आंध्र प्रदेश के पार्टी प्रभारी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने इस मसले पर एक रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपी है। अब कांग्रेस नेतृत्व को निर्णय लेना होगा कि वह अलग तेलंगाना का निर्माण चाहता है या पूरे आंध्र प्रदेश को एक बनाये रखना चाहता है।
इस मसले पर विलंब का कारण यह है कि कांग्रेस चाहती है कि वह प्रदेश के तीनों क्षेत्रों में अपने आपको विजयी बनाकर रखे, लेकिन समस्या बहुत ही गंभीर है। अब वह इस मसले पर और टाल मटोल नहीं कर सकती, क्योंकि लोकसभा ही नहीं, बल्कि विधानसभा के चुनाव भी नजदीक आ रहे हैं। कांग्रेस को डर है कि यदि उसने अलग तेलंगाना राज्य का गठन करवा दिया, तो प्रदेश के दो क्षेत्रों के लोग उससे नाराज हो जाएंगे। पर यदि अलग तेलंगाना राज्य का गठन नहीं हुआ, तो तेलंगाना क्षेत्र में भारी खून खराबा हो सकता है।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इस मसले पर काफी विलंब पहले ही कर डाला है। अब वहां के कांग्रेसी सांसद अपने लोगों को और नहीं भरमा सकते। 9 दिसंबर, 2009 को ही तब के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अलग तेलंगाना राज्य के गठन की केन्द्र की सहमति का इजहार कर दिया था। लेकिन उसके बाद केन्द्र सरकार ने टाल मटोल करना शुरू कर दिया। यह टाल मटोल सर्वसहमति बनाने के नाम पर किया जा रहा है। पर स्पष्ट है कि इस मसले पर आंध्र प्रदेश में सर्वसहमति हो ही नहीं सकती। तेलंगाना क्षेत्र के लोग अलग राज्य की मांग कर रहे हैं तो रायलसीमा और तटीय आंध्रा के लोग इस मांग का विरोध कर रहे हैं।
पिछले 50 साल से भी ज्यादा समय से अलग तेलंगाना राज्य की मांग की जा रही है। 1969 में जय तेलंगाना आंदोलन हुआ, तो 1972 में भी एक तेज आंदोलन हुआ। तेलंगाना आंध्र प्रदेश का एक पिछड़ा हुआ राज्य है और इसके कारण ही यहां के लोग अलग राज्य की मांग कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि अलग राज्य बनने से इस क्षेत्र का तेज विकास होगा। पिछले 4 दशक से यह नक्सलवादियों की गतिविधियों का भी केन्द्र रहा है।
गृहमंत्री की अलग राज्य गठन की घोषणा के बाद इसका अन्य दो क्षेत्रों में भारी विरोध हुआ। इस विरोध को देखते हुए गठन को लेकर टाल मटोल का दौर शुरू हुआ। श्रीकृष्ण आयोग का गठन टाल मटोल की इस नीति का ही एक अंग थे। उस आयोग ने इस मसले पर 6 विकल्प पेश कर दिए। पर उस रिपोर्ट के बाद भी इस मसले पर कोई प्रगति नहीं हुई।
अलग राज्य के गठन के मामले में दो और बड़ी समस्याएं हैं, जिनका निदान आसान नहीं है। पहली समस्या तो हैदराबाद को लेकर है। हैदराबाद तेलंगाना क्षेत्र में पड़ता है। जाहिर है तेलंगाना के लोग इसे अपने पृथक राज्य की राजधानी के रूप में देखना चाहेंगे, पर दो अन्य क्षेत्रों के लोग हैदराबाद को नहीं छोड़ना चाहेंगे, क्योंकि इसके विकास में उनका भी खून पसीना लगा है। उनके लिए भी हैदराबाद प्रतिष्ठा का विषय है। दूसरी समस्या जल के बंटवारे को लेकर होगी। तेलंगाना क्षेत्र जल संसाधनों के मामले में बहुत ही संपन्न है, लेकिन इन संसाधनों का लाभ उसे पूरे तौर पर नहीं मिल पा रहा है। जाहिर है, ज्यादातार संसाधनों पर वह अपना कब्जा चाहेगा, पर अन्य क्षेत्रों के लोग इसका विरोध करेंगे।
पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को आंध्र प्रदेश से सर्वाधिक 33 सीटें प्राप्त हुई थीं। वहां इस समय कुल 42 लोकसभा सीट है। जाहिर है, केन्द्र में सरकार गठन में आंध्र की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण थी। लेकिन इसके बाद से कांग्रेस का आधार यहां कमजोर हो गया है। कांग्रेस के नेता राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद यहा कांग्रेस की चूलें हिल चुकी हैं। रेड्डी के निधन और उनके बेटे जगन मोहन के विरोध ने कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं को बांट डाला है। तेलंगाना आंदोलन ने तो उस इलाके में कांग्रेस को गजब पेशोपेश में डाल दिया है।
अब यदि कांग्रेस तेलंगाना राज्य का गठन करवा देती है, तो शायद वहां से उसे अच्छी सफलता मिल जाए। इस क्षेत्र में 17 लोकसभा सीट है। टीआरएस ने कह रखा है कि यदि कांग्रेस तेलंगाना का गठन कराती है, तो वह अपने आपको उसमें विलीन कर देगी। इसके आधार पर कुछ कांग्रेसी नेता मानते हैं कि अलग राज्य बनने पर वहां की सभी 17 सीटें कांग्रेस की झोली में आ जाएगी। पर ऐसा सोचना गलत है। सच तो यह है कि कांग्रेस को वहां से ज्यादा से ज्यादा 9 सीटें हासिल होंगी। इसके बदले में पार्टी का रायलसीमा और तटीय आध्रा मे ंपूरी तरह सफाया हो जाएगा।
यदि कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश को एक रखने का फैसला किया तो तेलंगाना में खून खराबा शुरू हो जाएगा। कांग्रेसी सांसद बगावत कर देंगे और केन्द्र की यूपीए सरकार का अस्तित्व की खतरे में पड़ जाएगा। जाहिर है, स्थिति बहुत ही विकट है। क्या कांग्रेस नेतृत्व इसके लिए तैयार है? (संवाद)
तेलंगाना मसले पर अब निर्णय लेना होगा
क्या कांग्रेस आलाकमान इसके लिए तैयार है?
कल्याणी शंकर - 2013-07-12 14:32
क्या तेलंगाना राज्य का निर्माण हो पाएगा? यदि कांग्रेस के अंदर का मूड कोई संकेत है, तो लगता है कि इस समस्या का समाधान शीघ्र ही होने वाला है। तेलंगाना के कांग्रेसी सांसद अबतक अपनी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि इस मसले पर उसकी नीति एक कदम आगे चलने और दो कदम पीछे चलने की रही है। अब कांग्रेस नेतृत्व अपने इन सांसदों की और उपेक्षा नहीं कर सकता।