आडवाणी द्वारा इस मसले को उठाने और संविधान की धारा 370 को समाप्त किए जाने की बात पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उन्हें झूठा और धोखेबाज तक कह डाला। इस पर तो श्री आडवाणी और भी बिफर गए और उमर को याद दिलाई की सार्वजनिक जीवन में चह रही बहस में एक दूसरे पर इस तरह से निजी आक्षेप लगाना ठीक नहीं होता। उन्होंने खुद को झूठा और धोखेबाज कहे जाने पर घोर आपत्ति की।
इसके जवाब में उमर अब्दुल्ला ने उनसे सवाल कर डाला कि 1998 से 2004 तक जब केन्द्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी, तब श्री आडवाणी इस मसले पर क्या कर रहे थे। गौरतलब है कि राजब की उस सरकार का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी ही कर रही थी। श्री आडवाणी उस सरकार में गृहमंत्री थे। गृहमंत्री के साथ साथ उन्हें उपप्रधानमंत्री के पद से भी नवाजा गया था। उस समय सरकार में रहते हुए धारा 370 पर चुप्पी लगाए रखने के उमर के सवाल का जवाब लालकृष्ण आडवाणी क ेपास नहीं था।
सच तो यह है कि श्री अब्दुल्ला लालकृष्ण आडवाणी के इसी दोमुहापना को उजागर कर रहे थे। इसी कारण वे उन्हें झूठा और धोखेबाज कह रहे थे। उनके कहने का मतलब था कि भाजपा के नेता लोगों को गुमराह कर रहे हैं, क्योंकि धारा 370 समाप्त किया ही नहीं जा सकता। यदि ऐसा संभव होता तो केन्द्र सरकार में उपप्रधानमंत्री के पद पद रहते हुए श्री आडवाणी इसकी ओर जरूर बढ़ते।
कश्मीर के नेताओं का कहना है कि धारा 370 भारत के संविधान को कश्मीर के संविधान के साथ जोड़ता है। इसका मतलब है कि संविधान की यह धारा कश्मीर को भारत के साथ जोड़ती है। यदि इस धारा को समाप्त कर दिया जाय, तो कश्मीर का भारत के साथ जुड़ाव ही समाप्त हो जाता है। लिहाजा, यदि कश्मीर को भारत के साथ रखना है, तो इस धारा को समाप्त ही नहीं किया जा सकता। उमर के कहने का मतलब है कि आडवणी इस बात को अच्छी तरह समझते हें। लेकिन इसके बावजूद यदि वे इसे समाप्त करने की बात सार्वजनिक तौर पर करते हैं, तो वह लोगों के साथ धोखा कर रहे हैं।
संविधान की धारा 370, अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर का निर्माण और समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में शुरू से ही शामिल रहे हैं। पर राजब के गठन के साथ भाजपा ने अपने इस तीनों एजेंडे को ठंढे बस्ते मेंडाल दिया था। अब फिर उसके अंदर से दबाव बन रहा है कि इन एजेंडे को वे केन्द्र में लाए।
नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का अपना उम्मीदवार घोषित कर भाजपा लोकसभा चुनाव में जा सकती है। श्री मोदी खुद नहीं चाहते कि वह हिंदुवाद की राजनीति करते हुए अगले चुनाव के दौरान अपनी पार्टी का नेतृत्व करें। वे विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। पर भाजपा और संघ के अंदर एक बड़ा धड़ा नरेन्द्र मोदी के साथ साथ हिंदुत्ववाद की राजनीति को भी भी अपनाा आधार बनाना चाहता है। धारा 370 को समाप्त करने की मांग भी भाजपा की हिंदुत्ववादी नीति का ही हिस्सा रहा है।
लालकृष्ण आडवाणी खुद नरेन्द्र मोदी के प्रतिस्पर्धी बने हुए हैं। वे राममंदिर के निर्माण के आंदोलन के भी अगुवा रहे हैं। पर इस समय वे इसकी बात नहीं करते, लेकिन धारा 370 की बात जरूर कर रहे हैं। ऐसा करके वे संुघ ओर भाजपा के अंदर अपना कट्टरवादी चेहरा दिखाना चाहते हें ंऔर दूसरी तरफ राममंदिर की चर्चा को हवा नहीं देकर मुसलमानों के प्रति अपना नरम रवैया भी दिखाना चाहते हैं। उनकी यह राजनीति विरोधाभाषी लगती है, लेकिन अस तरह की विरोधाभाषी राजनीति करना भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है। आडवाणी और वाजपेयी का विरोधाभाष खड़ी कर वह पहले भी इस तरह की राजनीति कर चुकी है। आडवाणी उस विरोधाभाष को खुद में समा कर अब वैसी ही राजनीति कर रहे हैं।
लेकिन उस राजनीति के कारण जम्मू और कश्मीर की राजनीति गरम हो रही है। इस पर हो रही राजनीति के साथ उग्रवादी चुनोथ्तयों भी सानमे आ रही है। पिछले कुछ सालों से प्रदेश में स्थिति बेहतर थी, पर इधर आतंकवादी हमले तेज हो गए हैं। नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद लग रहा था कि दोनेां देशों के रिरूते कुछ बेहतर होंगे वाले हैं, लेकिन आंतंकवदयिों की सक्रियता कुछ और ही संकेत दे रही है। (संवाद)
कश्मीर पर फिर घारा 370 की राजनीति
उग्रवाद की चुनौतियां भी बढ़ी
बी के चम - 2013-07-02 13:30
लोकसभा के चुनाव नजदीक आते ही कश्मीर और संविधान की धारा 370 को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। यह राजनीति कश्मीर की पार्टियां और भारतीय जनता पार्टी कर रही है। लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार फिर इस मसले को हवा देना शुरू कर दिया है, तो उधर जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री तथा पीडीपी के नेता उनके साथ जुबानी जंग में शामिल हो गए हैं।