। यानी सुशील कुमार मोदी ने एक तरह से नरेन्द्र मोदी के उम्मीदवारी का समर्थन कर दिया। वह यहीं तक नहीं रुके, बल्कि नीतीश कुमार द्वारा पिछड़े वर्गों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने की राजनीति पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि हम पिछड़े अथवा अति पिछड़े वर्गों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने की राजनीति नहीं करते।
सुशील कुमार मोदी, लालकृष्ण आडवाणी और संघ के मोदी विरोधी लोगों का इस्तेमाल कर नीतीश नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रीय उभार को रोकना चाह रहे थे। इसमें सुशील कुमार मोदी उनके सबसे बड़े स्तंभ थे, क्योंकि केन्द्रीय भाजपा नेताओं को बिहार में जद(यू) के साथ किसी भी कीमत पर गठबंधन को बनाए रखने की आवश्यकता से वही आश्वस्त कर सकते थे। प्रदेश का अध्यक्ष भी उन्हीं का पसंदीदा आदमी है, इसलिए पार्टी की औपचारिक राय जाहिर करने में वही समर्थ थे। अब जब सुशील कुमार मोदी खुद नरेन्द्र मोदी के समर्थन में आ गए हैं, तो नीतीश कुमार के पक्ष में केन्द्र के भाजपा नेताओं से कौन बात करेगा?
सुशील मोदी लालकृष्ण आडवाणी के कट्टर समर्थकों में माने जाते हैं। राजनैतिक लोगों का मानना था कि प्रधानमंत्री की दौड़ में वे श्री आडवाणी का ही साथ देंगेे। लेकिन नरेन्द्र मोदी के पक्ष में बोलकर उन्होंने इस संभावना पर भी अब विराम लगा दिया है।
आखिर सुशील कुमार मोदी ने ऐसा क्यों किया? तो इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आज पूरा बिहार ही मोदी मय हो गया है। वे जहां भी जाते हैं, तो लोग उनके सामने ’’देश का पीएम कैसा हो, नरेन्द्र मोदी जैसा हो’’का नारा लगाते दिखाई पड़ते हैं। भाजपा कार्यकत्र्ताओं पर नरेन्द्र मोदी का नशा सिर चढ़कर बोल रहा है। उस तरह का माहौल यदि आज बना है, तो इसके लिए नीतीश कुमार ही जिम्मेदार हैं। उन्होंने अपने नरेन्द्र मोदी विरोध को कुछ ज्यादा ही लंबा खिंच दिया। उनके दल के अन्य नेता भी लगातार मोदी पर निशाना बनाते रहे। इसके कारण भाजपा के सभी नीतीश विरोधी अपने आप नरेन्द्र मोदी के समर्थक बन गए। सुशील कुमार मोदी इस मामले में नीतीश के साथ खड़े दिख रहे थे। इसके कारण पार्टी के अंदर जो कोई भी सुशील मोदी से गुस्सा पाल रहे थे, वे भी सभी के सभी नरेन्द्र मोदी के समर्थक हो गए। सुशील मोदी की भी पार्टी पर अपनी पकड़ है। लोगों के बीच में उनकी अपनी भी धाक है, लेकिन सुशील मोदी के समर्थन करने वाले भाजपा कार्यकत्र्ता और समर्थक तो वैसे भी नरेन्द्र मोदी के समर्थक हैं। और उन्हें सुशील को नरेन्द्र मोदी के साथ नहीं दिखना खटक रहा था। इसलिए वे भी सुशील कुमार मोदी पर लगातार दबाव बना रहे थे कि वे गुजरात के मुख्यमंत्री के साथ खड़े दिखाई दें।
नीतीश कुमार और उनके लोगों द्वारा नरेन्द्र मोदी का लगातार विरोध करना बिहार के उन लोगों को भी अच्छा नहीं लग रहा था, जो लालू के साथ साथ नीतीश के भी खिलाफ थे। गौरतलब है कि जद(यू) को बिहार का पिछले विधानसभा में कुल 22 फीसदी ही मत मिले थे। उसमें भी भाजपा के मतदाताओं का योगदान था। लालू को 24 फीसदी मत मिले थे। जाहिर है बिहार की जनता का बहुमत लालू और नीतीश दोनों के खिलाफ है। ऐसे लोग समर्थन के लिए किसी तीसरे व्यक्ति की तलाश में थे। नीतीश और लालू दोनों नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बोलते रहते हैं। लालू ने भी कह रखा है कि उनके जीते जी नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। इन दोनों द्वारा नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आग उगलने के कारण बिहार का बहुमत गुजरात के मुख्यमंत्री के पक्ष में हो गया है और बिना कुछ कोशिश किए हुए, आज नरेन्द्र मोदी बिहार के सबसे बड़े जनाधार वाले नेता हो गया हैं। ऐसे मोदीमय माहौल में यदि बिहार के मोदी को भी यदि गुजरात के मोदी का गुणगान करना पड़ रहा है, तो यह स्वाभाविक भी है। आज स्थिति यह हो गई है कि यदि बिहार में भाजपा को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव जीतना है, तो नरेन्द्र कुमार मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करना आवश्यक ही नहीं उनके लिए अनिवार्य हो गया है। (संवाद)
बिहार हो गया है मोदीमय
सुशील मोदी ने दिया नीतीश के मंसूबे को करारा झटका
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-05-08 17:06
नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार बनने से रोकने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री अपनी सरकार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी पर बहुत हद तक निर्भर थे। जब कभी भी नरेन्द्र मोदी के बिहार में आकर प्रचार करने की बात आती थी, तो नीतीश कहते थे कि बिहार में अपने एक मोदी( सूशील मोदी) पहले से ही हैं, बाहर (गुजरात) से किसी और मोदी को यहां आने की क्या जरूरत है?