मुजफ्फरनगर और आस पास के इलाकों में लंबे समय तक दंगों को होने दिया गया। उनमें कम से कम 50 लोग मारे गए हैं और 50 हजार से ज्यादा लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। इसने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि अनेक जटिल समस्याओं से जूझ रहे उत्तर प्रदेश पर शासन चलाने की योग्यता क्या अखिलेश यादव रखते हैं भी या नहीं?
समाजवादी पार्टी की सरकार अखिलेश यादव की उम्मीद की साइकिल पर सवार होकर पिछले साल ही सत्ता में आई थी, लेकिन अ बवह जनता के समर्थन को बहुत तेजी से खो रही है। जिन लोगों ने उन्हें वोट डाला था, उनमें से अनेक उनके खिलाफ हो गए हैं।
अखिलेश सरकार के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि अनेक मुस्लिम संगठन उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि अखिलेश सरकार मुसलमानों की रक्षा करने में विफल रही है। कुछ तो केन्द्र सरकार से कह रहे है कि वह उत्तर प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर दे।
मुस्लिम संगठन इस बात का उल्लेख भी कर रहे है। कि पिछले साल मार्च महीने में उनकी सरकार के सत्ता में आने के बाद साम्प्रदायिक दंगे की बाढ़ आ गई है।
2014 का लोकसभा चुनाव सिर पर है। वैसी हालत में मुसलमानों का समर्थन खोना मुलायम सिंह यादव और अखिलेश के लिए बहुत भारी पड़ सकता है।
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी को 2012 की उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रदेश के सभी तबकों और सभी इलाकों से समर्थन हासिल हुआ था। उस समय प्रदेश के लोग मायावती की सरकार से छुटकारा पाना चाह रहे थे। इसीलिए उन्होंने समाजवादी पार्टी को समर्थन किया था।
मुख्यमंत्री अपने चुनाव पूर्व वायदों को लागू करने में व्यस्त थे। वे कन्या विद्याधन योजना को अमल में ला रहे थे और मुफ्त में लैपटाॅप की बिक्री कर रहे थे। अन्य वायदों को भी वे लागू कर रहे थे। वैसे माहौल में हुए ये दंगे, उनके विकास एजेंडे को बहुत ही पीछे छोड़ते जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री को अब महसूस हुआ है कि खराब कानून व्यवस्था और साम्प्रदायिक दंगों से उनके सारे प्रयासों पर पानी फिर रहा है। उन्होंने कहा है कि ये दंगे प्रदेश में निवेश को प्रभावित करेंगे।
गौरतलब है कि युवा मुख्यमंत्री ने अनेक व्यापारिक घरानों और विदेशी निवेशकों से बात की थी और वे प्रदेश मंे निवेश को बढ़ावा देने की हर संभव कोशिश कर रहे थे।
ताजा दंगों ने प्रशासन को भी नंगा कर दिया है। इसने साबित कर दिया है कि प्रशासनिक मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। यह दंगे को होने से रोक नहीं सकती और यदि दंगे हो गए, तो समय पर उन पर नियंत्रण भी नहीं कर सकती।
प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी चुपचाप रहे। इसके कारण मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों का प्रशासन पूरी तरह ध्वस्त हो गया। फिर तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई।
इससे ज्यादा चिंता की बात क्या हो सकती है कि इन दंगों में एक व्यक्ति भी पुलिस की गोली से नहीं मारा गया। जो मरे हैं, वे दंगाइयों के हाथों से ही मरे हैं। इससे पता चलता है कि जब दंगे हो रहे थे, तेा पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही थी।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा दंगाग्रस्त इलाकों में न आना किसी भी सरकार के लिए कोई अच्छा संकेत नहीं है।
पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक अरुण कुमार द्वारा दंगों के बीच ही छुट्टी पर चले जाना और केन्द्र सरकार में डेपुटेशन के लिए पत्र लिखना यह साबित करता है कि पुलिस प्रशासन मंे राजनैतिक हस्तक्षेप ज़रूरत से ज्यादा हो रहा था।
सवाल उठ रहा है कि क्या अखिलेश यादव कुछ राजनीतिज्ञों और अधिकारियों द्वारा रचे गए किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो रहे हैं? (संवाद)
मुजफ्फरनगर दंगे से उठते सवाल
क्या सपा सरकार के खिलाफ हो रही है साजिश?
प्रदीप कपूर - 2013-09-24 13:34
लखनऊः मुजफ्फरनगर में हुए दंगों ने अखिलेश यादव की प्रशासन क्षमता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। उनकी सरकार का विश्वसनीयता भी अब संदिग्ध हो गई है।