यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, जिसमें अदालत ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को 31 मार्च, 2013 तक सभी विद्यालयों में शौचालय की व्यवस्था करने के लिए कहा था। इस आदेश में विद्यालयों में पानी की उपलब्धता, सफाई की व्यवस्था और छात्रों की शिक्षा के संबंधों की ओर भी इशारा किया गया है। पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अधिकांश विद्यालयों में इन सुविधाओं के अभाव को देखा जा सकता है।

शिक्षा के अधिकार कानून के बाद समर्थन सेंटर फाॅर डेवलपमेंट सपोर्ट ने मध्यप्रदेश के सिहोर जिले के 20 गांवों के 23 प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में इन सुविधाओं के स्टैटस का पता करने के लिए एक तुलनात्मक अध्ययन किया। विद्यालयों में न केवल शौचालयों की कमी है, बल्कि जिनमें शौचालय हैं, उनमें पानी की कमी है और शौचालयों में इतनी गंदगी होती है कि छात्रों द्वारा उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसके कारण छात्र स्कूल जाना पसंद नहीं करते। अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन विद्यालयों के छात्र विद्यालय प्रबंधन समित अथवा सरपंच से पानी और सफाई की व्यवस्था की मांग सीधे तौर पर करते हैं, वहां विशेष ध्यान दिया जाता है और पानी व सफाई की व्यवस्था कर दी जाती है। इससे पता चलता है कि विद्यालय के प्रबंधन में छात्रों की सार्थक भागीदारी विद्यालयों में पानी और सफाई की सुविधा उपलब्ध करने में सहायक होती है।

आम विद्यालयों में जब छात्रों से पूछा गया, तो उनमे से 66 फीसदी ने इस बात को स्वीकार किया कि उनके विद्यालयों मंे शौचालय काम नहीं कर रहे हैं। लेकिन जब उन विद्यालयों में जहां के छात्र अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं, इसके बारे में जानकारी ली गई, तो पाया गया कि 89 फीसदी छात्र शौचालयों से संतुष्ट हैं। पानी के टैप और छात्रों के बीच का अनुपात 1ः131 पाया गया। यानी औसतन 131 छात्र पर एक पानी के टेप हैं। सर्वेक्षण किए गए 23 स्कूलों में से मात्र 3 में ही एक से ज्यादा टैप पाए गए। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत छात्रों और छात्राओ के लिए अलग अलग शौचालय की बात की गई है, लेकिन 23 में से 3 विद्यालयों में छात्रों और छात्राओं के लिए एक ही शौचालय पाए गए।

वाटर एड इंडिया और सेव द चिलरेन के सहयोग से समर्थन ने एक पायलट इंटरवेशन की पहल की है जिसके तहत छात्रों के अधिकार पर आधारित अप्रोच के द्वारा ग्रामीण इलाकों के विद्यालयों में पानी और सफाई सुविधाओं को सुनिश्चित किया जा सकता है। इंटरवेशन एरिया और नन इंटरवेंशन एरिया में पीने के पानी की सुविधाओं की उपलब्धता में 33 फीसदी का अंतर पाया गया। इंटरवेंशन एरिया में 9 फीसदी पानी की सुविधाएं काम नहीं कर रही थीं, जबकि नन इंटरवेशन एरिया में 42 फीसदी जल स्रोत काम नहीं कर रहा था।

अधिकांश शिक्षकों को भी छात्रों के शौचालय से संबंधित सुविधाओं और अधिकारों का पता नहीं था। नन इंटरवेंशन एरिया के 94 दशमलव 7 और इंटरवेंशन एरिया के 28 दशमलव 5 फीसदी शिक्षको को इसके बारे मे जानकारी नहीं थी।

शिक्षकों और स्कूल मैनेजिंग कमिटी के सदस्यों को छात्रों के लिए शौचालय, सफाई और जल की सुविधाओं और उनसे संबंधित अधिकारो के बारे में प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है, ताकि उनके अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके। छात्रों की भागीदारी से विद्यालयों की जिम्मेदारी को सुनिश्चित किया जा सकता है,। (संवाद)