यह साफ हो चुका है कि युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रशासन चलाने में नाकाम रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार पिछले एक साल से प्रत्येक तीन दिनों में एक साम्प्रदायिक दंगा या तनाव का माहौल बनता है। अखिलेश यादव की छवि पिछले दिनों से बहुत ही खराब हो रही है और इसके कारण मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। वे लोकसभा चुनाव के बाद किंग नहीं, तो कम से कम किंगमेकर भी भूमिका में आना चाहते हैं और उसके लिए उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपनी समाजवादी पार्टी को विजयी देखना चाहते हैं।

जैसा कि होता आया है, दंगे शुरू होने के लिए एक छोटी सी घटना ही काफी होती है। मुजफ्फरनगर में भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक लड़की के साथ छेड़छाड़ हुई। इसके कारण छेड़छाड़ करने वाले मुस्लिम युवक के साथ लड़की के भाइयों का झगड़ा हुआ। उसमें वह मुस्लिम युवक मारा गया। उस युवक के हितैषियों ने उन दोनों जाट युवकों को भी मार डाला।

यदि प्रशासन ने तत्परता के साथ कार्रवाई की होती, तो बात नहीं बिगड़ती। यदि तीनों युवकों के हत्यारों को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया जाता, तो दंगे होते ही नहीं। लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया। उसने सिर्फ जाटो के खिलाफ ही मुकदमा किया और जाट युवकों की हत्या में नामजद किए गए कुछ आरोपियों को दोषमुक्त घोषित कर दिया। वैसा करने मे पुलिस ने बहुत तेजी दिखाई। जिस लड़की के साथ छेड़छाड़ हुआ था, उसके मां बाप को मुस्लिम युवक की हत्या के झूठे केस मे नामजद कर दिया।

इसके कारण जाटों का गुस्सा भड़क गया। वे हिंसक होने लगे। उन्होंने बेटी बहु बचाओ महापंचायत का आयोजन किया, जिसमें शामिल होने जा रहे लोगो पर भी हमला हुआ। उसके बाद तो दंगा भड़क ही गया। जाटों का गुस्सा मुसलमानों पर ही नहीं, बल्कि पुलिस प्रशासन पर भी था, जो उसके साथ भेदभाव कर रहा था। उधर मुस्लिम समुदाय के लोग कह रहे हैं कि दंगा उस पंचायत के कारण हुआ और पंचायत न रोकने के लिए वे प्रशासन को जिम्मेदार बता रहे हैं।

इन दंगों के कारण कुछ पार्टियों को लाभ होगा, तो कुछ को नुकसान। उत्तर प्रदेश मे मुख्य रूप से पांच पार्टियों का वजूद है। वे हैं- समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल। इन दंगों का लाभ समाजवादी पार्टी और भाजपा को होता दिखाई देता है। और इससे नुकसान कांग्रेस, बसपा और रालोद को होता दिखाई देता है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी अनेक लोकसभा सीटों पर 30 फीसदी तक है। समाजवादी पार्टी को लग रहा है कि यदि मुस्लिम ध्रुवीकरण उनके पक्ष में हुआ, तो उन्हें भारी फायदा होगा और भाजपा को लग रहा है कि यदि उनके पक्ष में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण हुआ, तो उन्हें काफी फायदा होगा। भाजपा को उत्तर प्रदेश से एक समय 55 सीट प्राप्त हो चुकी है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्च में वह अपने उस प्रदर्शन को दुहराना चाहती है।

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अपनी आशा से विपरीत 22 सीटें वहां से हासिल हो गई थीं, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस एक बार फिर अपनी पुरानी स्थिति पर पहुंच गई। काग्रेस फिर 2009 को वहां दुहराना चाहती है। उसे लगता है कि भले विधानसभा चुनावों के लिए वहां के लोग उसे पसंद नहीं करें, लेकिन लोकसभा चुनाव में वे उसे सपा और बसपा से ज्यादा तरजीह देंगे।

पूरे मामले का एक नया कोण भी है। वह है अजित सिह का। जिन इलाकों मे ंदंगे हुए हैं, वह अजित सिंह का इलाका है। उस इलाके से अजित सिंह की पार्टी को 5 लोकसभा सीटें मिली हैं। विधानसभा की 9 सीटें भी उनके पास है। यदि दगे में जाटों का नुकसान हुआ, तो वे कांग्रेस और अजित सिंह के खिलाफ हो जाएंगे। जाट मुस्लिम विरोधी होकर भाजपा के पास चले जाएंगे। (संवाद)