संघ परिवार के समर्थन से विश्व हिन्दू परिषद 25 अगस्त से 13 सितंबर तक एक पदयात्रा निकालना चाह रही थी, जिसे 84 कोसी परिक्रमा का काम दिया गया था। इस पदयात्रा को फैजाबाद, बाराबंकी, गोंडा, अंबेडकरनगर, बस्ती और बहराइच के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों से गुजरना था। पर प्रदेश सरकार ने इस यात्रा को शुरू होने के पहले ही रोक दिया।
प्रदेश की सांप्रदायिक राजनीति का प्रदेश की चारों प्रमुख पार्टियों पर असर पड़ता है। इस समय भाजपा और समाजवादी पार्टी 1992 के तर्ज पर प्रदेश की राजनीति का सांप्रदायिकीकरण करना चाह रहे हैं। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। एक पीढ़ी गुजर गई है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर भाजपा हिन्दू वोट पाना चाहती है, वहीं सपा, बसपा और कांग्रेस मुस्लिम सांप्रदायिकता को भड़काकर उनके 18 फीसदी मतों के लिए आपस मे होड़ लगा रही है।
कांग्रेस और बसपा को खतरा है कि कहीं सांप्रदायिकता की भावना में बहकर मुसलमान पूरी तरह समाजवादी पार्टी की ओर पूरी तरह न चले जायं। दोनों पार्टियां परिषद और सपा पर आरोप लगा रही है कि दोनों ने मिलकर सांप्रदायिकता का यह खेल पहले से तय कर रखा है। यात्रा शुरू होने के पहले परिषद के नेता मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिले थे। आरोप है कि उसी मुलाकात में परिषद और समाजवादी पार्टी ने खेल के तौर तरीके तय कर रखे थे, ताकि मुस्लिम सांप्रदायिक भावना में बहकर सपा की ओर जायं और हिंदू मत भाजपा की ओर ध्रुवीकृत हों।
जिस तरह से यात्रा विफल हो गई, उससे भी यही लगता है कि सबकुछ पहले से ही उत्तर प्रदेश सरकार और परिषद के बीच तय हो गया था। कहीं कोई हिंसा नहीं हुई। पुलिस को कहीं भी बल प्रयोग नहीं करना पड़ा। पदयात्रियों में उस प्रकार की उत्तेजना नहीं दिखी, जिसकी ऐसे मौकों पर उम्मीद की जाती है। किसी भी पक्ष की ओर से किसी प्रकार के संघर्ष को बढ़ावा नहीं मिला। यह बिल्कुल एक मिला जुला खेल लग रहा था और दोनों पक्षों को यह पता था कि उन्हें क्या करना है और उनके सामने वाले को क्या करना है।
भाजपा एक ओर तो नरेन्द्र मोदी को पार्टी का चेहरा बनाकर गुजरात माॅडल का राग अलाप रही है, वहीं हिन्दुत्व की ओर भी बढ़ती दिखाई दे रही है। हालांकि नरेन्द्र मोदी खुद इस तरह के अभियान में शामिल नहीं हैं, लेकिन उन्होंने भी घोषित कर ही दिया कि वे हिन्दू राष्ट्रवादी हैं। भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। पिछले चुनाव में उसे यहां से मात्र 10 सीटें ही मिली थीं।
समाजवादी पार्टी को डर है कि उसका मुस्लिम आधार कहीं कांग्रेस की ओर न खिसक जाय, क्योंकि कांग्रेस उत्तर प्रदेश के कुशासन को मुद्दा बना रही है। फिर लोकसभा चुनाव में दो मुख्य पार्टियां कांग्रेस और भाजपा ही हैं। भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए मुसलमान कहीं कांग्रेस की ओर न झुक जायं, इस डर से मुलायम उनका सांप्रदायिककरण करना चाह रहे हैं, ताकि उनका समर्थन समाजवादी पार्टी के साथ बना रहे। उनके सांप्रदायिककरण के बाबरी मस्जिद के मसले को तूल देने से बेहतर रणनीति और क्या हो सकती है? मुलायम खुद देश के अगले प्रधानमंत्री बनने की तमन्ना रखते हैं और इसके लिए जरूरी है कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में 50 सम 60 सीटें जीते। यह तभी हो सकता है, जब मुसलमानों का एकमुश्त वोट सिर्फ उन्हीं की पार्टी को मिले।
कांग्रेस की चिंता 2009 की 21 सीटों की टैली को बनाए रखने की है। लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह पिट चुकी है। इसका एक कारण यह था कि मुसलमानों की पहली पसंद विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव थे। कांग्रेस चाहती है कि मुसलमानों की पहली पसंद उत्तर प्रदेश में वह हो जाए। यही कारण है कि विश्व हिंदू परिषद और समाजवादी पार्टी के बीच मैच फिक्सिंग की चर्चा करके वह मुसलमानों को सपा से सतर्क कर रही है। (संवाद)
विश्व हिन्दू परिषद की अयोध्या यात्रा
भाजपा को इससे शायद ही फायदा हो
कल्याणी शंकर - 2013-08-30 17:27
पिछले दिनों विफल 84 कोसी परिक्रमा के दौरान भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद के बीच हुई रस्साकशी में किसने क्या खोया और किसने क्या पाया? यदि परिषद ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मन्दिर बनाने के लिए फिर से अभियान चलाया और इसके कारण प्रदेश का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ, तो जाहिरा तौर पर इसका फायदा भाजपा और समाजवादी पार्टी को हो सकता है।