लेकिन रैली के दिन जो हुआ, वह बहुत ही भयावह था। उस दिन मल्लपुरम में रैली हुई, पर आसपास के इलाकों में भारी हिंसा हुई। ईस्ट कोस्टल रोड के 100 किलोमीटर के दायरे में रैली में भाग लेने आ रहे पीएमके समर्थकों ने दलितों की झोपडि़यों को जला डाला। हिंसा दूसरे तरफ से भी हुई और बदले में सैंकड़ों गाडि़यों को आग के हवाले कर दिया गया। रैली में हिस्सा लेने आ रहे कुछ लोग दारू के नशे में थे। पीएमके के नेता दारू विरोधी मुहिम चलाते रहते हैं, लेकिन उनके समर्थक ही दारू के नशे में दलितों पर हमले कर रहे थे।
हिंसा का वह सिलसिला रैली समाप्त होने के बाद भी जारी रहा। सच तो यह है कि यदि दौर अभी भी छिटपुट रूप से जारी है। तमिलनाडु में कभी वनियारों के साथ तो कभी थेवरों के साथ दलितों के टकराव होते रहते हैं। इस बार टकारा वनियारों के साथ हो रहा है और यह रुकने का नाम नहीं ले रहा। हिंसा के कारण पीएमके नेता डाॅक्टर रामदाॅस को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया है। वे अभी जेल में हैं और उनके खिलाफ एक से ज्यादा मुकदमे दर्ज कर दिए गए हैं। उनकी गिरफ्तारी के कारण भी हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है।
डाॅक्टर रामदाॅस के बेटे अंबुमणि रामदाॅस ने अब आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले रखी है और वे वनियारो ंको शांत होने नहीं देना चाहते। दरअसल उनका सारा ध्यान लोकसभा के आने वाले चुनाव पर टिका हुआ है। उनकी पार्टी का जनाधार उनकी अपनी जाति ही है। उनकी जाति वनियार प्रदेश की सबसे अधिक आबादी वाली जाति है और कुछ जिलों में उसका व्यापक प्रभाव है। उस जाति के आधार पर राजनीति करते हुए अंबुमणि रामदाॅस केन्द्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। वे केन्द्र में स्वास्थ्य मंत्री हुआ करते थे। 2004 में उनकी पार्टी ने डीएमके व कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था और उसके बाद बनी केन्द्र सरकार में सत्ता की भागीदारी की थी, पर प्रदेश में डाॅक्टर रामदाॅस का करुणानिधि के साथ टकराव हो गया, जिसके कारण करुणानिधि ने उनकी पार्टी को केन्द्र सरकार से बाहर करवा दिया था।
अब करुणानिधि एक बार फिर पीएमके के साथ हाथ मिलाना चाहते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की करारी हार हुई थी। आने वाले चुनाव में शायद वह कांग्रेस के साथ भी हाथ नहीं मिलाना चाहेंगे। वैसी हालत में वे डीएमडीके और पीएमके के साथ चुनावी गठबंधन करने की कोशिश में लगे हुए हुए हैं। इसी कोशिश के तहत वे डाॅक्टर रामदाॅस की रिहाई की मांग कर रहे हैं, पर प्रदेश के अनेक दलित नेता और मानवाधिकार संगठनो से जुड़े लोग रामदाॅस की रिहाई का विरोध कर रहे हैं। उलटे कुछ संगठन तो भारत क निर्वाचन आयोग से मांग कर रहे हैं कि पीएमके की राजनैतिक पार्टी के रूप में मान्यता को ही समाप्त कर दिया जाय, क्योंकि यह सामाजिक टकराव की राजनीति कर रही है और उस राजनीति के तहत योजनाबद्ध तरीके से दलितों पर हमले करवाए जा रहे हैं।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री जयललिता ने दलितों पर हुए हमले पर कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है। अपने इस रुख के कारण ही उन्होंने पीएमके नेतो को जेल की हवा खिला दी और बाद में पीएमके को रैली करने के इजाजत नहीं दी गई। जयललिता ने भी अपना सारा ध्यान आगामी लोकसभा चुनावों पर केन्द्रित कर रखा है। दलितों के पक्षधर के रूप में उन्होंने अपनी छवि अच्छी कर ली है। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा के मामले में उनकी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में जीत हासिल हुई है, जिससे उनका मनोबल बढ़ा है। अब बहुत जल्द ही उस परियोजना से 1000 मेगावाट की बिजली का उत्पादन शुरू हो जाएगा और उसका 50 फीसदी तमिलनाडु को ही मिलेगा। कुछ अन्य थर्मल पावर स्टेशनो में भी बिजली के उत्पादन शुरू होने हैं। उसके कारण राज्य में बिजली की उपलब्ध्ता बढे़गी और लोकसभा चुनाव तक इसकी आपूर्ति में खासा सुधार हो जाएगा। इसके कारण जयललिता की पार्टी को बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है। कानून व्यवस्था के मसले पर कठोर रवैया अपनाकर वह लोगों का दिल जीतना चाहती है, लेकिन कुछ तत्व तनाव और हिंसा फैलाने की राजनीति करने में लगे हुए हैं। (संवाद)
लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ तमिलनाडु में हिंसा का माहौल
जयललिता ने अपना रुख कठोर किया
एस सेतुरमन - 2013-05-10 10:06
लोकसभा के आमचुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, तमिलनाडु की राजनीति में तनाव बढ़ता जा रहा है और यह तनाव कभी कभी हिंसक रूप भी लेने लगा है। प्रदेश की दो मुख्य पार्टी- डीएमके और एआईएडीएमके- के नेता अपनी अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए पहले से ही सक्रिय हैं और इधर पिछले महीने एकाएक पीएमके के नेता डाॅ रामदाॅस भी सक्रिय हो गए। उन्होंने पिछले 25 मई को एक रैली आयोजित करने की योजना बनाई थी।