दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी को तो केन्द्र में अपनी ही सरकार बनती दिखाई पड़ रही है। उसके पास आज देश का सबसे लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी हैं, जिनके नेतृत्व में वह चुनाव में भारी जीत की उम्मीद कर रही है। उसे लगता है कि मोदी मैजिक चमत्कार करेगा। यदि पार्टी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला, तो भी वह कुछ अन्य दलों के साथ मिलकर मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में सफल हो जाएगी। ऐसा उसे लगता है।
वाम दल और मुलायम सिंह यादव इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि चुनाव के पहले किसी तरह का तीसरा मोर्चा बनना संभव नहीं है। लेकिन वे एक वैकल्पिक मंच की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। यह मंच वैकल्पिक कार्यक्रमों और नीतियों के आधार पर बनना चाहिए।
जहां तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सवाल है, तो उन्हें अबतक यह स्पष्ट हो गया होगा किसी तीसरे अथवा संघीय मोर्चे का गठन कोई आसान काम नहीं है। ममता के मुख्य प्रतिद्वंद्वी वाम पार्टियां हैं, जिन्होंने दिल्ली में आयोजित सम्मेलन में वैकल्पिक नीतियों और कार्यक्रमों का पिटारा खोला, जिनके आधार पर किसी तीसरे मोर्चे की तैयारी हो सकती है। ममता बनर्जी यह जानती है कि वह किसी ऐसे मोर्चे का हिस्सा नहीं हो सकती हैं, जिसमें वाम दल शामिल हों।
वामदलों के सम्मेलन ने ममता बनर्जी के अरमानों पर पानी फेर दिया है। ममता बनर्जी संघीय मोर्चे के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, आडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक व कुछ अन्य नेताओं से बातचीत चला रही थीं। नीतीश और नवीन ने भी ममता के प्रयास की सराहना की थी। चन्द्रबाबू नायडू ने भी उत्साह दिखाया था, लेकिन किसी ने भी ममता के मोर्चे के प्रति प्रतिबद्धता नहीं दिखाई थी।
ए बी बद्र््धन ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यह सच है कि वाममोर्चे द्वारा तीसरे मोर्चे के गठन का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। वीपी सिंह और देवेगौड़ा सरकारों के परीक्षण विफल रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद गैर कांग्रेस और गैर भाजपा दलों के लिए एक मंच की आवश्यकता कम नहीं होती।
उन्होंने कहा कि यदि विकास करना है, तो जंगल, जमीन और जल पर कार्पोरेट घरानों के बढ़ते नियंत्रण को रोका जाए और सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाय। सम्मेलन में पारित प्रस्ताव में संघीय व्यवस्था को और भी विस्तार देने की बात की गई। प्रस्ताव में कहा गया कि सम्मेलन महसूस करता है कि केन्द्र के हाथों में सत्ता और संसाधनों का केन्द्रीकरण कम किया जाय और पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाय। इसके लिए केन्द्र और राज्य के संबंधों का फिर से निर्धारण किया जाना चाहिए।
प्रस्ताव में कहा गया कि यूपीए और एनडीए दोनों विरोघाभाषों से भरे हुए हैं और दोनों का आकार घटा है। इसका कारण यह है कि दोनों पार्टियां जन विरोधी नीतियों की पक्षधर हैं। प्रस्ताव के अनुसार दोनों की नीतियों और कार्यक्रमों को नकारे जाने की जरूरत है।
वामदलों के सम्मेलन में यह महसूस किया गया कि कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में 100 से 110 सीटें मिलेगी। भाजपा को भी 140 से ज्यादा सीटें नहीं मिल पाएंगी। (संवाद)
चुनाव बाद की स्थिति को लेकर वामदल चिंतित
कांग्रेस और भाजपा का विकल्प तैयार करना बड़ी चुनौती
हरिहर स्वरूप - 2013-07-08 13:23
कांग्रेस और भाजपा द्वारा राजनैतिक स्थितियों का किया जा रहा मूल्यांकन वामदलों द्वारा किए जा रहे मूल्यांकन से बिल्कुल अलग है। कांग्रेस को लगता है कि अपने बल पर सत्ता में आने मंे विफल रहने के बावजूद वह केन्द्र में सरकार बना लेगी, क्योंकि उसे सहयोगी दल मिल जाएंगे। खाद्य सुरक्षा अध्यादेश लाकर कांग्रेस गरीब लोगों का वोट पाने की उम्मीद पाल रही है। उसे लग रहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल होने और महंगाई के कारण उससे जनता में नाराजगी के बावजूद उसे इतनी सीटें मिल जाएंगी कि वह अपने सहयोगी दलों के साथ आराम से सरकार का गठन कर सके।