मंत्रिमंडल का विस्तार तो वैसे ही बहुत जरूरी हो गया था। डीएमके के मंत्रियों के इस्तीफे के बाद बहुत सारी रिक्तियां थी। पवन बंसल और अश्विनी कुमार के इस्तीफे के कारण भी अतिरिक्त रिक्तियां पैदा हो गई थीं। कुछ मंत्रियों को संगठन में लाया जाना था। इन सबके कारण प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार और कुछ फेरबदल करना ही था। विस्तार के ठीक पहले दो मंत्रियों ने इस्तीफा दिया। अजय माकन ने अपना पद छोड़ा और सीपी जोशी ने भी सरकार से अपने आपको अलग किया। उन दोनों पर राहुल गांधी बहुत भरोसा करते हैं। इसलिए उन्हें पार्टी के काम में लगा दिया गया है।
हालंकि जिस स्तर पर फेरबदल की उम्मीद की जा रही थी, उतनी हुई नहीं, फिर भी हम कह सकते हैं कि राहुल गांधी ने अपने हिसाब से बदलाव कराए। मंत्रिमंडल फेरबदल और संगठनात्मक बदलाव, दोनों में ही राहुल गांधी की छाप देखी जा सकती है। सोनिया गांधी ने अब अपने आपको संगठन के कामों से अलग करना शुरू कर दिया है। जाहिर है आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के नरेन्द्र मोदी का मुकाबला टीम राहुल और टीम मनमोहन के साथ होगा। इसमें भी टीम राहुल ही मुख्य रूप से उनके सामने दिखाई पड़ेगी, क्योंकि अब कांग्रेस को चुनाव जीतने के लिस सरकार से ज्यादा भरोसा अपने संगठन पर है। आने वाले समय मे ंसरकार के पास कर दिखाने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है। वित्तमंत्री पी चिदंबरम भले ही आर्थिक सुधारों की बात कर रहे हों, लेकिन इस मोर्चे पर करने के लिए बहुत कुछ संभव नहीं दिखाई पड़ रहा है।
राहुल गांधी ने संगठन में जो बदलाव करवाए हैं, उन्हें देखते हुए किसी को आश्चर्य नहीं होता। इसका कारण है कि उन्होंने अपने भरोसेमंद लोगों को ही महत्वपूर्ण स्थानों पर लगाया है। कांग्रेस के अंदर के लोग कह रहे हैं कि वैसे लोगो को ज्यादा महत्व दिया गया है, जो खुद अपना चुनाव जीत सकते हैं। अब पुराने चेहरे की जगह नये चेहरों को भी लाया जा रहा है। अब प्रवक्ताओं और सचिवों की संख्या को बढ़ा दिया गया है। एक चुनाव समिति का भी गठन हो गया है। राहुल गांधी ने सीपी जोशी और मधुसूदन मिस्त्री जैसे लोगों में अपना विश्वास दिखाया है। मोहन प्रकाश और अजय माकन को भी तवज्जो दिया गया है।
अजय माकन केन्द्र सरकार में मंत्री थे। उन्हें इस्तीफा देने को कहा गया और वे पार्टी के संगठन में महासचिव बना दिए गए। उन्हें मीडिया सेल का प्रभारी बना दिया गया है। मीडिया सेल को अब संवाद सेल का नाम दे दिया गया है। एक और महत्वपूण बदलाव हुआ है। वह दिग्विजय सिंह को लेकर है। वे उत्तर प्रदेश के पार्टी प्रभारी थे। अब उन्हें आंध्र प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया है। उत्तर प्रदेश का भार संभालने का जिम्मा मधुसूदन मिस्त्री को दिया गया है। यह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि श्री मिस्त्री गुजरात के हैं और गुजरात के ही अमित शाह को राजनाथ सिंह ने उत्तर प्रदेश का पार्टी प्रभारी बना रखा है।
पार्टी आंध्र प्रदेश और कर्नाटक पर खास ध्यान दे रही है। आंध्र प्रदेश की 42 सीटों में से 33 पर कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में कब्जा किया था। यहां उस जीत को दुहराना पार्टी के लिए एक बहुत ही बड़ी चुनौती है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वहां शानदार सफलता मिली थी। पार्टी को इस दक्षिणी राज्य से भी बहुत उम्मीदें हैं और वह वहां से ज्यादा से ज्यादा सीटों पर सफलता हासिल करना चाहेगी। राजस्थान में आने वाले महीनों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। वहां इस समय कांग्रेस की ही सरकार है। उसकी पूरी कोशिश रहेगी कि वह वहां दुबारा सत्ता में आए। झारखंड को लेकर अस्पष्टता अभी तक बरकरार है। वहां कांग्रेस चाहे तो अपनी सरकार अभी बना सकती है, लेकिन उसकी असली नजर वहां की लोकसभा सीटों पर चुनाव जीतने पर है।
आने वाले कुछ महीने देश की राजनीति के लिए बहुत ही दिलचस्प होंगे। दाव पर दाव खेले जाएंगे और घात पर घात लगाए जाएंगे। काग्रेस इसके लिए सरकार पर कम संगठन पर ज्यादा भरोसा कर रही है। (संवाद)
संगठन के बल पर चुनाव में उतरेगी कांग्रेस
टीम राहुल मनमोहन से होगा मोदी का मुकाबला
कल्याणी शंकर - 2013-06-21 15:24
कांग्रेस पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अब अपने आपको तैयार कर रही है। पिछले दिनों पार्टी संगठन और सरकार में जो बदलाव हुए, इन्हें इसी तैयारी के रूप मंें देखा जा रहा है। सरकार में तो बदलाव हुए, लेकिन असली बदलाव पार्टी के संगठन में हुए। राहुल गांधी के पार्टी उपाध्यक्ष बनने के बाद इस तरह के बदलाव की उम्मीद की जा रही थी। हालांकि सच यह है कि इसमें 5 महीने लग गए।