मोदी ने प्रधानमंत्री के भाषण की धज्जियां किसी तरह उड़ाई, इससे ज्यादा सवाल इस बात पर उठाए जा रहे हैं कि क्या उन्हें ऐसा करना चाहिए था? उनकी अपनी पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का भी यही कहना है और उन्होंने अपनी बात कहने में तनिक भी देर नहीं लगाई कि 15 अगस्त के दिन इस तरह का आक्रमण नहीं होना चाहिए। पर आज संकट और संक्रमण का दौर चल रहा है। देश के सामने अभूतपूर्व संकट आ खड़ा हुआ है और उस संकट के सामने देश का पूरा राजनैतिक वर्ग अपने आपको बौना समझ रहा है। लोकतांत्रिक संगठनों का तेजी से ह्रास हो रहा है और भ्रष्टाचार ने खुद लोकतंत्र पर भी खतरा खड़ा कर दिया है, क्योंकि भ्रष्ट लोगों को बचाने के लिए ही अनेक संस्थाओं को तोड़ा गया है और उन्हें तोड़ा जा रहा है। संकट, संक्रमण और टूटन के इस दौर के बीच यदि नरेन्द्र मोदी ने एक परंपरा तोड़ ही दी, तो फिर इसमें कौन सी अचरज की बात है? नरेन्द्र मोदी इसीलिए नरेन्द्र मोदी हैं, क्योंकि वे सबसे हटकर हैं। कम से कम उनके बारे मे देश के एक बड़े वर्ग की धारणा ऐसी बन रही है कि वे अन्य नेताओं संे अलग हैं। वे भाई भतीजावाद नहीं करते। वे किसी वंश अथवा जाति विशेष के समर्थन ओर संरक्षण के कारण राजनीति में आगे नहीं बढ़े हैं। आज जब भ्रष्टाचार का चारों ओर जलबा है, उसमें वे भ्रष्टाचार से कोसों दूर दिखाई देते हैं। राजनीति से अलग उनका अपना कोई व्यापार नहीं है और सबसे बड़ी बात यह है कि आज जब सभी पार्टियों के नेताओं में एक दूसरे के हितों का पोसने की मौन सहमति बनी हुई है, तो मोदी उस सहमति का हिस्सा भी दिखाई नहीं पड़ता। पिछले दो ढाई दशकों में लगभग सभी पार्टियां केन्द्र में अथवा राज्यों में सत्ता का सुख भोग चुकी हैं और देखा गया है कि विपक्ष मे ंरहते हुए वे भले सत्ता पक्ष की आलोचना और निंदा करती हों और एक से बढ़कर एक आरोप लगाती हों, लेकिन सत्ता में आने के बाद वे अपने विरोधी नेताओं के भी निजी हित की रक्षा करती हैं और किसी भ्रष्ट नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती। सत्ता में आने के बाद सभी पार्टियों के नेता एक ही रंग के हो जाते हैं। पिछले दो ढाई के दशकों में सत्ता में हो रहे बदलाव के युग में लोगों ने देखा है कि सभी पार्टियों के नेताओं में एकरूपता है और वे आपस में प्रतिस्पर्घा सिर्फ सत्ता को पाने के लिए कर रहे हैं। यानी उनकी सारी राजनीति का केन्द्र ही सत्ता है। उसके अलावे उनकी किसी अन्य चीज में दिलचस्पी नहीं है। न वे देश की सोचते हैं और न लोगों की सोचते हैं।
नरेन्द्र मोदी से लोगों का मोह इस माहौल में बना है, क्योकि लोग उन्हें अलग किस्म का नेता समझते हैं। लोगों की यह समझ कितनी सही है और कितनी गलत इसका पता तो तभी चलेगा, जब मोदी खुद केन्द्र की सत्ता में आएंगे। उसके पहले तो सिर्फ उम्मीद ही लगाई जा सकती है और देश की आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उनसे यह उम्मीद लगाए बैठा है और उनकी इस उम्मीद का ही परिणाम है कि तमाम सर्वेक्षणों में आज उन्हें देश का सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता कहा जा रहा है। देश के सबसे ज्यादा लोग आज उन्हें ही देश का अगला प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं।
लोगों की इन उम्मीदों के बीच ही नरेन्द्र मोदी ने ललन सिंह काॅलेज से लाल किले पर हमला बोल डाला। उस हमले को उनकी अपनी ही पार्टी के लालकृष्ण आडवाणी ने बिना उनका नाम लिए अनुचित करार दिया, हालांकि आडवाणी की उस आलोचना से मोदी का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है, क्योकि लालकृष्ण आडवणी मोदी समर्थकों की नजर में उन राजनेताओं में शामिल हैं, जो सिर्फ सत्ता के लिए सत्ता में आना चाहते हैं और उसके लिए सत्ता में रहकर कुछ और विपक्ष में रहकर कुछ और बोलते हैं। नरेन्द्र मोदी के हमले पर कांग्रेस नेताओ ने भी जवाबी हमला किया है। पिछले कुछ दिनों से कांग्रेसी नेता मोदी के मोर्चे पर शांत थे। राहुल गांधी ने आदेश जारी कर रखा था कि यदि किसी को मोदी पर कुछ बोलना है, तो पहले उनके द्वारा नामित दो व्यक्तियों से अनुमति लेनी होगी। राहुल गांधी को लग रहा था कि कांग्रेसी नेताओं के बयानों के कारण नरेन्द्र मोदी को देश की राजनीति के केन्द्र में बने रहने में सहायता मिलती है। कांग्रेसी नेताओं के कुछ बयान तो सीधे मोदी का फायदा ही पहुंचा देते हैं। जैसे कांग्रेसी प्रवक्ता शकील अहमद ने अपने बयान में इंडियन मुजाहिदीन के गठन के लिए नरेन्द्र मोदी को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था, जिसके कारण उनकी पार्टी की स्थिति दयनीय हो गई थी।
इस तरह नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के लाल किले के भाषण कर राहुल गांधी के व्यूह को ध्वस्त कर डाला और कांग्रेसी नेता उनके बारे में एक बार फिर बयान बाजी में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने लगे ओर ऐसे ऐसे बयान देने लगे, जिनसे अंततः मोदी को ही फायदा होगा। गुलाम नबी आजाद ने तो मनमोहन सिंह को राजा भोज और नरेन्द्र मोदी को गंगू तेली तक कह डाला और कहा कि इन दोनो में कोई तुलना नहीं की जा सकती। यह सच है कि यह दे देश व्यापी कहावत है, जो शायद भारतीय इतिहास के सामंत युग की देन हैं, जिसमें किसी गंगू तेली ने किसी राजा भोज को चुनौती दी होगी और राजा के हाथों मारा गया होगा। उसके बाद से यह कहावत या मुहावरा प्रचलन में आ गया। पर सामंत युग के इस मुहावरे को लोकतंत्र के युग में यदि किसी मंत्री द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा, तो इसका असर दूसरे रूप में होगा। सच कहा जाय, तो लाल किले को नरेन्द्र मोदी ललन सिंह काॅलेज से चुनौती गंगू तेली के अंदाज में ही दे रहे थे, लेकिन मोदी का पता है कि राजतंत्र भले ही राजा भोज का होगा, पर लोकतंत्र तो गंगू तेली का ही होता है। दरअसल कांग्रेस के अधिकांश नेता हवाई नेता हैं और आसमान से राजनीति मे उतरे हैं, पर नरेन्द्र मोदी जमीन के नेता हैं। कांग्रेसी नेता जमीनी सच्चाई को समझ नहीं पा रहे हैं और मोदी को लेकर ऐसी बयानबाजी में लिप्त होते हैं कि अंततः उनका ही नुकसान होता है। और मोदी कांग्रेस के मर्मस्थल पर प्रहार करते हैं, जैसा कि उन्होंने 15 अगस्त के मनमोहन सिंह भाषण पर किया। (संवाद)
मोदी का मनमोहन पर हमला
लाल किला बनाम ललन सिंह कॉलेज
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-08-17 18:32
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी न केवल राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं, बल्कि वे आज देश की राजनीति का केन्द्र बिन्दु भी बन चुके हैं, हालांकि उनकी अपनी पार्टी ने अभी तक उन्हें प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार औपचारिक रूप से घोषित नहीं किया है। 15 अगस्त को लाल किले से भाषण दे रहे मनमोहन सिंह पर भुज के ललन सिंह कॉलेज के मैदान से हमला बोल दिया। भारतीय राजनीति की यह अपने किस्म की पहली घटना है, जब किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के भाषण की इस तरह लगभग उसी समय छिछालेदर की हो और पूरे देश ने उस हमले को साक्षात् देखा हो।