स्थिति इतनी बिगडऋ गई है कि बीरभूम और बर्दमान जैसे जिलों में विपक्षी पार्टियों के लोग सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं और नेताओं पर भी सीधे हमला बोल रहे हैं। पुलिस किसी भी रूप में प्रभावी नहीं दिखाई पड़ रही है। उससे जो न्यूनतम उम्मीद हो सकती है, उस पर भी वह खरी नहीं उतर रही है। पहले तृणमूल के कार्यकत्र्ता विपक्षी वामदलों, भाजपा और कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं पर हमला बोल रही थी। इस तरह के हमले कूच बिहार, माल्दा, नादिया, बीरभूम, हावड़ा, हूगली, उत्तर व दक्षिण 24 परगना के जिलों में हो रहे थे। विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि प्रदेश में गृहयुद्ध की स्थिति बन गई है।

बर्दमान में वामपंथी कार्यकत्र्ताओं ने तृणमूल समर्थकों पर हमला किया और दूसरी ओर पिछले शनिवार को कुछ अपराधियों ने सीपीएम के एक पूर्व विधायक की गोली मारकर हत्या कर दी। सीपीएम ने उसके विरोध में 12 घंटे के आसनसोल बंद का आयोजन पिछले सोमवार को किया।

जिला पुलिस की भूमिका मूकदर्शक की बनी हुई है। आ रही खबरों के मुताबिक हिंसा के इतने बड़े पैमाने पर होने के बावजूद अभी तक पुलिस ने मात्र 100 लोगों को ही गिरफ्तार किया है और वे सारे के सौ विपक्षी पार्टियों के समर्थक हैं। पुलिस किसी सत्ताक्ष्ढ़ तृणमूल समर्थक को गिरफ्तार नहीं कर रही है। लगता है वह तृणमूल नेताओं के उस दावे को गलत नहीं साबित करना चाहती, जिसमें कहा जा रहा है कि तृणमूल का कोई कार्यकत्र्ता अथवा समर्थक इस हिंसा में शामिल नहीं है। तृणमूल के एक नेता पार्था चटर्जी कह रहे हैं कि यदि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ता हिंसा में शामिल होते, तो फिर वामपंथी उम्मीदवार इतनी भारी संख्या में चुनाव के लिए अपना नामांकन ही नहीं कर पाते।

पंचायतों के लिए मतदान 2 जुलाई, 6 जुलाई और 10 जुलाई को होने हैं। अभी जब हिंसा का आलम यह है, तो आगे क्या होगा, इसका सहज अंदाज लगाया जा सकता है। जैसे जैसे मतदान के दिन नजदीक आते जाएंगे हिंसा और तेज होती जाएगी। मतदान के दिन भी हिंसा की संभावना होती है और यह हिंसा मतदाव चुनाव नतीजे आने के बाद तक खिंच जाती है। इसे रोकने के लिए की गई तैयारियां भी अपर्याप्त हैं। पुलिस बल नाकाफी हैं। लगता है कि यही स्थिति आने वाले दिनों में भी रहने वाली है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस हिंसा को लेकर किस तरह से लापरवाह हैं, इसका पता इसीसे चलता है कि वह केन्द्र से अर्द्धसैनिक बलों को नहीं बुलाना चाहतीं। न ह ीवह अन्य राज्यों से सुरक्षा बल मंगाने की पक्षधर हैं। वैसे प्रदेश निर्वाचन आयोग ने कहा है कि यदि प्रदेश के सारे सुरक्षा बलों को चुनाव के दिन मतदान कार्यों में लगा दिया जाय, तब भी 80000 जवान कम पड़ जाएंगे। जाहिर है कि मतदान के दिन प्रदेश के बाहर के 80 हजार जवानों को बुलाने की मांग है।

प्रदेश निर्वाचन आयोग की मांग पर राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश, राजस्थान और पंजाब से पुलिस बल की मांग की है। केन्द्र से सुरक्षा बलों की मांग उसने बहुत देर से की है और केन्द्र ने सुरक्षा बल मुहैया करवाने में अपनी असमर्थता भी जाहिर की दी है। (संवाद)