नरेन्द्र मोदी को लेकर भी लोगों के मन में यही संशय पैदा होने लगे थे। उनके समर्थक नहीं बलिक विरोधी भी कहने लगे थे कि भाजपा सिर्फ अपनी लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए मोदी के नाम का इस्तेमाल करना चाहती है और उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में उसके अन्य नेताओं की कोर्इ रूचि नहीं है। जब योग गुरू रामदेव यह कहते हैं कि उनका समर्थक भाजपा को तभी मिलेगा, जब वह नरेन्द्र मोदी का नाम साफ साफ प्रधानमंत्री के रूप में पेश करेगी, तो इसके पीछे उनका यह संशय ही काम करता था कि कहीं मोदी के नाम का सिर्फ इस्तेमाल तो नहीं हो रहा है। राजनीति का वह दौर अब समाप्त हो चुका है, जब नेता जनता से इशारों में भी बात करते थे और उनके इशारों को भी महत्व दिया जाता था। अब जनता साफगोर्इ पसंद हो गर्इ हैं, इसलिए भाजपा के अंदर ही नहीं, उसके बाहर के रामदेव जैसे मोदी समर्थक भी मांग कर रहे थे कि पार्टी जल्द से जल्द प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दे।
सच कहा जाय, तो नीतीश कुमार के भाजपा से संबंध तोड़ने के बाद मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य हो गया था। बिहार में मोदी के नेतृत्च के बिना अब भाजपा पांच सीट भी नहीं जीत सकती है। नीतीश की भरपार्इ वहां बिहार के मोदी से नहीं, बलिक गुजरात के मोदी से ही हो सकती है। यही कारण है कि बिहार के मोदी गुजरात के मोदी को जल्द से जल्द प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने को उतावले थे। उन्होंने बिहार की प्रदेश कार्यसमिति से इस तरह का प्रस्ताव भी पारित कर दिया और जब आडवाणी बाधा बन रहे थे, तो उन पर सबसे बड़ा हमला बिहार के मोदी यानी सुशील मोदी द्वारा ही हुआ।
नरेन्द्र मोदी के लिए सबसे बड़ी बाधा नीतीश कुमार ही माने जा रहे थे, पर उनके राजग से बाहर हो जाने के बाद वह अड़चन भी समाप्त हो गर्इ थी। फिर घोषणा मे देरी का कोर्इ मतलब ही नहीं था। यह सच है कि लालकृष्ण आडवाणी इसका विरोध कर रहे थे, लेकिन उनके विरोध के पीछे कोर्इ ठोस तर्क नहीं था। पहले तो वे नीतीश कुमार का हवाला देकर ही विरोध किया करते थे। नीतीश कुमार भी उनके शह पर ही मोदी के खिलाफ बिना नाम लिए हुए आग उगलते थे। नीतीश के खिलाफ बोलने वाले भाजपा नेताओं का मुह आडवाणी के इशारे पर ही बंद किया जाता था। आडवाणी की तरह नीतीश की भी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा थी। आडवाणी नीतीश की आड़ लेकर मोदी को दरकिनार करना चाहते थे, तो नीतीश मोदी आडवाणी संघर्ष का लाभ लेकर प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। मोदी के खिलाफ आडवाणी नीतीश का यह मिला जुला खेल और लंबा खिंचता, लेकिन बिहार भाजपा के नेताओं ने उस खेल के गुब्बारे में सुराख कर दी और राष्ट्रीय नेताओं को समझाने लगे कि यदि हम नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करते हैं, तो फिर हमें बिहार में नीतीश कुमार की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। नीतीश को साथ लेकर हम 12 सीटें जीतते हैं, मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाकर हम 32 सीटें जीतेंगे। इस लाइन को पहले सीपी ठाकुर ने तैयार किया और वे नरेन्द्र मोदी के प्रबल समर्थक के रूप में सामने आ गए।
नरेन्द्र मोदी का सबसे ज्यादा अपमान बिहार मे नीतीश और उनके लोगों ने ही किया, लेकिन इसका लाभ भी मोदी को ही मिला। नीतीश विरोधी नरेन्द्र मोदी समर्थक होते चले गए। यदि किसी राज्य से मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की आवाज सबसे ज्यादा तेज थी, तो वह बिहार से ही थी। सच कहा जाय, तो आज बिहार में नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता गुजरात से भी ज्यादा है। इस तरह नीतीश कुमार की आड़ में आडवाणी द्वारा अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने की राजनीति विफल हो गर्इ। मोदी विरोध में नीतीश इतना आगे बढ़ गए कि उन्हें भाजपा का साथ छोड़ना पड़ा।
नीतीश की आड़ समाप्त होने के बाद आडवाणी ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आड़ लेना शुरू कर दिया। शिवराज सिंह चौहान भी लंबे समय से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उनके नेतृत्व में उनके प्रदेश ने अच्छी तरक्की की है। आडवाणी ने मोदी को नीचा दिखाने के लिए शिवराज सिंह के नाम का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। यह सब खुले आम हो रहा था। इसके कारण देश भर में गलत संदेश जा रहा था। आडवाणी चौहान की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा को हवा देने लगे और यह कोशिश करने लगे कि वह भी खुले दावेदार बन जायं और दोनों के टकराव का लाभ उठाकर खुद ही प्रधानमंत्री बन जायं।
लेकिन शिवराज सिंह चौहान को अभी विधानसभा चुनाव का सामना करना है, इसलिए प्रधानमंत्री पद की खुली दावेदारी वे इस समय नहीं कर सकते। हां, चुनाव के बाद तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर वह जरूर ऐसा दावा करते थे। यही कारण है कि आडवाणी विधानसभा चुनावो के बाद मोदी क नाम की घोषणा की बात करने लगे। इसके पीछे की रणनीति को कोर्इ भी समझ सकता है। मध्यप्रदेश में हो सकता है भाजपा की जीत गुजरात की अपेक्षा बड़ी हो। फिर कहा जाता कि चौहान को ही प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया जाय। इस तरह आडवाणी पार्टी के अंदर टकराव और भ्रम को बढ़ावा देना चाहते थे, ताकि प्रधानमंत्री के नाम की घोषणा ही नहीं हो और लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी ज्यादा सीटों पर जीत हासिल नहीं कर सके। कम सीटों पर जीती भाजपा ही आडवाणी को प्रधानमंत्री की कुर्सी दिला सकती है, क्योंकि उन्होंने जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताकर खुद को भी धर्मनिरपेक्ष बना लिया है और लोकसभा चुनाव के बाद मुलायम, नीतीश, मायावती और ममता जैसे धर्मनिरपेक्ष नेता धर्मनिरपेक्ष आडवाणी को प्रधानमंत्री बना दे। अपनी इसी गणना के कारण आडवाणी चाहते थे कि मोदी के नाम की घोषणा विधानसभा चुनावों के बाद हो, ताकि चौहान की सहायता से उस घोषणा को भी असभव बना दिया जाय।
जाहिर है, यदि भाजपा आडवाणी के बिछाए जाल में फंसती, तो लोकसभा चुनाव के ठीक पहले आंतरिक भ्रम का शिकार होकर वह जगहंसार्इ का पात्र बन जाती। इसलिए उसके पास मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार इसी समय घोषित करने के अलावा कोर्इ और रास्ता ही नहीं था। (संवाद)
भाजपा का प्रधानमंत्री उम्मीदवार
मोदी के नाम की घोषणा के सिवा और कोर्इ रास्ता ही नहीं था
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-09-15 07:40
आडवाणी के हर संभव प्रतिरोध के बावजूद यदि नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के लिए भाजपा को बाध्य होना पड़ा, तो इसका एकमात्र कारण यही है कि उसके पास इसके अलावा और कोर्इ रास्ता ही नहीं रह गया था। मोदी के मसले पर ही नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था। उनके साथ छोड़ने के पहले से ही भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह कहने लगे थे कि मोदी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। जब आप अपनी पार्टी में किसी को सर्वाधिक लोकप्रिय नेता मान लेते हों और यह भी कहते हों कि उस सर्वाधिक लोकप्रिय नेता को पार्टी के कार्यकत्र्ता प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखना चाहते हैं, तो फिर उसे औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री उम्मीदवार नहीं घोषित करने पर लोगों के बीच तरह तरह के संशय पैदा होने लगते हैं।