अकाली दल के नेतृत्व में जब सरकार 2007 में बनी थी, तो वह अपने अस्तित्व के लिए भाजपा के 19 विधायको पर टिकी हुई थी। बीच बीच में सत्तारूढ़ सहयोगियों मे कुछ तनाव भी होते थे, लेकिन फिर भी सबकुछ ठीकठाक ढंग से चल रहा था। दोनों के बीच परस्पर एक दूसरे को खुश रखने की मंशा हमेशा काम करती थी। भारतीय जनता पार्टी केा भी सरकार की नीतियों के निर्धारण में तवज्जो दी जाती थी।

2012 के चुनाव के बाद स्थिति बदल गई है। अब अकाली दल पहले की तरह भाजपा पर निर्भर नहीं है। भाजपा के विधायको की संख्या 19 से घट गई है और अकाली दल अपने विधायकों की संख्या के बल पर ही बहुमत के पास पहुंची हुई है। अकाली दल सरकार के लिए ही नहीं, बल्कि चुनावों में जीत के लिए भी भाजपा पर निर्भर रहा करती थी। पर अब अकाली दल ने हिंदुओं के बीच भी अपना आधार बढ़ाना शुरू कर दिया है। पिछले विधानसभा चुनाव मे अनेक हिंदू उसके टिकट पर चुनाव जीत कर आए हैं।

इसके कारण दोनो दलो के बीच तनाव पैदा हो गया है। अखबार की रिपोर्टों के अनुसार भाजपा अकाली दल की उपेक्षा के कारण दुखी है। प्रशासन पर अकाली दल का पूरा कब्जा हो चुका है और नीतियांे के निर्धारण में भी भाजपा की कहीं कोई पूछ नहीं रह गई है।

भाजपा की ताजा शिकायत यह है कि अकाली दल अब भाजपा के मंत्रियों के विभागों में भी हस्तक्षेप कर रहे हैं। कुछ दिन पहले उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने भाजपा के मंत्रियों वाले विभागों को लेकर विदेश की यात्रा की। उस यात्रा में भाजपा के मंत्रियों को उन्होंने अपने साथ रखना जरूरी नहीं समझा, बल्कि वे अपने साथ अफसरों की फौज के लेकर निकले।

पंजाब वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड के प्रबंध निदेशक की नियुक्ति का मामला भी तनाव का कारण बना हुआ है। भाजपा के बलदेव चावला इसके अध्यक्ष हुआ करते थे। इस पद से उनके इस्तीफे के बाद सरकार ने इस पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी को रख दिया है।

गठबंधन का ताजा दौर राजनैतिक अस्थिरता का एक बड़ा कारण बन गया है और इसके साथ ही सरकार के बिगड़ते राजकोषीय हालात की वजह भी। इस दौर में सरकार बनाने के लिए पार्टियां ऐसे वायदे करती हैं, जिन्हें पूरा करने मे राजकोष का हाल बेहाल होने लगता है।

पंजाब सरकार आज लगभग दिवालिया हो चुकी है। सरकारी खजाना खाली है। सरकार ने पेंशन और तनख्वाह देने के लिए अपनी जमीन को बंधक पर रखना शुरू कर दिया है। उसे बंधक पर रहकर पैसे जुटाए जा रहे हैं। इस तरह की खबरें अखबारों में छपी थीं, जिसका सरकार ने तुंरत खंडन कर दिया था। मुख्यमंत्री ने उन खबरो के लिए मीडिया को कोसा भी था। उनका कहना था कि खजाने की हालत अभी भी अच्छी है और हम अपने कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह देने में सक्षम हैं।

मुख्यमंत्री द्वारा किए गए उस खंडन के अगले दिन ही एक अखबार ने केनरा बैंक के हवाले से यह खबर छापी कि सरकार को उसने शहरी जमीन के एक टुकड़े को अपने पास रखकर 500 करोड़ रुपये की राशि जारी की है। खबर में यह भी बताया गया कि 21 अगस्त को वह कर्ज स्वीकार किया गया और 500 करोड़ रुपये का चेक 23 अगस्त को जारी कर दिया गया।

दोनों सत्तारूढ़ पार्टियों के बीच में बढ़ते हुए तनाव के कारण राज्य सरकार की राजकोषीय स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। वित्तमंत्री परमींदर सिंह ढींढसा ने तो एक बार इस बात की पुष्टि भी कर दी कि दोनों पार्टियों के बीच तालमेल की कमी के कारण ही स्थिति खराब हो रही है। इसके कारण टैक्स के आधार को विस्तृत करने मे सरकार सफल नहीं हो पा रही है। इसके कारण ही टैक्स की भारी पैमाने पर चोरी हो रही है।

दरअसल अकाली दल टैक्स बढ़ाकर उसका बोझ शहरी लोगों पर डालना चाह रहा रहा है, जिसका भाजपा विरोध करती है। भाजपा चाहती है कि ग्रामीण इलाकों को मुफ्त में दी जा रही बिजली बंद की जाय और वहां से राजस्व प्राप्त करके राजकोष की समस्या हल की जाय।

अकाली दल से तनाव के बाद भी भाजपा उसे नहीं छोड़ने वाली है। इसका एक कारण यह है कि उसके मंत्री अपने मंत्रालयों को छोड़ना नहीं चाहते। दूसरा कारण यह है कि दिल्ली की सरकार पर कब्जे के लिए भी भाजपा को अकाली दल की जरूरत है। (संवाद)