भाजपा की समस्या यह है कि सिंधिया की आलोचना करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं है। प्रदेश की राजनीति में वे नये हैं। प्रदेश में न तो सरकार का और न ही पार्टी का कोई पद उन्होनंे अबतक हासिल किया है। वे सांसद रहे हैं और अभी केन्द्र में मंत्री हैं। मंत्री के रूप में उन्होंने बहुत बाहबाही पाई है। अपने पिता की तरह उन्होंने एक सफल प्रशासक की छवि प्राप्त की है। उनके ऊपर किसी तरह का आरोप भी नहीं है, जिससे भाजपा द्वारा उनकी आलोचना की जा सके। मंत्री के रूप में उनका काम साफ सुथरा रहा है।
उनकी बस एक ही समस्या है और वह यह है कि उनका सामंतवादी बैकग्राउंड है। उनके इस बैकग्राउंड की चर्चा शिवराज सिंह चौहान ने करना भी शुरू कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी सिंधिया को नेता के रूप में प्रोजेक्ट करने की आलोचना यह कहकर भी कर रहे हैं कि कांग्रेस ने उन्हें आगे बढ़ाकर कान्ति लाल भूरिया जैसे जनजातीय नेता की उपेक्षा कर दी है। श्री भूरिया इस समय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं।
श्री सिंधिया ने भाजपा की इन दोनों आलोचनाओं का करारा जवाब दिया है। उनका कहना है कि सिंधिया परिवार के सदस्यों को पहले से ही भाजपा ने आगे बढ़ा रखा है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया भाजपा की बड़ी नेता हुआ करती थीं और उनकी दो बेटियां अभी भी भाजपा की नेता हैं। एक बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान विधानसभा में भाजपा विधायक दल की नेता हैं और वहां वह मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। यदि सत्ता में भाजपा फिर राजस्थान में आई, तो वसुधरा एक बार फिर मुख्यमंत्री बन सकती हैं। राजमाता की दूसरी बेटी यशोधराराजे भी भाजपा की सांसद हैं। उनका कहना है कि जब भाजपा मेरे परिवार के अन्य सदस्यों को राजनैतिक पद पर बैठाती हैं, तो क्या उस समय वे सामंती नहीं रह पाती हैं?
जहां तक भूरिया को नीचा दिखाने का सवाल है, तो सिंधिया भाजपा से उलटा सवाल पूछते हैं। वे कहते हैं कि कांग्रेस की परंपरा से जनजातीय लोगों को महत्व देती रही है। कांग्रेस ने शिवभानु सिंह सोलंकी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। उस समय अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। और जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, तो जमुना देवी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था और वे भी आदिवासी थीं। जमुना देवी को विधानसभा में विपक्ष की नेता भी बनाया गया था और वह उस पद पर उस समय तक रहीं, जब तक वह जिंदा थीं।
भूरिया की चर्चा करते हुए सिंधिया कहते हैं कि उन्हें केन्द्र सरकार में मंत्री बनाया गया था और उसके बाद वे कांग्रेस के प्रदेश में निर्विवाद नेता के रूप में अध्यक्ष बनाए गए। उन्हें यह पद बहुत की नाजुक समय में दिया गया था। सिंधिया भाजपा से पूछते हैं कि क्या उसने किसी आदिवासी नेता को प्रदेश की राजनीति और सरकार में इतना ऊंचा पद दिया है?
भोपाल के अपने पहले दौरे में सिंधिया ने अनेक बैठकें कीं। उन्होंनंे अभियान का अपना खाका भी कंाग्रेस जनों को बताया और उनकी भी सलाह मांगी। विधानसभा चुनाव क ेअब दो महीने ही रह गए हैं, पर सिंधिया के प्रचार से कांग्रेसियों में कुछ उम्मीदें जगी हैं कि वह फिर से सत्ता में आ सकते हैं।
मध्यप्रदेश की राजनीति में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह को हमेशा सिंधिया के खिलाफ खड़ा किया गया है। उनकी प्रतिस्पर्धा को राजा और महाराज का संघर्ष कहा जाता रहा है। लेकिन इस बार कांग्रेस एकजुट दिख रही है। सच तो यह है कि एकजुट होकर ही कांग्रेस भाजपा का सामना कर सकती है, क्योंकि भाजपा पहले से ही चुनाव प्रचार के मामले में बहुत आगे बढ़ चुकी है। (संवाद)
क्या कांग्रेस में नई जान फूंक पाएंगे सिंधिया?
युवा नेता कर रहे हैं चौहान का सामना
एल एस हरदेनिया - 2013-09-19 11:04
भोपालः इसमें कोई शक नहीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस द्वारा अपनी चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाने और तुरंत उनके सक्रिय होने जाने से कांग्रेस नेताओं की पेशानी पर बल पड़ गए हैं।