उस कानून के अनुसार प्राथमिक विद्यालयों में 30 छात्र पर एक शिक्षक होना चाहिए। लेकिन 2012 के अंत तक प्रदेश के 43 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक छात्र का अनुपाल कानून द्वारा प्रस्तावित अनुपात से बहुत ही कम था। 6 फीसदी प्राथमिक विद्यालय तो ऐसे हैं, जहां सिर्फ एक ही शिक्षक हैं।
मध्य विद्यालयों के 35 छात्रों पर एक शिक्षक का प्रावधान शिक्षा के अधिकार कानून के तहत किया गया है। लेकिन 37 फीसदी मध्य विद्यालयों में इस अनुपात का पालन नहीं किया जा रहा है। सच तो यह है कि 11 फीसदी मध्य विद्यालयों में सिर्फ एक ही शिक्षक छात्रों को पढ़ाते हैं।
कानून के तहत साल भर में प्राथमिक विद्याालयों में कम से कम 2.00 दिन पढ़ाई की जानी चाहिए और मध्य विद्यालयों में कम से कम 220 दिन। शिक्षक एक सप्ताह में कम से कम 45 घंटे छात्रों को पढ़ाएं। विद्यालयों में कितने कमरे होने चाहिए, इसके बारे में भी कानून में साफ साफ बता दिया गया है। इसके अनुसार हेड मास्टर का कक्ष अलग होना चाहिए और शिक्षको के लिए भी एक कक्ष होना चाहिए। सभी कक्षाओं के लिए भी अलग अलग से कक्ष होने चाहिए।
लेकिन सर्वेक्षण से चैंकाने वाली बातें सामने आई हैं। प्रदेश में सिर्फ 10 फीसदी विद्यालय ही ऐसे हैं, जिनमें पर्याप्त संख्या में कमरे हैं। 41 फीसदी विद्यालय ऐसे हैं, जिनमें मात्र दो ही कमरे हैं। 15 फीसदी प्राथमिक विद्यालयों में पहली से पांचवी कक्षा के क्लास एक ही कमरे मंे होते हैं। सिर्फ 35 फीसदी मध्य विद्याालयों में ही सही संख्या में कमरे हैं। 27 फीसदी मध्य विद्यालयों में तो मात्र दो ही कमरे हैं, जबकि 4 फीसदी मध्य विद्यालय ऐसे भी हैं, जिनमें मात्र एक ही कमरे हैं।
कानून के अनुसार छात्रों और छात्राओं के लिए अलग अलग शौचालय होने चाहिए। सर्वे के अनुसार 76 फीसदी विद्यालयों में शौचालय हैं, पर उनमें से मात्र 50 फीसदी में ही छात्रों और छात्राओं के लिए अलग अलग शौचालय हैं। एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि अभिभावक अपनी बड़ी लड़कियों को इसलिए विद्यालय से हटा लेते हैं, क्यांेकि वहां उनके लिए अलग से शौचालय नहीं होते। कानून में छात्रों के लिए पीने के पानी का इंतजाम करने को भी कहा गया है, लेकिन मात्र 33 फीसदी विद्यालयों में ही पीने के पानी का इंतजाम किया जाता है।
विद्यालयों के लिए खेल का मैदान होना जरूरी है, लेकिन 2013 तक 17 फीसदी विद्यालयों मे खेल के मैदान नहीं थे। कानून में कहा गया है कि स्कूलों में चहारदीवारी होनी चाहिए, पर 76 फीसदी विद्यालयों मे चहारदीवारी थी ही नहीं। चहारदीवारी नहीं होने से विद्यालय का वातावरण असुरक्षित हो जाता है और रात में समाज विरोधी तत्व उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। उसके कारण विद्यालय के भवन भी असुरक्षित हो जाते हैं। कानून के अनुसार विद्यालय की अपनी एक प्रबंधन समिति भी होनी चाहिए। अनेक विद्यालयों में प्रबंधन समिति तो है, लेकिन उसकी बैठकें नियमित रूप से नहीं होतीं।
सर्वेक्षण में एक और बात सामने आई कि विद्यालय जन्म प्रमाण पत्र और स्कूल स्थानांतरण प्रमाण पत्र के अभाव में छात्रों का प्रवेश नहीं ले रहे हैं, जबकि कानून में इस तरह के प्रवेश की व्यवस्था है। प्रवेश लेने से इनकार करने वाले विद्यालयों का प्रतिशत 68 फीसदी था। (संवाद)
मध्यप्रदेश में शिक्षा क्षेत्र अस्त व्यस्त
शिक्षा का अधिकार कानून की उड़ रही है धज्जियां
एल एस हरदेनिया - 2013-07-21 07:08
भोपालः शिक्षा का अधिकार कानून को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश की शिक्षा की स्थिति का सर्वेक्षण करने पर पाया गया है कि यहां की स्थिति बहुत ही असंतोषजनक है। भोपाल में हाल ही में इस मसले पर एक दिन की कार्यशाला हुई, जिसमें गैर सरकारी संगठनों ने अपने अपने अध्ययन प्रस्तुत किए। इन संगठनों ने शिक्षा की स्थिति का पता लगाने के लिए राज्य के अनेक जिलों में अनेक सर्वेक्षण किए थे। इनमें लगभग सभी जिले शामिल थे। अनेक संगठनों के प्रवक्ताओं ने बताया कि मध्यप्रदेश में शिक्षा की मूल अधिसंरचना पूरी तरह से तैयार ही नहीं हो पाई है। गौरतलब हो कि इस कानून के तहत केन्द्र सरकार ने राज्यों को शिक्षा का इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए तीन साल का समय दिया था।