इसके पहले भी केन्द्रीय नेतृत्व ने आपस में लड़ रहे नेताओं के बीच अनेक बार समझौते करवाए थे, पर वे टिकाऊ नहीं साबित हुए थे। इसलिए इस नये फाॅर्मूले की सफलता भी संदिग्ध ही है। इस फाॅर्मूले के अपने ऐसे अंतर्विरोध भी हैं, जो इसके स्थायी होने को और भी संदिग्ध बना देते हैं।

सीपीएम महासचिव प्रकाश करात ने प्रदेश नेताओं को साफ साफ कह दिया है कि उन्हें हर कीमत पर अपनी एकता बनाये रखनी है, ताकि आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सके। उन्होंने यह भी कह दिया है कि वी एस अ़च्युतानंदन विधानसभा में विपक्ष का नेता बने रहेंगे। इसका मतलब यह होता है कि आगामी लोकसभा चुनाव का सामना पार्टी श्री अच्युतानंदन के नेतृत्व में ही करेगी। केन्द्रीय नेतृत्व की यह बात प्रदेश सीपीएम के सचिव पी विजयन को हजम नहीं हो पा रही है। उनके गुट के लोग सीपीएम के केन्द्रीय नेतृत्व की इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। वे श्री अच्युतानंदन की विपक्ष के नेता पद से विदाई चाहते हैं। पर केन्द्रीय नेतृत्व इस तथ्य को स्वीकार करता है कि पार्टी को वोट दिलाने में अच्युतानंद ही समर्थ हैं। इसलिए उनको केरल में पार्टी द्वारा दिया जा रहा महत्व बरकरार रहेगा।

पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व अच्युतानंदन के महत्व को तो समझ रहा है और उनके विपक्ष का नेता बने रहने की बात को भी मानने को तैयार है, लेकिन उसने वीएस के तीन सहयोगियों को उनके स्थान से हटा दिया है। इस तरह अच्युतानंदन को चुनाव के दौरान पार्टी का नेतृत्व तो दे दिया गया है, लेकिन उनके तीन हथियार उनसे छीन कर उन्हें निहत्था भी कर दिया गया है। जाहिर है, पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व के इस फाॅर्मूले में भयंकर खामी है और यह एक बड़े अंतर्विरोध का शिकार है। अंतर्विरोध यह है कि किसी को निहत्था करके आप उसे युद्ध का नेतृत्व करने के लिए कैसे कह सकते और फिर उससे सफलता की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

उन तीनों को विजयन गुट की मांग पर हटाया गया है। इस गुट ने आरोप लगाया था कि उन तीनों ने पार्टी के निर्णयों को मीडिया को लीक किया था। पर केन्द्रीय नेतृत्व के इस निर्णय से बनी एकता स्थायी नहीं हो सकती। इसके कारण आने वाले दिनों में गुटबाजी बढ़ेगी ही।

अब यह देखना है कि अच्युतानंदन के हटाए गए तीनों सहयोगियों की जगह किसकी नियुक्ति की जाती है। आगे पार्टी के अंदर गुटीय संघर्ष का क्या चरित्र होगा, बहुत कुछ इस निर्णय पर ही निर्भर करता है। समझदारी तो इसी में है कि उन नियुक्तियों में अच्युतानंदन की पसंद को ही तरजीह दी जाय। यानी उन्हें वैसा ही सहायक दिया जाय, जो उनकी सहायता कर सके, न कि वैसा सहायक, जो उनके प्रति द्वेष भाव पालता हो। गौरतलब है कि जब अच्युतानंदन मुख्यमंत्री थे, तो उनके राजनैतिक सचिव को बदल दिया गया था और उसकी जगह ऐसे व्यक्ति को रख दिया गया था, जिसके मन में अच्युतानंदन के प्रति सम्मान नहीं था।

केन्द्रीय नेतृत्व ने केरल की सीपीएम ईकाई पर नजर रखने के लिए एक 6 सदस्यीय आयोग भी बनाया है। यह अच्युतानंदन की जीत है। यह आयोग अच्युतानंदन के सहयोगियों की अपील की सुनवाई भी करेगा। उनका कहना है कि जिस बैठक में अच्युतानंदन शामिल नहीं हुए थे, उस बैठक की बातें भी मीडिया में लीक हुईं। इसका मतलब यह है कि लीक करने का वह काम अच्युतानंदन के सहयोगी नहीं, बल्कि कोई और कर रहा था।

आश्चर्य की बात है कि आयोग को अपना काम करने के लिए कोई समय सीमा नहीं बताई गई है। अच्युतानंदन के विरोधी कहते हैं कि इसका गठन विपक्ष के नेता पद पर उनके बने रहने के समय को लंबा करने के लिए ही किया गया है। लोकसभा चुनाव तक उन्हें इस पद पर रखा जाएगा और उसके बाद उन्हें उस पद से हटा दिया जाएगा।

फिलहाल आयोग का गठन अच्युतानंदन के हित में दिखाई पड़ रहा है। जब तक आयोग अपना काम पूरा नहीं करता, उनके अपने पद पर बने रहने की पूरी संभावना है। इस बीच यदि लवलीन मामले में आया कोई फैसला प्रदेश सचिव विजयन के खिलाफ जाता है, तो फिर प्रदेश की सीपीएम राजनीति ही बदल जाएगी और अच्युतानंदन के विरोधी विजयन खुद अपना सचिव पद गंवा देंगे। (संवाद)