यही कारण है कि जब जब नरेन्द्र मोदी का बयान आता हैं, कांग्रेस के प्रवक्ता उन पर टूट पड़ते हैं। उन प्रवक्ताओं का उत्साह देखता बनता है, जब बात मुस्लिम की आती है। जब नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यदि कोई कुत्ते का बच्चा भी उस कार के नीचे आ जाय, जिसकी पिछली सीट पर बैठकर आप सवारी कर रहे हों, तो दुख तो होता ही हैए तो मोदी पर कांग्रेस प्रवक्ता उन पर टूट पड़े। उसके बाद सेकुलरिज्म का बुर्का वाले उनके बयान पर भी कांग्रेस प्रवक्ताओं का वैसा ही रवैया।

नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाते हुए एक कांग्रेसी प्रवक्ता ने तो यहां तक कह डाला कि इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना के लिए गुजरात का 2002 का दंगा जिम्मेदार है। यह एक बहुत ही खतरनाक बयान था जिसके द्वारा कांग्रेस के प्रवक्ता इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना और गतिविधियों को ही उचित ठहरा रहे थे। ऐसा करके वे न केवल इस सच का झुठला रहे थे कि इंडियन मुजाहिदीन कोई नया संगठन नहीं, बल्कि एक पुराने संगठन सिमी का नया नाम है। 2001 में सिमी को भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। उसके बाद सिमी के उग्रवादी तत्वों ने इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना कर डाली। यह घटना 2002 के गुजरात दंगों के पहले की है। आलोचना होने पर कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने कह डाला कि इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना से संबंधित वह विचार उनका अपना नहीं था, बल्कि नेशनल इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो का था, जिसे उसने एक आंतकवादी घटना से संबंधित एक चार्ज शीट में व्यक्त किया है। वह कौन सी चार्जशीट थी, इसे तो शकील अहमद ने नहीं बताया। शायद कोई वैसी चार्जशीट कहीं है ही नहीं और शकील अहमद का यह बयान कांग्रेसी प्रवक्ताओं के बीच में नरेन्द्र मोदी पर हमला करने की छिड़ी प्रतिस्पर्धा का नतीजा था। इस तरह की प्रतिस्पर्धा आज कांग्रेसी प्रवक्ताओं में बहुत तेज हो गई है। मोदी के सवाल पर सब एक दूसरे को पटकनी देने में लगे हुए हैं।

उधर बटाला मुठभेड़ पर आए फैसले के बाद भी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वह मुठभेड़ असली था। उसे अब भी वे नकली मुठभेड़ मानते हैं, जिनमें निर्दोष मुस्लिम युवक मारे गए। जिस युवक को अदालत ने दोषी करार दिया, उसे भी दिग्विजय सिहं निर्दोष ही मानते हैं। जाहिर है, वे मुसलमानों का समर्थन हासिल करने के लिए पुलिस को ही नहीं, बल्कि अदालत को भी कटघरे में खड़े कर रहे हैं। केन्द्र सरकार के वित्त मंत्री पी चिदम्बरम, जो लंबे अरसे तक गृहमंत्री भी थे, लगातार कह रहे हैं कि वह मुठभेड़ फर्जी नहीं था और उसमें मारे गए युवक आतंकवादी ही थे, जिन्होंने दिल्ली में दिवाली के समय बम धमाकों को अंजाम दिया था, पर दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी नेता उस मुठभेड़ को फर्जी मानने की अपनी जिद से पीछे हटने को तैयार नहीं।

भ्रष्टाचार और महंगाई के मसले पर लोगों का जवाब देने में असमर्थ कांग्रेस को लगता है कि आगामी लोकसभा चुनाव को धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की जंग बना डालो। उसकी धर्मनिरपेक्षता मुस्लिमों में सांप्रदायिक उभार पैदा करने के अलावा और कुछ भी हासिल नहीं कर पाती। सांप्रदायिकता के खतरे को दिखाकर मुसलमानों मंे भय पैदा करना और उस भय का राजनैतिक फायदा उठाना कांग्रेस की इस रणनीति के मूल में है।

पर कांग्रेस नेता इस बात को भूल रहे हैं कि इस तरह मुस्लिमों मे भय पैदा करने वाली धर्मनिरपेक्षता का राग बहुसंख्यक हिंदुओं मंे बैकलैश पैदा कर सकता है। आज का भारत 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों का भारत नहीं है। उस समय राम जन्म भूमि आंदोलन चल रहा था, तो मंडल का आंदोलन भी चल रहा था। भाजपा के हिंदुत्व को मंडल के जातिवादी आंदोलन ने बहुत हद तक रोकने का काम किया था, लेकिन आज कहीं मंडल आंदोलन नहीं है। उस समय जो एक पिछड़ा वर्ग आंदोलन उभर रहा था, अब वह समाप्त हो गया है। उस समय जो पिछड़े वर्गों के नेता थे, आज सिर्फ अपनी अपनी जातियों के नेता रह गए हैं। अपनी जाति से बाहर पिछड़े वर्गों के अन्य लोगों में उनकी कोई लोकप्रियता शेष नहीं रह गई है। इसके कारण भाजपा के हिंदुत्व को रोकने के लिए जो माहौल 1990 के दशक था, आज बिलकुल नहीं है।

इसके ठीक विपरीत नरेन्द्र मोदी, जिन्हें भाजपा शायद प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए और जिन्हें केन्द्रित कर कांग्रेस अपनी कथित धर्मनिरपेक्षता की राजनीति कर रही है, खुद पिछड़े वर्ग से आते हैं। देश में पिछड़े वर्गांे की संख्या बहुत ज्यादा है और खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में उनका समर्थन और विरोध काफी मायने रखता है। एक समय जो पिछड़ा चर्ग हिन्दुत्व के रथ को रोकने का हथियार बना, आज वह खुद हिंदु बैकलैश के प्रभाव में आकर हिन्दुत्व की राजनीति को मजबूत कर सकता है। कांग्रेस नेता इस बात को भूल रहे हैं कि उन्होंने मुसलमानों को साढ़े 4 फीसदी आरक्षण पिछड़े वर्गो के 27 फीसदी से काटकर ही दिया था। इस तरह मुसलमानों और पिछड़े वर्गो के हिन्दुओं के बीच दरार पैदा करने का काम कांग्रेस पहले ही कर चुकी है। अब वे मुसलमानों के लिए भाजपा का विरोध करना शायद पसंद नहीं करें। यह सच है कि पिछड़े वर्गों के कुछ नेता अपनी अपनी जातियों के बीच अभी भी बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन अपनी जाति के बाहर के पिछड़ा पर उनका प्रभाव लगभग समाप्त हो चुका है। और ये लोग आसानी से हिन्दु बैकलैश के प्रभाव में आ सकते हैं।

कांग्रेस जो राजनीति कर रही है, उसके कारण यदि उसने भाजपा और मोदी के खिलाफ मुसलमानों का पूरी तरह से घ्रुवीकरण कर भी दिया, तो उसका फायदा उसे उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में नहीं मिल पाएगा, क्योंकि मुसलमान भाजपा के विरोधी उसी दल के ध्रुव पर ध्रुवीकृत होंगे, जो मजबूत हैं और भाजपा को हराने की क्षमता रखते हैं। कांग्रेस इन राज्यों में पहली दो बड़ी राजनैतिक ताकतों में शामिल भी नहीं है। इसलिए उसे यहां उनका लाभ मिलने से रहा। हां, हिन्दु बैकलैश का लाभ सिर्फ और सिर्फ भाजपा व उसके सहयोगी दलों को ही मिलेगा।(संवाद)