नीतीश सरकार पिछले 7 साल से दावा कर रही है कि उसने राज्य की न केवल सड़कों को अच्छा बना दिया है, बल्कि ध्वस्त स्वास्थ्य सेवा को पटरी पर ला दिया है। पर मशरख के लोगों का कहना है कि यदि अस्पताल की हालत अच्छी होती, तो अनेक लोगों को मरने से बचाया जा सकता था। वे यह भी कह रहे हैं कि मशरख की प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में जब मामला संभल नहीं रहा था, तो छपरा से डाॅक्टरों को यहां बुलाया जाना चाहिए था और दवाइयां भी वहां से जल्द मंगवाई जानी चाहिए थे। गौरतलब है कि दो बच्चों की मौत तो मशरख के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर ही हो गई थी और बाकी की मौत बड़े अस्पताल के रास्ते, छपरा और पटना के अस्पतालों में हुई।

भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ने के बाद जिस तरह से प्रदेश सरकार की विफलताओं की खबरें एक के बाद एक आ रही है, उसने नीतीश कुमार की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करना शुरू कर दिया है। बोधगया के धमाकों को रोक पाने में विफल रहने के लिए तो नीतीश कुमार सीधे जिम्मेदार माने जाएंगे, क्योंकि गृहमंत्रालय उन्हीं के पास है। केन्द्रीय खुफिया ब्यूरो राज्य की पुलिस को बोधगया में आतंकवादी हमले की संभावना के बारे में लगातार आगाह कर रही थी। उसने यहां तक बता दिया था कि आतंकवादी बोधगया पहुंच भी गए हैं और कभी भी हमला हो सकता है। पर प्रदेश के पुलिस अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंग रही थी। पटना के स्तर से उस विस्फोट को रोकने के लिए कार्रवाई की जानी चाहिए थी, पर खुफिया ब्यूरो की उस सूचना को गया पुलिस के पास अग्रसारित कर राज्य के बड़े पुलिस अधिकारियों ने अपने कर्तव्य की इतिश्री मान ली। उन्होंने जिला पुलिस के साथ मिलकर विस्फोट रोकने की कोई योजना नहीं बनाई। जिला पुलिस ने सुरक्षा के क्या इंतजाम किये हैं, इसका भी कोई जायजा नहीं लिया। बाद में पता चला कि रात को बोधि मंदिर की सुरक्षा का कोई प्रबंघ न तो पुलिस ने किया था और न ही मंदिर की अपनी कमिटी ने।

उस विस्फोट को रोकने की मुख्य जिम्मेदारी पुलिस की ही थी। उसे कम से कम मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा की गई तैयारी की समीक्षा तो करनी चाहिए थी और उसे बताना चाहिए था कि उसमें क्या लूप होल्स हैं। लेकिन विस्फोट के पहले पुलिस ने न तो अपने स्तर पर 24 घंटें सुरक्षा उपलब्ध करने का इंतजाम किया और न ही यह देखने की जहमत उठाई कि वहां की आंतरिक सुरक्षा 24 घंटे मुस्तैद है या नहीं। इसके कारण आतंकवादियों को मौका मिल गया। वे रात को वहां बम प्लांट करने में सफल हो गए और सुबह सुबह विस्फोट भी कर दिया। यह तो अच्छा रहा कि आतंकवादियों ने विस्फोट का जो समय तक किया था, वह भीड़भाड़ के पहले वाला समय था। नही तो वहां भारी खून खराबा हुआ होता।

पुलिस की विफलता राजनैतिक प्रशासन की भी विफलता है। बोधगया कोई साधारण जगह नहीं है। वह अंतरराष्ट्रीय ख्याति की जगह है। वहीं राजकुमार सिद्धार्थ ने ज्ञान की प्राप्ति कर बुद््धत्व प्राप्त किया था। वह दुनिया भर के बौद्धों के लिए पवित्र स्थान है। दुनिया के अनेक देशों के यात्री वहां हमेशा देखे जा सकते हैं। उस स्थान के महत्व को देखते हुए गुहमंत्री होने के नाते नीतीश कुमार को खुद देखना चाहिए था कि वहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम है कि नहीं। वहां होने वाले संभावित हमले की चर्चा बहुत दिनों से हो रही थी। दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने खुद प्रेस कान्फ्रेंस करके यह बताया था कि बोधगया का महाबोधि मन्दिर आतंकवादियों के निशाने पर है। उसकी रेकी की जा चुकी है और वीडीयो फिल्म भी बनाई जा चुकी है। हमले के पहले वाले सप्ताह में खुफिया ब्यूरो लगातार बिहार पुलिस को बता रही थी कि हमले का समय नजदीक आ गया है और आतंकवादी वहां पहुंच भी चुके हैं। नीतीश कुमार को इन जानकारियों के मद्दे नजर खुद सुरक्षा के बारे मंे आश्वस्त हो जाना चाहिए था, लेकिन उन्होंने अपने स्तर पर लापरवाही दिखाई और उसका असर यह हुआ कि वहां के पुलिस हुक्मरान भी लापरवाह हो गए और जिस हमले का टाला जा सकता था, वह हो गया।

मिड डे मील खाकर मौत की गाल में समाए बच्चों के लिए भी नीतीश कुमार सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय इस समय उन्हीं के पास है। विषाक्त भोजन के बाद यह उनकी चिकित्सा सही समय पर होती, तो अनेक बच्चों को बचाया जा सकता था। लेकिन सही रूप से उनकी चिकित्सा नहीं हो पाई और बच्चे मारे गए।

प्रशासन अभी जांच कर रहा है कि वह भोजन कैसे विषाक्त हुआ। उसमें कीटनाशक मिलाए जाने की बात भी की जा रही है। पर सवाल उठता है कि कोई जानबूझकर बच्चों के भोजन में कीटनाशक क्यों मिलाएगा? सच तो यह है कि यह सीधे भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। मिड डे मिल के खानों में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। घटिया अनाज की आपूर्ति भी भ्रष्टाचार का ही हिस्सा है। इस खराब मौसम में अनाज का सड़ जाना आम बात है और जिस सड़े अनाज को बरबाद घोषित किया जाता है, उसकी भी सप्लाई स्कूलों में कर दी जाती है और अच्छे अनाज को काले बाजार में बेच दिया जाता है। यह धंधा पूरे प्रदेश में चल रहा है और इस धंधे मे नीचे से ऊपर तक के लोग शामिल हैं। इसके बारे मे नीतीश कुमार को पता नहीं है, इसके बारे में किसी को कोई शक नहीं है, लेकिन प्रशासन के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने तो उनकी प्राथमिकता में ही शामिल नहीं है। वे सुशासन की बात करते हैं, लेकिन आज बिहार में चैतरफा भ्रष्टाचार का राज है। पहले तो कुछ प्रभावशाली लोग अपनी हैसियत का लाभ उठाकर भ्रष्टाचार का शिकार होने से बच भी जाते थे, लेकिन नीतीश कुमार ने अधिकारियों को पूरा संरक्षण दे रखा है। कहते हैं कि विधायकों और सांसदों तक को अपना काम प्रशासन से करवाने के लिए घूस देनी पड़ती है।

ऐसे माहौल में इस तरह की घटना तो होगी ही। नीतीश कुमार ने अपने ऊपर 18 मंत्रालयों का बोझ उठा रखा है। उन्होंने भाजपा के 11 मंत्रियों को बर्खास्त कर उनके मंत्रालय अपने पास ले रखा है। न तो नये मंत्रियों की नियुक्ति हुई है और न ही पुराने मंत्रियों मे उन विभागों को वितरित किया गया है। इसके कारण बिहार का प्रशासन और भी पंगु हो गया है। फिर इस तरह की अव्यवस्था को कैसे समाप्त किया जा सकता? (संवाद)