गौरतलब है कि टाटा की नैनों कार के संयत्र के सिंगूर में न लगने के बाद रेलमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि वह उस जमीन पर रेलवे का कारखाना लगाएंगी। इसके लिए वह चाहती हैं कि राज्य सरकार वह जमीन रेलवे को उपलब्ध करवा दे। उस जमीन की मालिक राज्य सरकार है, जिसने उसे टाटा को लीज पर दे रखा है। लीज की अवधि आगामी 31 मार्च को समाप्त होने वाली है। टाटा की दिलचस्पी उस जमीन को अपने पास रखने में अब नहीं है, लेकिन टाटा चाहता है कि उस जमीन के विकास और उस पर निर्माण में जितना रुपया उसका खर्च हुआ है, उसका भुगतान राज्य सरकार कर दे।

सिंगूर छोड़ने के पहले टाटा ने उस जमीन पर करीब 85 प्रतिशत अपना निर्माण कार्य पूरा कर लिया था। उसका कहना है कि उसका 500 करोड़ रुपया वहां खर्च हुआ है। उस राशि के भुगतान होने के बाद टाटा सिंगूर की जमीन को छोड़ने के लिए तैयार है।

राज्य सरकार की अपनी समस्या है। उसका खजाना खाली है, वैसे में वह 500 करोड़ रुपये का भुगतान करने की हालत में नहीं दिखाई पड़ रही है। उसके अलावा उसके सामने एक और समस्या है। वह समस्या ममता बनर्जी द्वारा खड़ी की जा रही है। रेलमंत्री कह रही हैं कि 1000 एकड़ जमीन में से 400 एकड़ जमीन किसानों को वापस कर दी जाय।

टाटा को सिंगूर इसीलिए छोड़ना पड़ा था, क्योंकि ममता के नेतृत्व में किसान 400 एकड़ जमीन की वापसी चाह रहे थे। उसके लिए टाटा तैयार नहीं था। आज भी वह जमीन टाटा के पास ही है। लेकिन असली सवाल अब टाटा का नहीं है, बल्कि राज्य सरकार के रवैये का है, जो जमीन किसानों को वापस नहीं देना चाहती। जमीन वापस देकर वह ममता बनर्जी को राजनैतिक रूप् से हावी होने देना नहीं चाहती।

ममता बनर्जी के लिए भी जमीन वापसी का वह मुद्दा प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है। यदि किसानो की 400 एकड़ जमीन वापस नहीं होती और वहां रेल कारखाना लग जाता है, तो टाटा के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन की हार मानी जाएगी और यह ममता बनर्जी की राजनीति के हक में नहीं है।

राज्य सरकार भी चाहती है कि सिंगूर की खाली पड़ी जमीन पर कारखाना लगे। इसलिए जब ममता ने रेल कारखाना लगाने की घोषणा की तो राज्य सरकार ने उसका स्वागत किया। लेकिन उसकी समस्या यही है कि उक तो वह 500 करोड़ रुपये टाटा को देना नहीं चाहती और दूसरे और किसानों को जमीन लौटाकर वह ममता की राजनीति को मजबूत भी नहीं करना चाहती।

करीब 25 फीसदी किसानों ने राज्य सरकार से मुआवजा नहीं लिया था और उन्हें ही आगे करके टाटा के खिलाफ आंदोलन किया जा रहा था। वे किसान आज अपने आपको ठगाा महसूस कर रहे हैं। उनके सामने रोजी रोटी की भारी समस्या खड़ी हो गई है। उनके पास न तो जमीन रही और न ही उन्होंने मुआवजा लिया। अब वे ममता बनर्जी से अपनी जमीन की मांग कर रहे हैं, लेकिन ममता के पास कोई जवाब नहीं है। (संवाद)