यह दुख की बात है, पर फिर भी सच है कि इस दंगे में मरने वालों की संख्या 50 से भी ज्यादा है। 100 से ज्यादा लो घायल भी हुए हैं। सबसे ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि दंगा गांवों तक पहुंच गया है। यह आने वाले समय में बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की संख्या बहुत ज्यादा है। रामपुर जैसे कुछ जिलों मंे तो उनकी आबादी 40 फीसदी तक है। मुस्लिम बहुल इलाकों मंे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें तेज हो गई हैं। इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को होगा।

कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि लड़की के साथ छेड़छाड़ का यह मामला इतना तूल पकड़ेगा कि दर्जनों लोग मारे जाएंगे और दंगों की आग आसपास के जिलों में भी फैल जाएगी।

अखिलेश प्रशासन की विफलता के कारण ही साम्प्रदायिक ताकतों को बढ़ावा मिला। इसके कारण ही उन्हें साम्प्रदायिकता फैलाकर दंगे भड़काने में सफलता मिली। इसलिए इस दंगे के लिए कोई मुख्य रूप से जिम्मेदार है, तो वह उत्तर प्रदेश की सरकार ही है।

राजनैतिक विश्लेषक रमेश दीक्षित का कहना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ, तो उस इलाके से भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा की अधिकांश सीटें मिल जाएगी। इसका एक कारण नरेन्द्र मोदी भी होंगे, जिनकी लोकप्रियता लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है और जो भाजका के पोस्टर बाॅय बन चुके हैं।

मुजफ्फरनगर दंगे के लिए भाजपा के अनेक नेताओं पर मुकदमे दर्ज किए गए हैं। इस दंगे से सबसे ज्यादा नुकसान राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह को होने वाला है। वे इस समय जाटों के निर्विवाद नेता हैं।

उनके पिता चरण सिंह मजगर (मुस्लिम, अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत) समीकरण की राजनीति करते थे, पर धार्मिक भेद बढ़ने के साथ ही वह समीकरण भी टूट चुका है।

राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि जाटों ने भाजपा को समर्थन करने का फैसला किया, तो अजित सिंह को भी भाजपा के साथ ही गठबंघन करना होगा। वे पहले भी भाजपा के साथ हाथ मिला चुके हैं।

इस दंगे ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की कमजोरी का भी पर्दाफाश कर दिया है। गौरतलब है कि उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत मजबूत माना जाता था।

धार्मिक ध्रुवीकरण के कारण यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित भाजपा के साथ हो जाते हैं, तो बसना सुप्रीमो मायावती का ज्यादा सीटें पाने का सपना चकनाचूर हो सकता है।

उत्तर प्रदेश में अखिलेश के सत्ता में आने के बाद दलितों और मुसलमानों के बीच दर्जनों दंगे हो चुके हैं। मायावती ने इस दोनों समुदायों के बीच एकता की कोशिश की थी, लेकिन उस पर पानी फिर रहा है और दलित मुसलमानों के खिलाफ होते जा रहे हैं। मुस्लिमों के साथ तनाव के समय भाजपा नेता खुलकर दलितों का साथ देते हैं।

दलितों और मुसलमानों के अलग होने का लाभ समाजवादी पार्टी को हो सकता था, लेकिन ऐसा नहीं लग रहा है। इसका एक कारण यह है कि दंगों के कारण अनेक मुस्लिम मारे जाते हैं और उन्हें नहीं बचा पाने का दोष अखिलेश सरकार के ऊपर जाता है। इसके कारण मुस्लिम भी मुलायम के खिलाफ होते जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार मुसलमानों के लिए अनेक योजनाओं की घोषणा कर रही है। उन्हें बहुत तरीके से फायदा भी पहुंचाया जा रहा है, लेकिन उन्हें लग रहा है कि सपा सरकार के तहत वे सुरक्षित नहीं हैं।

मुलायम सिंह यादव को अभी से सतर्क हो जाना चाहिए। मुसलमान उनसे तेजी से नाराज हो रहे हैं और यदि उनकी नाराजगी बनी रही, तो उन्हें लोकसभा में उतनी सीटें भी नहीं मिल पाएंगी, जितनी सीटें 2009 के चुनाव में मिली थीं। (संवाद)