अब एक बार फिर एक दशक के बाद गुजरात की भाजपा कार्यकारिणी नरेन्द्र मोदी को लेकर एक बड़ा फैसला करने जा रही है। इस बैठक में उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार तो नहीं घोषित किया जाएगा, लेकिन भाजपा की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी की ओर यह नरेन्द्र मोदी का एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

गोवा की दोनों बैठकों के बीच में मोदी के साथ एक और काॅमन फैक्ठर हैं और हैं लालकृष्ण आडवाणी। 2002 में लालकृष्ण आडवाणी ने भी कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों के साथ नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का समर्थन किया था, लेकिन इस बार वे गुजरात के मोदी के खिलाफ खड़े दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने यह तो अब तक स्पष्ट कर दिया है कि वे नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनते नहीं देखना चाहते और उनके भाजपा चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनने के पक्ष में भी नहीं हैं।

इसका कारण यह है कि आने वाले महीनों मंे देश के 4 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इनमें तीन में तो भाजपा की जीत होनी तय है। लालकृष्ण आडवाणी नहीं चाहते कि उस जीत का श्रेय नरेन्द्र मोदी को मिले, क्योंकि उसके बाद प्रधानमंत्री पद की उनकी दावेदारी और मजबूत हो जाएगी। सवाल उठता है कि 2002 में श्री मोदी का समर्थन करने वाले आडवाणी उनके विरोधी क्यों हो गए हैं?

तो इसका सबसे बड़ा कारण है लालकृष्ण आडवाणी की खुद प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें ही प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश कर चुनाव लड़ा था, पर पार्टी की हार हो गई। इस बार कांग्रेस की स्थिति खराब होने के कारण भाजपा की सरकार बनने के आसार बहुत लोगों को दिख रहे है। श्री आडवाणी चाहते हैं कि पार्टी इस बार भी उन्हें ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करें, पर नरेन्द्र मोदी का कद राष्ट्रीय राजनीति में इतना बड़ा हो गया हैं कि वे पार्टी के प्रधानमंत्री पद के रूप में पेश किए जाने के स्वाभाविक उम्मीदवार बन गए हैं। लालकृष्ण आडवाणी इस तथ्य को पचा नहीं पा रहे हैं।

दूसरा कारण यह है कि श्री आडवाणी खुद प्रधानमंत्री नहीं बनने की स्थिति में अपने किसी खास नेता को इस पद पर लाना चाहते हैं। सुषमा स्वराज उनकी पसंद हैं। उन्हें लोकसभा में विपक्ष की नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ही बनवाई थी।

नरेन्द्र मोदी का नापसंद करने का एक कारण यह भी है कि श्री मोदी सरकार चलाने में पार्टी के अन्य नेताओं का हस्तक्षेत्र पसंद नहीं करते। वह अपने तरीके से सरकार चलाते हैं और यही पार्टी के अनेक नेताओं को नागवार गुजरती है। लालकृष्ण आडवाणी को भी उनकी यह शैली पसंद नहीं है। इसलिए खुद प्रधानमंत्री नहीं बनने की स्थिति में वे किसी और को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहेंगे, नरेन्द्र मोदी को हनीं।

चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पद पर मोदी को बैठने का लालकृष्ण आडवाणी इसलिए भी विरोध करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके कारण राजग का एक घटक गठबंधन से बाहर जा सकता है। गौरतलब है कि नीतीश कुमार और उनका दल नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने का विरोध कर रहा है और वे कह रहे हैं कि यदि ऐसा किया गया तो वे गठबंधन से बाहर चले जाएंगे। लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए नीतीश कुमार को राजग में बनाए रखना चाहते हैं।

नरेन्द्र मोदी के दावे को कमजोर करने के लिए आडवाणी ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिचराज सिह चैहान का भी इस्तेमाल करने की कोशिश की। उन्होंने ग्वालियर की कार्यकत्र्ता बैठक में चैहान को मोदी से बेहतर मुख्यमंत्री बता दिया। श्री आडवाणी ने नितिन गडकरी का इस्तेमाल भी मोदी के खिलाफ करना चाहा, पर श्री गडकरी ने आडवाणी को निराश कर दिया। चैहान ने भी मोदी को अपना सीनियर मानकर आडवाणी को निराश किया।

जाहिर हैं लालकृष्ण आडवाणी मोदी के उत्थान को रोकने के लिए एक से एक दांव खेल रहे हैं और आने वाले दिनों में भी वे इससे बाज नहीं आएंगे। उनका अगला कदम क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन इसके कारण पार्टी को परेशानी हो रही है। जब पार्टी विधानसभा चुनावों का सामना कर रही हो, वैसी हालत में इस तरह की अंदरूनी राजनीति उसके लिए निश्चय ही नुकसानदेह होगी और उसके विरोधी कांग्रेस को उस पर हमला करने के लिए एक हथियार दे रही है।(संवाद)