भारत ने पिछले दिनों दावा किया था कि म्यान्मार सीमा से लगे बांग्लादेश में स्थित रोहिंग्या मुसलमानों को हथियारों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बांग्लादेश ने भारत के इस दावे का खंडन किया है। भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार हथियार प्रशिक्षण का यह काम पिछले 6 या 7 महीनों से चल रहा है। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य उनके कुछ लोगों को प्रशिक्षित कर अपनी रक्षा करने मे समर्थ बनाना है। जब भारत और बांग्लादेश के सचिवों के बीत पिछले दिनों मुलाकात हुई थी, तो उसमें इस मसले को उठाया गया था।
बांग्लादेश के अधिकारियों ने इस तरह के प्रशिक्षण कैंप की मौजूदगी का सिरे से खंडन किया था और कहा था कि उनका देश विदेशी लोगों को अपनी जमीन का इस्तेमाल हिंसक गतिविधियों के लिए करने को नहीं दे सकता। बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध पिछले कुछ साल से बेहतर हैं। भारत ने बांग्लादेश के रोहिंग्या से संबंधित विचारों पर किसी प्रकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की है।
कुछ साल पहले भारत और बांग्लादेश के बीच आरोपों और प्रत्यारोपों का खेल चल रहा था। बांग्लादेश भारत पर आरोप लगाता था कि वह चकमा उग्रवादियों को संरक्षण देता है और भारत बांग्लादेश पर आरोप लगाता था कि भारत की भूमि पर हिंसक गतिविधियों मंे लिप्त पूर्वात्तर के उग्रवादियों को वह पनाह देता है। भारत ने बांग्लादेश को उल्फा और बोडोलैंड उग्रवादियों के 80 कैंप से भी ज्यादा होने के आरोप लगाए थे और उन कैंपों की एक सूची भी बांग्लादेश को थमा दी थी।
वह अब पुरानी बात हो गई है। फिलहाल रोहिंग्या मुसलमानों को प्रशिक्षण देने के मसले पर दोनों के विचार मेल नहंी खा रहे हैं। लेकिन यह आम तौर पर सब स्वीकार कर रहे हैं कि रोहिंग्या मुसलमानों का मुस्लिम आंतकवादी संगठनों से संपर्क बन गया है। हाल ही में रोहिंग्या मुसलमानों का एक समूह सउदी अरब में म्यान्मार की राजनैतिक परिस्थितियों की समीक्षा करने के लिए पहुंचा हुआ था। रोहिंग्या मुसलमानों ने इंडोनेशियन फोरम उमत इस्लाम संगठन को जकार्ता में संबोधित किया। वे इंडोनेशियाई लोगों से नैतिक और भौतिक समर्थन की मांग कर रहे थे। बांग्लादेश में हाल ही में प्रतिबंधित हुए जमात ए इस्लामी के साथ भी रोहिंग्या मुसलमानों के संबंध होने की बात की जाती रही है।
उधर म्यान्मार के प्रशासक भी रोंिहंग्या मुसलमानों का दमन करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं कर रहे हैं। उनका आरोप है कि ये रोहिंग्या बांग्लादेशी पिता और बर्मी माता की संतान हें और वे अराकान प्रांत का पहले एक स्वायत्त प्रदेश और फिर एक प्रभुतासंपन्न देश बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उनका आरोप है कि रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है और उसके कारण स्थानीय देशी लोगों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। रबिता जैसे मुस्लिम ग्रुप वहां इस्लाम के प्रचार में लगे हुए हैं।
बर्मा के लोगों का कहना है कि ब्रिटिश द्वारा मुसलमान वहां लाए गए थे, जो बाद में हमेशा के लिए वहीं बस गए। उनकी संख्या एक समय 10 लाख तक पहुंच गई। उनपर स्थानीय लोगों द्वारा हमले होने के कारण करीब ढाई लाख लोग वहां से पलायन कर गए। पिछले कुछ महीनों में भी उन पर हमले हुए और उसके दौरान करीब डेढ़ लाख रोहिंग्या निवासी फिर वहां से भागे। हमलों में 200 लोग तो बर्मा के अंदर ही मारे गए, लेकिन भागने के दौरान अनेक रोहिंग्याई मारे गए। उनमें कई तो भूख के कारण मरे और कई समुद्र में डूब गए। वे बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर जाने की कोशिश कर रहे थे।
रोहिंग्या मुसलमानों को स्वीकार करने के लिए बांग्लादेश तैयार नहीं है। अन्य देश भी उन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं। थाईलैंड ने फिलहाल 2000 रोहिंग्याइयों को अपने देश के कैंपों में अस्थाई रूप से ठहरने की इजाजत दी है। मलेशिया और इंडोनेशिया में उससे भी कम लोगों को ठहराया गया है। ये देश म्यान्मार से मांग कर रहे है कि वे रोहिंग्या के मसले का सुलझाएं और उने लोगों को वापस ले जायं।
भारत भी रोहिंग्या समस्या के कारण चिंतित हो रहा है। पिछले दिनों 3000 रोहिंग्या मुसलमान एकाएक दिल्ली में प्रकट हो गए। वे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के सामने प्रदर्शन कर रहे थे। मीडिया खबरों के अनुसार वे स्थानीय मस्जिदों में ठहराए गए थे। जामिया मिलिया के पूर्व कुलपति नवाज जफर जंग ने उस प्रदर्शन को आयोजित करवाया था। अब वे भारत में ही बसना चाहते हैं। कुछ मुस्लिम संगठन उनकी इस मांग का समर्थन भी कर रहे हैं। (संवाद)
रोहिंग्या मुसलमानों के आतंकी संपर्क, भारत की चिंता बढ़ी
आशीष बिश्वास - 2013-08-08 14:17
म्यान्मार के राखिने (अराकान) प्रांत के रोहिंग्या मुसलमानों के आतंकवादी संगठनों से राजनैतिक संबंध होने के प्रमाण मिलने के अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ गई है। भारत ने भी इस मसले पर अपनी बढ़ती चिंता का इजहार किया है।