राजनैतिक दल एक दूसरे पर उस हादसे की जिम्मेदारी डाल रहे हैं। नीतीश कुमार पर ताबड़तोड़ हमले किए जा रहे हैं। वे बिहार की सफलता की कहानी कहकर देश के सामने विकास का बिहार माॅडल पेश कर रहे थे और इसी बीच इस तरह का हादसा हो गया और उस हादसे के लिए उनको जिम्मेदार ठहराया जाने लगा। उनके विरोधियों को यह एक अच्छा हथियार मिल गया है, जिसकी सहायता से वह नीतीश की ऐसी तैसी करने में लगे हुए हैं।
और नीतीश भी कोई दूध के धुले हुए नहीं हैं। उन्होंने अपनी तरफ से भी इस मामले के राजनैतिककरण में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। यह हादसा उनकी सरकार की विफलता का नतीजा है। पर वे इसके लिए अपने राजनैतिक विरोधियों को जिम्मेदार मान रहे हैं। उनका मुख्य निशाना राष्ट्रीय जनता दल है और वे साथ साथ भाजपा को भी इसमे ंलपेट रहे हैं। इससे उनकी छवि और भी खराब हो रही है, क्योंकि सरकार मे ंवे हैं, न कि राष्ट्रीय जनता दल अथवा भाजपा। अपनी सरकार की चूक के लिए वे विपक्ष को कैसे जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। विपक्ष में साजिश रचने का उनका आरोप भी उन्हीं को नुकसान पहुंचा रहा है, क्योंकि यह आरोप वह जांच पूरी होने के पहले ही लगा रहे हैं। जाहिर है, जब मुख्यमंत्री ही पहले से जांच का निष्कर्ष घोषित करने पर तुला हुआ हो, तो उसकी सरकार द्वारा कराई गई जांच की निष्पक्षता पर कौन विश्वास करेगा।
मिड डे मील योजना केन्द्र सरकार की एक कल्याणकारी योजना है, जिसके तहत सरकारी विद्यालयो के विद्यार्थियों को दोपहर का भोजन दिया जाता है। यह योजना देश के 13 लाख विद्यालयों में चल रही है और प्रति साल 10 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा पैसा इस पर खर्च किया जा रहा है। इस योजना का बीजारोपण तमिलनाडु में कामराज ने किया था, पर देश भर में दोपहर को पका हुआ खाना विद्यालयों में उपलब्ध कराने की यह योजना 2005 में शुरू हुई। इस योजना का पूरा खर्च केन्द्र सरकार वहन करती है और इसे राज्य सरकारें अमल में लाती हैं। केन्द्र सरकार अनाज और पैसा राज्य सरकारो को उपलब्ध कराती है।
लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति बहुत ही भयानक है। बिहार में यह योजना 2005 से चल रही है। जिस स्कूल में यह घटना घटी, उसकी स्थापना 2010 में हुई थी। उस स्कूल में इस समय 89 बच्चे पढ़ रहे हैं। वहां न तो ठीक संख्या में कर्मचारी हैं और न ही खाने के सामानों के भंडारण की व्यवस्था। यह क्षोभ का विषय है कि स्कूल के निर्माण के बाद वहां कभी भी किसी राज्य, जिला अथवा प्रखंड स्तरीय पदाधिकारी ने दौरा नहीं किया। अभी तक उस स्कूल के लिए जारी की गई राशि का 55 से 60 फीसदी ही खर्च हुआ है।
हादसे के दिन बच्चों को चावल, सोयाबीन और आलू परोसे गए थे। जब छात्रों ने खराब स्वाद की बात की तो मुख्य अध्यापिका ने उन्हें डाटा और चुपचाप खाना खाने को कहा। बाद मे पुलिस ने इस बात की पुष्टि की कि फोरेंसिक जांच में पाया गया कि तेल में कीटनाशक दवाई मिली हुई थी। उस कीटनाशक का इस्तेमाल फसलों की कीड़ों से सुरक्षा में किया जाता है।
इस हादसे के बाद राज्य सरकार की जो प्रतिक्रिया थी, वह बहुत ही आपत्तिजनक थी। शिक्षा मंत्री पी के शाही ने कहा कि प्रदेश के 73 हजार विद्यालयों के छात्रों को अच्छा खाना उपलब्ध कराना एक बहुत ही मुश्किल काम है। मंत्री ने शुरू में ही संकेत कर दिया था कि इस हादसे के लिए राष्ट्रीय जनता दल जिम्मेदार हो सकता है। क्या यह इन्दिरा गांधी की सरकार के दिनो की याद नही दिलाती है, जब श्रीमती गांधी देश की प्रत्येक समस्या के लिए विदेशी हाथ को जिम्मेदार ठहराती थी? हद तो तब हो गई, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने शिक्षा मंत्री के सुर में सुर मिलाकर इस घटना के लिए विपक्षी दलों की साजिश को जिम्मेदार बता रहे हैं। उनका कहना है कि प्रधान अघ्यापिका का पति लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल से जुड़ा हुआ हैं इस तरह की ओछी राजनीति निश्चय ही निंदनीय है। (संवाद)
त्रासदियों पर राजनीति बंद हो
मिड डे मील का हादसा हमारे लिए एक बड़ी चेतावनी है
कल्याणी शंकर - 2013-07-27 08:49
क्या राजनैतिक दलों को त्रासदियों और प्राकृतिक आपदाओं पर राजनीति करनी चाहिए? पिछले महीने ही उत्तराखंड में एक बड़ी आपदा का हमें सामना करना पड़ा, जिनमें हजारों मारे गए और लाखों बेघर हो गए। उसमें भी राजनीति हुई। अब बिहार के सारण जिले के एक गांव के एक प्राथमिक विद्यालय में विषाक्त मिड डे भोजन के कारण 23 बच्चों की मौत पर शर्मनाक राजनीति हो रही है।