लेकिन इस पर काम विलंब से चल रहा है। इस पुल को 2016 तक बनकर तैयार हो जाने का लक्ष्य था, लेकिन अब यह 2016 में ही बन पाएगा। इस विलंब के कारण पुल का खर्च भी बढ़ गया है। पुल बनाने की इस परियोजना उत्तरी सीमांत रेलवे के पास है। यह पुल बोगीबील और असम को ऊपरी असम से जोड़ते हुए अरुणाचल प्रदेश से भी जोड़ देगा।

इस पुल के कारण असम से अरुणाचल की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पहुंचने में जितना समय आज लगता है, उससे 10 घंटा समय कम लगेगा। एक बार यह पुल बन गया, तो फिर लोगांे और माल का आवागमन आसान और तेज हो जाएगा।

चीन का मानना है कि अरुणाचल प्रदेश ऐतिहासिक रूप से दक्षिण तिब्बत का हिस्सा रहा है। यह कहते हुए वह इस प्रदेश पर अपना दावा पेश करता है और इसे भारत का हिस्सा मानने से इनकार करता है। उसने सीमा के पास अपने इलाके में ऐसी सड़कें बनाई है, जिनका वह सैन्य इस्तेमाल कर सकता है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उस तरह की सड़कें सेना को तेजी से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए ही बनाई गई है।

दूसरी तरफ भारत की रक्षा तैयारी बहुत ही निराशाजनक है। भारत अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे को नहीं मानता है। लेकिन सीमापार चीन में हो रही गतिविधियों को गंभीरता से नहीं ले रहा था। उसने अब चीन की गतिविधियों को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। देर से ही सही, हमने एक रेल और रोड के नेटवर्क का इस इलाके में विस्तार करना शुरू कर दिया है, ताकि हम चीन की ओर से पैदा किए गए किसी खतरे का सामना कर सकें। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इससे संबंधित परियोनाएं अपने समय से पीछे चल रही हैं। इसका एक कारण यह भी है कि इस इलाके में लंबे समय तक बरसाती मौसम रहता है।

ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहा यह पुल सामरिक रूप से ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी अरुणाचल प्रदेश के लिए बहुत ही लाभदायक होगा। भारत की पूरब की ओर देखों नीति के अनुकूल ही यह पुल है। बांग्लादेश, म्यान्मार, भारत और चीन का एक क्षेत्रीय समूह उभर रहा है, इस समूह के उभार को भी इस पुल से सहायता मिलेगी। चीन और बांग्लादेश खासकर भारत से कह रहा है कि वह इस इलाके में रोड और रेल के नेटवर्क को मजबूत करें, ताकि भारत से उनका व्यापार बढ़ सके।

पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नवम तुकी और केन्द्रीय रक्षा मंत्री एके एंटोनी के बीच दिल्ली में एक बैठक हुई। श्री टुकी ने रक्षा मंत्री से वहां की परियोजनाओं मंे हो रही विलंब पर अपनी चिंता जताई और उनसे आग्रह किया कि वे उन परियोजनाओ पर काम को तेज करने के लिए निजी दिलचस्पी दिखाएं और हस्तक्षेप करें।

उन्होंने कहा कि उस क्षेत्र की उन परियोजनाओ ंको सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय विनियमों के चीन द्वारा लगातार उल्लंघन किए जाने पर भी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी चिंता जताई। उन्होंने भारत- म्यान्मार सीमा पर कभी प्रसिद्ध रहे स्टिलवेल रोड को फिर से शुरू कराए जाने की मांग भी की। (संवाद)