कांग्रेस को उम्मीद है कि यह कानून चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बनेगा और इसी को देखते हुए वह आगामी 20 अगस्त से ही वह इसे देश भर में लागू कर देना चाहती है। गौरतलब है कि 20 अगस्त राजीव गांधी का जन्म दिवस है। वैसे सोनिया गांधी चाहती थी कि यह 15 अगस्त को ही प्रधानमंत्री द्वारा लालकिला से देश के नाम संबोधन के साथ इसे लागू कर दिया जाय, पर वैसा हो नहीं सका, क्योंकि उस समय तक यह विधेयक संसद द्वारा पारित नहीं हो पाया। अब कांग्रेस को उम्मीद है कि 20 अगस्त के पहले यह विधेयक कानून बन जाएगा और उसके बाद उसे लागू करने में कोई तकनीकी अड़चन सामने नहीं आएगी। दिल्ली सहित कांग्रे शासित लाू करने की तैयारी कर चुकी है।

खाद्य सुरक्षा कानून कांग्रेस का जनता को दिया गया वह उपहार है, जिसके बदले में वह उनसे चुनाव में समर्थन मांगेगी। लोकसभा चुनाव आज सिर पर है और देश की राजनैतिक व आर्थिक दोनों स्थिति कांग्रेस के प्रतिकूल बनी हुई है। राजनैतिक मोर्चे पर वह भ्रष्टाचार के आरोपों का एक के बाद एक सामना कर रही है और उन आरोपों पर उसके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है। देश की आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब है। महंगाई बढ़ती जा रही है और देश की जनता इसके लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार को सीधे रूप से जिम्मेदार मानती है, क्योंकि कीमतों की वृद्धि में उसके द्वारा लिए गए कुछ निर्णय प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार दिख रहे हैं। इन परिस्थितियों मे फंसकर कांग्रेस के लिए खाद्य सुरक्षा कानून काफी मायने रखता है। उसे लगता है कि बस यही मुद्दा उसे चुनावी वैतरनी पार लगा सकता है और वह केन्द्र की सरकार में लगातार तीसरी बार सत्ता में आ सकती है।

प्रत्यक्ष तौर पर देखने से यह लगता है कि इस तरह के कानून की आज सख्त आवश्यकता है, क्योंकि आजादी के अनेक दशक बीत जाने के बाद भी आज देश में अनेक लोगों को खाली पेट सोना पड़ता है। इस कानून के तहत देश की आबादी के 65 फीसदी लोगों को चावल तीन रुपये प्रति किलो, गेहूं 2 रुपये प्रति किलो और मोटा अनाज एक रुपये प्रति किलो मिल सकेंगे। गांव के लोगों का 75 फीसदी और शहर के लोगो का 50 फीसदी इस योजना से लाभान्वित होगा। सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस को इसका लाभ चुनाव में मिल सकेगा? क्या आगामी कुछ महीनों में इसका लाभ लोगों को मिलने लगेगा, जिससे वे कांग्रेस को वोट देने की ओर मुखातिब हो जाएंगे?

इस कानून के आलोचकों की संख्या भी कोई कम नहीं है। उनका कहना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का देश में बुरा हाल है। अनियमितता और भ्रष्टाचार के कारण 51 फीसदी अनाज इस प्रणाली के तहत लोगों तक पहुंच ही पाते। इस कानून का लाभ पाने वाले लोगों की पहचान करना भी एक बड़ी समस्या है। खतरा यह है कि जिनको लाभ मिलना चाहिए, वे तो लाभ नहीं पा सकेंगे और जिन्हें इस सुरक्षा की जरूरत नहीं है, वह भ्रष्टाचार और अनियमितता का लाभ उठाकर लाभान्वितों में शामिल हो जाएंगे।

सभी राज्यों को इसके लिए तैयार कर पाना भी कठिन काम है। खासकर गैर कांग्रेसी सरकारें अभी भी इस योजना पर सवाल खड़ी कर रही हैं। जब तक राज्य सरकारें तैयार नहीं होती, तबतक इसे अमल मे ला पाना असंभव है। इसके अलावा एक फंडिंग की भी समस्या है। केन्द्र सरकार पहले से ही सब्सिडी के बोझ से दबी हुई है। इस सब्सिडी को कम करने के लिए पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों को बढ़ाया जा रहा है। खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने के कारण सब्सिडी का बोझ और भी बढ़ जाएगा।

राजनैतिक स्तर पर भी इस विधेयक को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विपक्ष से ही नहीं, बल्कि अपने सहयोगी दलों की ओर से भी कांग्रेस इस विधेयक का विरोध होते देख रही है। कृषि मंत्री शरद पवार इसके खिलाफ हैं और उनका मानना है कि यह किसान विरोधी विधेयक है। मुलायम सिंह यादव भी इन्हीं कारणों से इसका विरोध कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने इस विधेयक का समर्थन किया है, पर इसके कुछ प्रावधानों में वह बदलाव चाहते हैं। जाहिर है संसद द्वारा पारित हो जाने के बावजूद इस कानून के विरोधियों की संख्या कम नहीं रहेगी। (संवाद)