आखिर इशरत जहां मुठभेड़ का यह मामला इतना खतरनाक मोड़ क्यों ले रहा है? तो इसका सबसे बड़ा कारण कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को इसमें फंसाने का प्रयास है। जब इशरत जहां और उसके साथ तीन संदिग्ध पाकिस्तानी एक पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे, तो पुलिस ने दावा किया था कि वे लोग गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की तैयारी में लगे हुए थे, पर पहले ही खुफिया ब्यूरो को भनक लग गई और पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में वे मार गिराए।

वह मुठभेड़ फर्जी था या असली इस पर विवाद है। फिलहाल सीबीआई का मानना है कि वह मुठभेड़ फर्जी थी। दूसरा सवाल है कि क्सा इशरत जहां लश्कर ए तैय्यब सु जुड़ी आतंकवादी थी? इसके बारे में सीबीआई मौन है। यदि किसी आतंकवादी की भी फर्जी मुठभेड़ में मौत होती है, तो वह कानूनन गलत है और उस फर्जी मुठभेड़ को अंजाम देने वाले लोगों को अदालत से सजा मिल सकती है। मुठभेड़ के फर्जी होने के अनेक प्रमाण होने का सीबीआई दावा कर रही है। और यहीं कांग्रेस को मौका मिल रहा है, उस फर्जी मुठभेड़ की साजिश में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को फंसाने का। मुठभेड़ के दिन खूफिया ब्यूरो की गुजरात ईकाई के प्रमुख राजेन्द्र कुमार की नरेन्द्र मोदी के कार्यालय के फोन पर किसी से बातचीत हुई थी। उसका रिकार्ड की सीबीआई ने प्राप्त कर लिया है। उस रिकार्ड का इस्तेमाल कर ही सीबीआई नरेन्द्र मोदी को मुकदमे में घसीटना चाहती है। हालांकि सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर जोगेन्द्र सिंह जैसे लोगों का कहना है कि उस फोन काॅल के रिकार्ड से मोदी के खिलाफ अदालत में कुछ भी साबित नहीं किया जा सकता। पर अदालत तो बाद में फैसला देती है। यदि श्री मोदी पर मुकदमा किया गया और गिरफ्तारी की नौबत आई, तो शायद उनकी राजनीति को अभी पूर्ण विराम मिल जाय, भले ही बाद में वे अदालत से निर्दोष साबित हों। जाहिर है कि जांच और अदालत की प्रक्रिया का इस्तेमाल कर कांग्रेस और केन्द्र सरकार नरेन्द्र मोदी को फंसाना चाहती है, ताकि वे आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सिरदर्द न बन सकें।

पर समस्या यह है कि नरेन्द्र मोदी को फंसाने के लिए खूफिया ब्यूरो के अधिकारी राजेन्द्र कुमार को भी फंसाना पड़ेगा, क्योंकि उनके फोन काॅल का हवाला ही तो मोदी के खिलाफ सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। सच तो यह है कि राजेन्द्र कुमार को पहले फंसाना पड़ेगा। उसके बाद ही नरेन्द्र मोदी तक पहुंचा जा सकता है। सीबीआई यही करने की कोशिश कर रही है। पर राजेन्द्र कुमार को फंसाना आसान नहीं। खुफिया ब्यूरो के वे अभी स्पेशल डायरेक्टर हैं और इसी महीने रिटायर होने वाले हैं। ब्यूरो के अन्य अधिकारी उनके साथ हैं और वे सीबीआई के खिलाफ आ खड़े हुए हैं। इशरज जहां के आतंकवादी होने की जितनी भी खूफिया सूचनाएं उनके पास है, वे एक एक कर सार्वजनिक कर रहे हैं। टीवी चैनलों को आतंकवादियों की आपसी बातचीत का सीडी भेज दिया गया था, जिससे साबित होता था कि इशरत जहां के साथ मारे गए तीनों आतंकवादी ही थे। इशारों में उस बातचीत में इशरत की ओर भी इशारा है।

अब जब चार्जशीट सीबीआई ने दाखिल कर दिया है, तो खूफिया ब्यूरो ने इशरत जहां के आतंकवादी होने की एक और सबूत सामने ला दी है। सबूत के तौर पर नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी द्वारा मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार डेबिड हैडली की पूछताछ के उस अंश को पेश किया गया है जिसमें वह आतंकवादी बताता है कि लश्कर ए तैय्यब के प्रमुख ने उसे बताया था कि इशरत उसके लिए ही काम करती थी। इशरत की मौत के बाद लश्कर की वेबसाइट पर तीन साल तक उसे लश्कर शहीद के रूप में याद किया जाता रहा।

हेडली अमेरिकी हिरासत में है। वहां की एजेंसी ने भी उससे पूछताछ की है। उस एजेंसी के हवाले सक यह खबर छपवाई गई हैं कि इशरत जहां को लश्कर के आतंकवादियों ने मानव बम बनने के लिए तैयार कर रखा था। यानी इशरत को आतंकवादी साबित करने के लिए मीडिया को बहुत सारी जानकारियां मुहैया कराई जा रही है। यह सब केन्द्र सरकार के राजनैतिक नियंत्रण से बाहर होकर किया जा रहा है और सरकार व उनके मंत्री चुपचाप तमाशा देख रहे हैं। यह स्थिति निश्चय ही बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।

दरअसल कांग्रेस के ऊपर नरेन्द्र मोदी का बुखार चढ़ा हुआ है। इशरत जहां मुठभेड़ मामले ने उसे एक मौका दे दिया है, जिसका इस्तेमाल कह वह भले ही मोदी को सजा नहीं दिलवा सके, पर अदालत के कटरे में खड़ा करा ही सकती है। हमारे देश की राजनीति अदालती कटरे से भी प्रभावित हो जाती है। कांग्रेस यही करना चाह रही है, लेकिन ऐसा करने के चक्कर में उसने देश की सुरक्षा की सबसे बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे खुफिया ब्यूरो को ही बलिबेदी पर ला खड़ा कर दिया है। अब यदि इंटेलिजेंस यानी खुफिया ब्यूरो के साथ ऐसा किया जाएगा, तो फिर उससे हम कैसे उम्मीद कर सकेंगे कि आतंकवादियों व अन्य देश विरोधी ताकतों की साजिशों से संबंधित जानकारियां वह हमें उपलब्ध कराएगी? जाहिर है इस मामले में केन्द्र सरकार बहुत ही गैर जिम्मेदाराना ढंग से पेश आ रही है।

दोनों प्रमुख एजेंसियों की लड़ाई के बीच अब कुछ साल पहले गठित एक नई एजेंसी नेशनल इन्वेस्टिेटिंग एजेंसी भी पिस रही है। उस एजेंसी द्वारा हेडली से की गई पूछताछ की जानकारी खुफिया ब्यूरो के पास है। जो उसने रिपोर्ट तैयार की थी, उसका पूरा हिस्सा खुफिया ब्यूरो के पास है, लेकिन एनआईए ने इशरत सेे जुड़े हेडली के जवाबों को अन्य कुछ स्थानों पर नहीं भेजा है। उसके द्वारा इशरत से संबंधित जानकारी को लेकर की गई छेड़छाड़ के लिए एनआईए भी संदेह के घेरे में आ गया है।

जाहिर है, केन्द्र सरकार की तीन बड़ी एजेंसियां एक दूसरे के खिलाफ तलवारें तानकर खड़ी हैं और सरकार को राजनीति करने की सूक्ष रही है। बस एक राजनेता को जांच और अदालती प्रक्रिया में उलझाकर लोकसभा चुनाव के पहले राजनैतिक लाभ उठाने के अलावा कांग्रेस कुछ नहीं सोच रही है। वह इससे कोई राजनैतिक फायदा उठा भी पाएगी, इसमें तो संदेह है, पर इसके कारण वह देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल रही है, इसके बारे में किसी प्रकार का संदेह नहीं। (संवाद)