इस तरह के सर्वेक्षण किए जा रहे हैं और उनके नतीजे सार्वजनिक किए जा रहे हैं। वे इस समय देश के मूड को प्रतिबिंबित करते हैं। यह जानते हुए भी कि फिलहाल समय से पहले लोकसभा चुनाव की कोई संभावना नहीं है और यह अपने तय समय पर ही 2014 में होगा, इस तरह को सर्वे किया जा रहा है और वह सर्वे इस समय के लोगों के मूड को ही दिखाता है, न कि लोकसभा चुनाव के समय लोगों का मूड क्या होगा, उस पर आधारित है।

लोकसभा का चुनाव जब होगा, उस समय लोगों का मूड क्या होगा, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता सच तो यह है कि लोकसभा चुनाव के पहले अनेक राज्यों मंे विधानसभा के चुनाव होगे और उन चुनावो के नतीजे आगामी लोकसभा के चुनावी नतीजों को प्रभावित भी कर सकते हैं। विधानसभा चुनाव के नतीजे लोकसभा चुनाव के पहले पार्टियों के कार्यकत्र्ताओं के जोश को बढ़ाने या घटाने का काम कर सकता हैं।

इस साल विधानसभा के चुनाव राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में होने वाले हैं। झारखंड में राष्ट्रपति शासन चल रहा है और वहां भी चुनाव इसी साल हो सकते हैं। यदि केन्द्र ने झारखंड में इसी साल चुनाव कराने का फैसला किया, तो जुलाई महीने में ही वहां चुनाव हो सकते हैं। उसके बाद अन्य 4 राज्यों में हांेगे। इन 4 राज्यों में दिल्ली भी एक है और वहां कांग्रेस की स्थिति बेहतर है ओर वह फिर सत्ता में आ सकती है। यदि ऐसा हुआ, तो शीला दीक्षित के लिए यह एक रिकार्ड होगा। वह ज्योति बसु के बाद पहली ऐसा नेता होंगी, जो लगातार चैथी बार मुख्यमंत्री का पद संभालेगी। उन्होंने दिल्ली में जो अच्छे काम किए हैं, उन्हें देखते हुए उनके सत्ता में आने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और वहां के लोगों का मूड भाजपा के पक्ष में बताया जा रहा था। पर इधर कुछ समय से काग्रेस की स्थिति बेहतर हुई है। अशोक गहलौत की सरकार ने कुछ नई योजनाएं शुरू की हैं, जिसके कारण लोगों के बीच में उनके और उनकी पार्टी के लिए अच्छे संदेश जा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि अशोक गहलौत की सरकार के खिलाफ लोगों में कुछ असंतोष भी है और उन्हें इसका सामना भी चुनाव के दौरान करना पड़ेगा, लेकिन अभी वहां के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

मध्यपदेश में भाजपा की स्थिति बेहतर है। वहां कांग्रेस की स्थिति खराब है। पार्टी में गुटबंदी चल रही है और जिसके समाप्त होने के कोई आसार नहीं दिख रहे। वहां पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा, अभी तक यह तय भी नहीं किया गया है। प्रदेश में बड़े कद वाले एक ही नेता हैं और वह हैं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह। पर वह प्रदेश की राजनीति में फिर से सक्रिय होने में दिलचस्पी नहीं रखते। इसके बावजूद वे मध्यप्रदेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे होंगे।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान खुद के स्वच्छ होने का दावा करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि उनका प्रशासन भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं रहा है। भारतीय जनता पार्टी का एक गुट उन्हें प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करना चाह रहा था, लेकिन उस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई। उनको सबसे ज्यादा फायदा इस तथ्य का हो रहा है कि वहां कांग्रेस चुनाव का सामना करने के लिए अभी पूरी तरह से तैयार नहीं है। इसके बावजूद श्री चैहान के लिए चुनाव जीतना बहुत आसान नहीं होगा।

कांग्रेस के लिए 2012 का साल खराब था, लेकिन 2013 का साल भी उतना ही खराब है। एक के बाद एक घोटालों के मामले सामने आते हैं और कांग्रेस की स्थिति और भी दयनीय दिखाई देती है। लेकिन कांग्रेस की उस क्षमता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसके कारण वह हारते हारते जीत जाती है। (संवाद)