जाहिर है कि झारखंड के पिछले चुनाव में यदि किसी पार्टी को जनता ने ठुकराया तो वह भाजपा ही थी। इस हार के बावजूद भारतीय जनता पार्टी आज वहां की सरकार में है। उसके उपमुख्यमंत्री हैं। कुछ और मंत्री शपथ लेने वाले हैं। चुनाव परिणाम आने के बाद श्री सोरेन की सरकार बनना तो तय हो गया था और यह पता लगना बाकी था कि उनकी सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनेगी अथवा भाजपा के समर्थन से। श्री सोरेन दो बार मुख्यमंत्री के रूप में पहले कांग्रेस के समर्थन से मंुख्यमंत्री बन चुके थे, इसलिए ज्यादा उम्मीद उनके कांग्रेस के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बनने की थी। लंेकिन वे मुख्यमंत्री बने भाजपा के समर्थन से।
2005 के चुनाव के बाद बिना सपष्ट बहुमत रहे कांग्रेस ने गुरूजी को राज्य का मुख्यमंत्री बनवा दिया था। बिना बहुमत के मुख्यमंत्री बनने के कारण एक सप्ताह के अन्दर ही उन्हंे पद छोड़ना पड़ा था। लेकिन इस बार कांग्रेस और सहयोगी बाबूलाल मरांडी की पार्टी के साथ पूर्ण बहुमत के बावजूद कांग्रेस के नेताओं ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से परहेज किया। 2005 में जिस भाजपा के साथ सत्ता के लिए गंदे संघर्ष की राजनीति गुरूजी कर रहे थे, उसी भाजपा ने इस बार उन्हें मुख्यमंत्री बनवा दिया।
राजनीति में ऐसा होता है। घोर दुश्मन एकाएक परम मित्र राजनीति में अबतक इतने सारे बने हैं कि भाजपा के गुरूजी के साथ जाने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। भाजपा ने वहर किया, जो आजका मान्य राजनैतिक आचरण बन गया है। गुरूजी ने भी वही किया, जो आज का मान्य राजनैतिक मूल्य बन गया है। इस प्रकरण में यदि कोई जोकर बनकार उभरी तो वह कांग्रेस थी। कांग्रेस को झारखंड की अस्थिर राजनीति में स्थिरता लाने का एक अच्छा मौका मिला था, जो उसने गंवा दिया।
सच तो यह है कि कांग्रेस ने झारखंड की राजनीति को और अस्थिर करना शुरू कर दिया था। भाजपा और गुरूजी को अलग करके उसने अपनी सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी थी। वह कवायद राज्य में घोर अस्थिरता को पैदा करती। झामुमो और भाजपा को अलग करके सरकार बनाने का मतलब एक बार फिर तोड़फोड़ की राजनीति और निर्दलीयों पर निर्भरता थी। उसमें फिर करोड़ों रुपये का निवेश करना होता। थैली शाहों की थैली खुलती। लालू यादव के पौ बारह हो जाते। वे झारखंड के अपने 5 विघायकों के बूते फिर से केन्द्र सरकार में घुसने की सौदेबाजी करते। मधु कोड़ा की पत्नी समर्थन के बदले अपने पति के खिलाफ चल रही कार्रवाई पर विराम लगाने की मांग करती। जेल में बंद कुछ और विधायक सरकार बनाने की कीमत के रूप में अपने खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने की सौदेबाजी करते।
जाहिर है कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए कीमत चुकाने की मानसिक तैयारी भी कर रखी होगी, तभी तो उसने असंभव को संभव बनाने की प्रयास प्रारंभ कर दिया था। परिणाम निकलने के बाद जब लालू यादव कांग्रेस का दामन थामने के लिए उत्साहित हुए तों कांग्रेस के कुछ नेताओं ने कह दिया कि लालू के साथ उनकी पार्टी का झारखंड में किसी प्रकार का कोई तालमेल नहीं होगा। शायद उन नेताओं को लग रहा होगा कि कांग्रेस सोरेन को मुख्यमंत्री बनाएगी और लालू के 5 विधायको की उसे कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी। लेकिन बाद में लालू को खुश करने वाले बयान दिए जाने लगे।
लेकिन कांग्रेस की सरकार बनाने की रणनीति का एक हिस्सा और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा आल झाारखंड स्अूडेंट्स यूनियन (आजसू) का समर्थन हासिल करना था। आजसू के समर्थन के बाद ही शेष 6 विधायकों का इंतजाम किया जाता। गौरतलब है कि कांग्रेस, मरांडी की पार्टी, लालू की पार्टी और आजसू के विधायक मिलकर 35 हो जाते। लेकिन आजसू के नेता सुदेश महतो ने कांग्रेस का काम असंभव बना दिया। कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य को घोर अस्थिरता की ओर ले जाने के बेहतर उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर गुरूजी की सरकार बनाना ही ठीक समझा। उसके बाद तो कांग्रेस की पूरी रणनीति ही ध्वस्त हो गई।
कुछ लोगों तो कहते हैं कि कांग्रेस ने अपनी रणनीति को विफल होता देख सुदेश महतो को ही मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश कर दी थी, लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री बनने से भी इनकार कर दिया। इस तरह बाजी कांग्रेस के हाथ से निकल गई। आज यदि भाजपा झारखंड की सत्ता में आकर हारने के बाद भी जीता हुआ महसूस कर रही है तो उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। (संवाद)
भारत
झारखंड में शिबू सरकार
हार कर भी भाजपा क्यों जीती?
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-01-02 10:09
एक सप्ताह के राजनैतिक ड्रामे के बाद झारखंड में आखिरकार शीबू सोरेन की सरकार बन ही गई। इस चुनाव में कांग्रेस की सीटें बढ़ी हैं। सोरेन की पार्टी की भी सीटें बढ़ीं। भाजपा से बाहर निकले बाबूलाल मरांडी को 11 सीटें मिलीं। यदि लालू यादव और नीतीश कुमार को झारखंड की राजनीति के लिए अप्रासंगिक मान लें, तो झारखंड में सिर्फ और सिर्फ भाजपा की ही हार हुई है। भाजपा को पिछले 2005 के चुनाव में 31 सीटें मिली थीं। उसके कारण ही उसके सहयोगी जनता दल (यू) को 5 सीटें मिली थी। हम कह सकते हैं कि भाजपा का 36 सीटों पर वहां कब्जा था। इस चुनाव के बाद उसका कब्जा मात्र 20 सीटों पर ही रह गया है।