कांग्रेस को भी पता है कि उसकी हालत आज अच्छी नहीं है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी इसे कुछ समय पहले स्वीकार कर चुके हैं कि सरकार के सामने नैतिकता का संकट खड़ा हो गया है। इसलिए कांग्रेस अब लोकप्रियतावादी कदमों की ओर बढ़ गई है। खासकर सोनिया गांधी इसमें काफी दिलचस्पी ले रही हैं। संसद में खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण विधेयकों के पेश होने के पहले सभी चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में भाजपा के पीछे चल रही थी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले सर्वेक्षणों में कांग्रेस की स्थिति कैसी रहती है?

इस बीच भाजपा का नर्वस होना स्वाभाविक है। इसके दो कारण हैं। इसका एक कारण तो यह है कि वह इन दोनों विधेयकों के खिलाफ बोल नहीं सकती, क्योंकि वह दोनों का समर्थन कर चुकी है। दूसरा कारण है कि कल्याणकारी योजनाएं इसके पोस्टर बाॅय नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों से मेल नहंीं खाती। गुजरात कल्याणकारी योजनाओं के चलाने के नाम से नहीं जाना जाता है।

इसमें आश्चर्य नहीं है कि गुजरात जगदीश भगवती के अर्थशास्त्रीय विद्यालय का माॅडल है, जो विकास पर ही ध्यान देता है। उसके अनुसार तेज विकास से गरीबी का उन्मूलन हो सकता है। दूसरा माॅडल सरकारी प्रयासों द्वारा गरीबी को मिटाने का है। पिछले दिनों इस मसले पर जगदीश भगवती और अमूल्य गांगुली के बीच बहस भी चली। राजनीतिज्ञों के बीच धारणा यह है कि लोगों का वोट पाने के लिए दूसरा माॅडल ज्यादा कारगार है, क्योंकि ज्यादा आबादी गरीबों की है, जबकि मध्यवर्ग को भगवती वाला विकास माॅडल ज्यादा पसंद है।

मोदी ने यदि मध्य वर्ग और काॅर्पोरेट सेक्टर के बीच लोकप्रियता पाई है, तो इसका कारण यह है कि वह निजी क्षेत्र को महत्व देते हैं। यही कारण है कि मोदी ने खाद्य सुरक्षा विधेयक पर मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाने की मांग की थी। यह कानून केन्द्र को अधिकार देता है कि वह इसके पालन के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दे। नरेन्द्र मोदी इसका भी विरोध कर रहे थे।

लेकिन भाजपा ने आखिरकार अपने पोस्टर बाॅय की राय को दरकिनार करते हुए खाद्य सुरक्षा विधेयक का संसद मे समर्थन कर दिया। इसका कारण यह था कि उसे भी लोगों के बीच चुनाव के समय जाना है और वह गरीब विरोधी छवि के साथ चुनाव में नहीं उतर सकती। भारत में किसी भी राजनैतिक पार्टी के लिए गरीब विरोधी दिखना आत्मघाती है। भाजपा नेताओं मे सिर्फ यशवंत सिन्हा ने कहा कि यह विधेयक राजकोष के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। पर भाजपा ने एक पार्टी के रूप में इस लाइन को तवज्जो नहीं दी। अब वे अर्थशास्त्री और विश्लेषक खाद्य सुरक्षा और जमीन अधिग्रहण कानूनों का विरोध कर रहे हैं, जो बाजारवादी हैं, लेकिन राजनैतिक वर्ग लगभग पूरा का पूरा इन दोनों विधेयकों के साथ खड़ा दिखाई पड़ा।

जहां तक कांग्रेस की बात है, तो इसके समर्थक अर्थशास्त्रियों ने इस तथ्य की उपेक्षा कर देना ही सही समझा कि खाद्य सुरक्षा कानून के दबाव में भारी सब्सिडी के कारण पूरी अर्थव्यवस्था ही धंसती चली जा सकती है। जमीन अधिग्रहण कानून के कारण उद्यमियों के लिए जमीन पाना बहुत ही कठिन हो जाएगा और उसके कारण वे औद्योगिक निवेश से झिझकेंगे।

यदि सोनिया गांधी ने इन दोनो विधेयकों को पास कराने में अपनी ताकत झोंक दी तो इसका कारण यह है कि उन्हें भविष्य से ज्यादा वर्तमान की चिंता है। उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव जीतने में ज्यादा दिलचस्पी है न कि देश की भावी अर्थव्यवस्था को देखना है। (संवाद)