आखिर दंगों की संख्या इतनी ज्यादा क्यों बढ़ गई? इसका एक कारण तो यह है कि सत्ता में आने के बाद मुलायम सिंह ने कुछ ऐसा संकेत दिया कि उनकी सरकार मुसलमानों के कारण ही सत्ता में आई है और इसके कारण मुसलमान अपने आपको वहां का सत्तारूढ़ समुदाय मानने लगे। यदि खुद को वैसा मानते रहते तब भी कोई समस्या नहीं थी, लेकिन प्रशासन भी उस समुदाय के आपराधिक तत्वों से खौफ खाने लगा, क्योंकि शायद प्रशासन को भी लग रहा था कि यह सत्तारूढ़ समुदाय है और इसके खिलाफ कार्रवाई करने से बचना चाहिए। प्रशासन की इस प्रवृति को समाजवादी पार्टी के नेताओं ने बढ़ावा दिया और इसके कारण उस समुदाय के आपराधिक तत्वों का बोलबाला बढ़ने लगा। यदि किसी निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराई जाए, तो पता चलेगा कि सांप्रदायिक तनाव के अधिकांश मामलों मंे उसी सत्तारूढ़ समुदाय का हाथ रहा है।

मुजफ्फरनगर का मामला भी कुछ वैसा ही है। कवाल नाम के एक गांव में एक जाट लड़की को एक मुस्लिम युवक ने छेड़ दिया। कहते हैं कि लड़की के दो भाइयों ने छेड़ने वाले उस युवक को मार डाला और उन दोनों युवकों की हत्या छेड़ने वाले युवक के हितैषियों ने कर दी। इन तीन हत्याओं के बाद मुकदमे दर्ज हुए। यह 27 अगस्त की घटना है। मामला गंभीर था, लेकिन जिलाधीश ने मामले को शांत करने में सफलता पाई। पर उस जिलाधीश का ही तबादला कर दिया गया। मुकदमों में आगे की कार्रवाई के मामले में भेदभाव बरता जाने लगा। दो युवकों की हत्या में जिनका नाम लिया गया था, उनका गिर्फतार नहीं किया गया। उलटे उनका नाम मुकदमे से हटा दिया गया। पर छेड़ने वाले युवक की हत्या के मामले में पुलिस और प्रशासन ने ज्यादा तेजी दिखाई।

पुलिस और प्रशासन का यह भेदभाव पूर्ण रवैया ही मुजफ्फरनगर के दंगे का मूल कारण है। आरोप लगाया जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता पुलिस पर लगातार दबाव बना रहे थे और उसी दबाव के कारण पुलिस भेदभाव कर रही थी। उसके कारण इलाके में लगातार तनाव बना हुआ था और झड़पें भी हो रही थी। धारा 144 के तहत निषेघाज्ञा लागू होने के बावजूद दोनों समुदाय के लोग सभाएं और पंचायत करते रहे।

प्रशासन को पता था कि मामला बिगड़ रहा है। उसे यह भी पता था कि मामले को संभालने के लिए उसे क्या करना चाहिए, पर वे जो करना चाहिए, वह करने में डर रहे थे, क्योंकि पड़ोस के नोएडा के दुर्गा नागपाल का हश्र वे देख चुके थे, जिन्हे मुस्लिम विरोधी होने का इलजाम लगा कर निलंबित कर दिया गया था। नागपाल प्रकरण के बाद शायद ही किसी अधिकारी को इतनी हिम्मत होगी कि एक समुदाय विशेष के खिलाफ सही कारवाई करने में भी तत्परता दिखाए।

सरकार के राजनैतिक नेतृत्व ने प्रशासन तंत्र में इस तरह का जो डर भर दिया है, वही मुजफ्फरनगर के दंगों के लिए जिम्मेदार है। लेकिन अभी तक मुलायम सिंह और उनकी पार्टी की सरकार का रवैया नहीं बदला है। सोमवार को अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने इस मामले में आरोपित होने वाले जिन लोगों के नाम बताए, उससे तो ऐसा ही लगता है कि पुलिस ने मुकदमा सिर्फ एक ही समुदाय के लोगो के खिलाफ दर्ज किया है, जबकि दंगे में दोनों समुदायों के लोग शामिल रहे होंगे। हो सकता है कि दूसरे समुदाय के लोगों के खिलाफ भी मुकदमा हुआ होगा, लेकिन यदि पुलिस मुकदमों मंे आरोपित एक ही समुदाय के लोगांे का नाम गिनाती है, तो इससे दंगों के और भी भड़कने का डर पैदा हो जाता है। इसका कारण यह है कि पुलिस और प्रशासन द्वारा हत्या के मुकदमों मंे संप्रदाय के आधार पर भेदभाव किए जाने के कारण ही वहां मामला गंभीर हुआ है।

पुलिस कह रही है कि जाटों की महापंचायत के कारण दंगा हुआ। सवाल उठता है कि उस पंचायत को रोका क्यों नहीं गया? 144 तो पहले से ही लागू था, फिर लोगों को जमा क्यों होने दिया गया? और फिर जिन शिकायतों को लेकर महापंचायत हो रही थीए उन शिकायतों को दूर क्यों नहीं किया गया? दो जाट युवकों की हत्या के लिए नामजद लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई और उन्हे क्लीन चिट क्यों दे दी गई? यदि नामजद लोग वास्तव में बेकसूर थे, जो कसूरबार था, उसे ही पुलिस ने क्यों नहीं गिरफ्तार किया?

भाजपा के 4 विधायको पर भी मामला दर्ज कर दिया गया है। वे महापंचायत को संबोधित करने वाले लोग थे। जाहिर है, मुलायम सिंह और उनकी पार्टी की सरकार यह बताने की कोशिश कर रही है कि दंगे भाजपा ने ही कराए। भाजपा के नेता हिंदू हितों की बात करते हैं, इससे कोई इनकार नही कर सकता और यदि कहीं सांप्रदायिक दंगा हो तो वे हिंदू हितों का हितैषी बनकर वहां जाते भी हैं, भले वहां संघर्ष में उनकी पार्टी के अपने लोग शामिल हों या न हों। यहां मामला साफ है और वह यह है कि इस दंगे के लिए सपा और प्रशासन जिम्मेदार है। और यदि भाजपा का नाम बीच मे लिया जाता है, तो इससे वही मजबूत होगी।

और मुलायम सिंह यादव इस तरह की राजनीति अपनाकर भाजपा को ही मजबूत करने का काम कर रहे हैं। भाजपा खुद हिंदुत्व के मुद्दे को राजनैतिक मुद्दा बनाना चाहती रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में वह 1999 के बाद इस मसले पर सफल नहीं रही है। लेकिन यदि मुलायम अपनी राजनीति से भाजपा की राजनीति की धार को और मजबूत ही कर रहे हैं। पिछले दिनों 84 कोसी परिक्रमा का विरोध कर उन्होंने इसे एक बड़ा मसला बना दिया। यदि सरकार ने उस पर रोक नहीं लगाई होती, तो किसी को पता भी नहीं चलता कि परिक्रमा कहां से शुरू हुई और कहां खत्म हो गई, पर बिना परिक्रमा हुए लोग उसके बारे में जान गए, क्योंकि मुलायम सिंह ने अपने एक राजनैतिक जनाधार को खुश रखने के लिए बेवजह बखेड़ा खड़ा करवा दिया। जाहिर है, अपनी सांप्रदायिक राजनीति केा मुलायम उस हद तक ले जा रहे हैं, जहां अंततः फायदा भाजपा को ही हो जाएगा। (संवाद)