लेकिन पिछले दिनों उत्तराखंड में आई प्राकृतिक विपदा ने यह साबित कर दिया कि हम तबाहियो ंसे सबक नहीं लेते हैं। इस विपदा में 5 हजार से भी ज्यादा लोग मारे गए हैं। लाख से भी ज्यादा जहां तहां फंस गए। उत्तराखंड की स्थापना उत्तर प्रदेश को काटकर की गई थी, लेकिन वहां की सरकार के पास अभी भी प्रशासन चलाने का तजुर्बा नहीं है। वहां कांग्रेस और भाजपा बारी बारी से सत्ता में आई है, लेकिन दोनों सरकारो ने अंधाधुध पेड़ कटाई को बढ़ावा दिया और वहां के पर्यावरण का सत्यानाश किया। बिल्डरों से वहां की सरकारों की सांठगांठ रही है। इसके कारण वहा भूस्खलन होने आसान हो गया है। और वही हुआ।
वहां प्रशासन इस विपदा का सामना कर रहा है और पर्यावरणवादियों के साथ विकासवादियों की बहस जारी है। पर्यावरणवादी अंधाधुंध विकास को इस आपदा का कारण बता रहे हैं और कह रहे हैं कि विकास की परियोजनाओ ंपर हो रहे काम को तुरंत बंद करवा देना चाहिए। विकासवादी कह रहे हैं कि इन परियोजनाओं का काम रोकना आत्मघाती होगा। पर्यावरणवादियों का कहना है कि डैम पर काम होता है, तो डायनामाइट का भी इस्तेमाल होता है और उसके कारण हिमालय और भी कमजोर हो जाता है।
इन विवादों के बीच राजनीतिज्ञों का हंगामा भी देखने लायक है। एक साल के अंदर लोकसभा के आमचुनाव होने हैं। इसी बीच अनेक राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव होने हैं। यही कारण है कि राजनैतिक पार्टिया इस विपदा का राजनैतिक लाभ लेने के लिए जुटी हुई हैं। वे एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। उनके नेता मानने को तैयार ही नहीं हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए नरेन्द्र मोदी को अपना चेहरा बनाने का फैसला कर लिया है। अपने को चुस्त और दुरुस्त प्रशासक दिखाने की होड़ में नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड में आई इस विपदा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। वे उत्तराखंड जा पहुंचे और उनके प्रशासन ने दावा किया कि गुजरात सरकार ने 15 हजार गुजरातियों को वहां विपदा से बाहर निकाला। इस पर राजनीतिज्ञों के बीच बहस छिड़ गई। श्री मोदी ने उत्तराखंड सरकार को 25 हेलिकाॅप्टर देने की पेशकश कर दी, जिस उत्तराखंड सरकार ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया। श्री मोदी उत्तराखंड के विपदाग्रस्त क्षेत्र में जाना चाहते थे। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने मना कर दिया और कहा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के अलावा किसी अन्य अति विशिश्ट व्यक्ति को विपदाग्रस्त क्षेत्र में दौरे की इजाजत नहीं है, क्योंकि उस प्रकार के दौर से राहत काम पर असर पड़ता है। मोदी वहां नहीं उतरे और अपने को सिर्फ हवाई दौरे तक ही सीमित रखा। लेकिन गृहमंत्री के उस बयान की धज्जियां उड़ाते हुए राहुल गांधी वहां जा पहुंचे। इस तरह इस विपदा में मोदी बनाम राहुल का जंग छिड़ गया। जब विपदा की शुरूआत हुई थी और वह चरम पर थी, तो राहुल गांधी विदेश में आराम फरमा रहे थे। 6 दिनों के बाद वे भारत आए और आते के साथ गुहमंत्री शिंदे के आदेश की परवाह किए बिना अपने पूरे तामझाम के साथ उत्तराखंड के आपदाग्रस्त इलाकों में जा धमके। इस तरह एक नया विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा और कांग्रेस आमने सामने आ गई है।
भाजपा और कांग्रेस जैसी राजनैतिक पार्टियां ही नहीं, अनेक क्षेत्रीय दल भी इस में शामिल हो गए हैं। आंध्र प्रदेश के नेता चंद्रबाबू नायडू भी इसमं शामिल हो गए हैं। उनकी पार्टी के एक सांसद की कांग्रेस के एक सांसद के साथ सिर्फ तू तू मैं मैं ही नहीं हुई, बल्कि घक्कामुक्की तक भी हो चुकी है। तमिलनाडु की जयललिता भी अपने प्रदेश के लोगों को बचाने का श्रेय ले रही हैं। महाराष्ट्र की शिवसेना भी इसमें राजनीति करने लगी। उसके मुखपत्र ने तो नरेन्द्र मोदी पर ही हमला करना शुरू कर दिया कि उन्होंने सिर्फ गुजरात के लोगो ंको ही संकट से क्यों बचाया, अन्य राज्यों के लोगों को क्यों नहीं।
इस तरह राजनीतिज्ञ विपत्ति की इस घड़ी का इस्तेमाल भी अपनी राजनैतिक रोटियों सेंकने के लिए कर रहे हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। जब सभी लोगों को मिलकर इस तरह के संकट का सामना करना चाहिए, तब लोग आपस में एक दूसरे से भिड़े हुए हैं।(संवाद)
आपदा पर भी राजनीतिज्ञों की गिद्धदृष्टि
एक दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे नेता
कल्याणी शंकर - 2013-06-28 10:24
प्राकृतिक विपदाएं हमारे लिए नई नहीं हैं। सूखा, बाढ़, भूकंप, सुनामी और आगजनी जैसी विपदाएं समय समय पर आती रही हैं। हां, कभी कभी इनकी प्रचंडता हमें चिंता में डाल देती हैं। आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में हमने तूफान के कहर को देखा है। गुजरात और लातूर में हमने प्रलयकारी भूकंप भी देखे हैं। अनेक बार गंगा के क्रोध को भी देखा है। कोशी द्वारा किए गए विनाश के प्रत्यक्षदर्शी भी हम रहे हैं। तमिलनाडु में हमने सुनामी की विभीषिका भी देखी है। इन तबाहियों से हमें सबक सीखनी चाहिए थी और आगे की तबाहियों के समय उस सबक का लाभ उठाना चाहिए था।