उसे अपील करने का मौका दिया जाता है और अपील के बाद अंतिम फैसले तक उसकी सदस्यता बनी रहती है। ओमप्रकाश चैटाला का उदाहरण सामने हैं। उन्हें शिक्षक भर्ती घोटाले में अदालत ने सजा दे रखी है। उस सजा के खिलाफ उन्होंने अपील दायर कर रखी है और वे अभी भी हरियाणा विधानसभा के सदस्य हैं। हालांकि अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि यह फैसला उन लोगों पर लागू नहीं होगा, जो पहले कभी दोषी करार हुए थे और अभी अपील के दौर में अपने पद पर बने हुए हैं। यह फैसला आने वाले दिनों में किसी दोषी विधायक या सांसद पर लागू होगा। लालू यादव पर चारा घोटाला का एक मुकदमा चल रहा है। उसका फैसला तो 15 जुलाई को ही आने वाला था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उस पर रोक लगा रखी है। यदि आने वाले समय में वह फैसला आता है और लालू यादव दोषी साबित होते हैं, तो उनकी लोकसभा की सदस्यता फैसला आते के साथ समाप्त हो जाएगी। यदि कणिमोरी और कलमाड़ी भी दोषी पाई जाती हैं, तो उन दोनों की संसद से सदस्यता समाप्त हो जाएगी। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता पर भी आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति हासिल करने का एक मुकदमा चल रहा है। यदि वे भी दोषी पाई जाती हैं, तो उनके साथ भी वैसा ही होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने उसके साथ ही एक और फैसला दिया है और वह यह है कि जेल में बंद कोई व्यक्ति लोकसभा या विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ सकता। उसके इस फैसले से भी देश की राजनीति को अपराधी तत्वों से मुक्त करने में सहायता मिलेगी।
यदि सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों को सही तरीके से लागू किया गया, तो राजनैतिक दल वैसे लोगों को टिकट देने के पहले कई बार सोचेंगे, जिनके खिलाफ आपराधिक मुदकमे चल रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अपना पूरा प्रभाव तभी दिखाएगा, जब न्याय की प्रक्रिया तेज होगी। अभी तो यह हाल है कि मुकदमा शुरू होने के बाद फैसला जल्द आता ही नहीं। राजनीतिज्ञ इसका लाभ उठाते हैं। जाहिर है, यदि अदालतों में मुकदमे कछुआ गति से चलते रहे, तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पूरा प्रभाव पैदा नहीं करेगा।
हमारी संसद और विधायिकाओं में अपराधी पृष्ठभूमि के सदस्यों की भरमार है। 4806 सांसदो-विधायकों में से 1460 ने यह घोषित कर रखा है कि उनके खिलाफ आपराधिक मुदकमे चल रहे हैं। 543 लोकसभा सदस्यों में से 162 ने भी कह रखा है कि उनके खिलाफ आपराधिक मुदकमे दर्ज हैं। 4032 विधायकों में से 1358 ने भी अपने खिलाफ आपराधिक मुदकमा चलने की बात खुद स्वीकार कर रखी है।
जाहिर है कि हमारे चुनाव कानूनों में दोष है, जिसका फायदा उठाकर हत्यारे तक संसद में आ जाते हैं। इसके कारण हमारी देश की राजनैतिक संस्कृति का पतन हुआ है। अपराधियों और राजनीतिज्ञों के बीच नापाक गठबंधन का एक बड़ा कारण भी यही है।
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि दो सदस्यों के बंेच का इतने बड़े मसले पर आया यह फैसला शायद कानूनी और सांवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है। इसलिए सरकार इस मसले पर अपील करने की सोच रही है और वह इसे 5 सदस्यों के संवैधानिक बेंच के पास ले जा सकती है।
डर जाहिर किया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दुरुपयोग किया जा सकता है। अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को गलत मुकदमों में फंसा कर सजा दिलवाई जा सकती है और उसे चुनाव लड़ने से रोका ही नहीं जा सकता, बल्कि जीते होने की स्थिति में सदस्यता भी समाप्त करवाई जा सकती है। जाहिर है, इस तरह के डर का समाधान किया जाना चाहिए और आने वाले दिनों में शायद इस तरह की आशंकाओं का निराकरण हो भी।
राजनेता सबसे ज्यादा चिंतित सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को लेकर हैं, जिसमें कहा गया है कि जेल में बंद कोई व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता। इसके तहत जेल में बंद वे लोग भी शामिल हैं, जिन्हें सजा नहीं सुनाई गई है और वे सिर्फ विचाराधीन कैदी हैं।
कांग्रेस और भाजपा के नेता निजी बातचीत में इस पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। सीपीएम के महासचिव प्रकाश करात तो खुलकर इसके खिलाफ हैं। उनका कहना है कि इस फैसले का भारी पैमाने पर दुरुपयोग होगा। अन्य अनेक लोग भी श्री करात की बात से सहमति व्यक्त कर रहे हैं।
इतना तो तय है कि सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों ने राजनीति को अपराधीकरण के दंश से मुक्त कराने के लिए एक बहस की शुरुआत करा दी है। (संवाद)
न्याय की गति तेज करके ही राजनीति को साफ किया जा सकता है
सुप्रीम कोर्ट के प्रशंसनीय फैसले
हरिहर स्वरूप - 2013-07-15 18:20
सुप्रीम कोर्ट के एक के बाद एक आए दो फैसलों ने राजनीति को अपराधी तत्वों से मुक्त कराने की दिशा में कुछ आशावादी संदेश दिए हैं। इन फैसलों का उन सबने स्वागत किया है, जो राजनीति को साफ सुथरा रखना चाहते हैं। एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों की सदस्यता तो अपील पर फैसला आने तक अपने पदों पर बनाए रखा जाय। गौरतलब है कि अभी तक की व्यवस्था में यदि किसी सांसद अथवा विधायक को अदालत द्वारा दोषी करार दिया जाय, तो उसकी संसद या विधानसभा की सदस्यता नहीं समाप्त होती।