बसपा प्रमुख मायावती ने भाईचारा समितियों को फिर से जिंदा कर दिया है। ब्राह्मणों के बीच अपने समर्थन का प्रसार करने के लिए पूरे प्रदेश में 32 ब्राह्मण भाईचारा सभाएं करने की योजना भी बनाई गई है।

मायावती को यकीन है कि यदि उन्होंने 2007 के भाईचारा भाव को फिर से पैदा किया, तो लोकसभा चुनावों में वह ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सकती हैं। वह मानती हैं कि 2007 में ब्राह्मणों के ज्यादातर वोट उन्हें ही मिले थे।

ब्राह्मणों का वोट पाने के लिए मायावती एक बार फिर सतीशचन्द्र मिश्र पर आश्रित हो गई हैं। सतीश मिश्र ही बसपा के ब्राह्मण फेस हैं।

ब्राह्मण भाईचारा समिति की सभी बैठकों में सतीश चन्द्र मिश्र कहते हैं कि बसपा के अंदर वे ब्राह्मणों की सही हिस्सेदारी सुनिश्चित करेंगे। सत्ता में आने पर बसपा उन्हें उनकी हिस्सेदारी देगी।

सतीशचन्द्र मिश्र उन्हें कहते हैं कि प्रदेश की जनसख्या के वे 16 फीसदी हैं और 24 फीसदी दलितों के साथ मिलकर 40 फीसदी हो जाते हैं। यदि वे पूरे प्रदेश में एक हो गए, तो प्रदेश की सभी 80 सीटों पर बसपा के उम्मीदवार जीत जाएंगे।

सच्चाई यह है कि ब्राह्मण प्रदेश की आबादी के 10 फीसदी हैं और दलित 22 फीसदी। दलितों में मायावती की अपनी जाति कुल प्रदेश की आबादी का 12 फीसदी है।

सतीश मिश्र बताते हैं कि बसपा में मायावती ने उन्हें बहुत महत्व दे रखा है। वे पार्टी में दूसरे नम्बर के नेता हैं और सत्ता में रहकर उन्होंने ब्राह्मणों के हितों की रक्षा की। वे अपने को मायावती का सबसे बड़ा विश्वासी बताते हैं।

वे कहते हैं कि बसपा में उनके अलावा भी अनेक ब्राह्ण नेता हैं। उन सबकों मायावती सम्मान देती हैं। उन्हें पार्टी के अंदर महत्वपूर्ण स्थानों पर रखा गया है और सत्ता में रहते हुए मायावती ने सरकार में उन्हें अच्छे पदों पर रखा।

सतीश मिश्र ब्राह्मणों को चेतावनी देते हुए मुलायम सिंह से सतर्क रहने की हिदायत भी देते हैं। वे कहते हैं कि मुलायम ब्राह्मणों को सामाजिक और राजनैतिक रूप से अलग थलग करने की राजनीति कर रहे हैं।

बसपा में यह धारणा बन गई है कि अब उसे पिछड़े वर्गो का मत पहले जैसा नहीं मिलेगा। 2007 में बसपा के सत्ता में आने को सबसे बड़ा कारण उसे मिला पिछड़ा वर्गों का समर्थन ही था, लेकिन मायावती ने दलित, मुस्लिम और ब्राह्मणों को ही अपनी सरकार में ज्यादा महत्व दिया, जिसके कारण पिछड़े वर्गों के लोग उनसे दूर हो गए हैं। इसके कारण मायावती अब अपने आपको ब्राह्मणों पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर महसूस कर रही हैं।

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। इनमें 17 तो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। शेष 63 सीटों में से बसपा ने 30 सीटों पर अकेले ब्राह्मणों को ही उम्मीदवार बना दिया है। इस तरह से राज्य की आबादी में 10 फीसदी हिस्सेदारी करने वाले ब्राह्मणों को मायावती ने कुल सीट संख्या के 38 फीसदी पर उम्मीदवार बना दिया है। इसी से पता चलता है कि ब्राह्मण वोट पाने के लिए मायावती किस कदर बदहवास हैं।

राजनैतिक विश्लेषक सुरेन्द्र राजपूत का कहना है कि बसपा ने शक्तिशाली पिछड़े वर्गों का समर्थन खो दिया है। इसके कारण ही बसपा की सत्ता चली गई। दलित जातियों के लोगों का भी मायावती से मोह भग होने लगा है। इसकी भरपाई मायावती अब ब्राह्मणों के बीच अपनी पार्टी का आधार बढ़ाकर करना चाहती हैं। (संवाद)